कार्तिक का रंग धानी है
मिथिलेश कु. राय युवा रचनाकार कार्तिक का महीना आता है, तो लोग उमंग में आ जाते हैं. इस महीने में शहर से लेकर गांव तक के लोग एक साथ खासे उत्साहित होते हैं. नहीं तो शहरी और देहाती लोगों के पास हंसने-मुस्कुराने के अपने-अपने बहाने होते हैं. कोई किसी बात पर हंसता है, तो कोई […]
मिथिलेश कु. राय
युवा रचनाकार
कार्तिक का महीना आता है, तो लोग उमंग में आ जाते हैं. इस महीने में शहर से लेकर गांव तक के लोग एक साथ खासे उत्साहित होते हैं. नहीं तो शहरी और देहाती लोगों के पास हंसने-मुस्कुराने के अपने-अपने बहाने होते हैं. कोई किसी बात पर हंसता है, तो कोई किसी बात पर. लेकिन कार्तिक के महीने में इनके नाचने और झूम उठने के बहाने में थोड़ी सी समानता आ जाती है.
कार्तिक का मौसम आते ही त्योहार का माहौल गांव-शहर होते हुए व्यक्ति-व्यक्ति को अपने रंग में रंग लेता है. लोगों के स्वागत करने के तरीकों में समानता आ जाती है. इंतजाम करने में समानता आ जाती है.
चाय के ठीहे हों, या बरगद पर जमी चौपाल, वहां बैठे दस-पांच व्यक्तियों की बातें करने के विषयों में समानता आ जाती है. यह समानता कार्तिक हमें अपने त्योहारों के माध्यम से प्रदान करता है. कार्तिक अपने साथ त्योहारों का पिटारा लेकर आता है. इसका इंतजार नौकरी करनेवाले भी करते हैं और व्यसाय करनेवाले भी. गांव में खेती-किसानी कर रहे लोगों को भी उतनी ही शिद्दत से इसका इंतजार रहता है.
कार्तिक धनतेरस लेकर आता है. दीपावली लेकर आता है. छठ लेकर आता है. इन त्योहारों के बीच कार्तिक गोवर्धन पूजा और भैया दूज भी लेकर आता है.
कार्तिक के इन लंबे त्योहारों के कारण नौकरी के कारण घर से दूर रह रहे लोगों को एक लंबी सी छुट्टी मिल जाती है, जिसके कारण उनकी बांछें खिली रहती हैं. व्यापारियों की चांदी काटने का यही महीना होता है. अन्य दिनों जिन व्यवसायियों की दूकानें निगाहों से दूर रहने के कारण ग्राहक के इंतजार में उदास बैठी रहती हैं, इन दिनों दुकानों में लंबी भीड़ से इनकी भी पौ बारह हो जाती है. प्रसिद्ध दुकानों के मालिक और उनके कामगार की तो इस महीने नींद और चैन दोनों उड़ी रहती है.
इससे इतर, गांव-देहात में खेती-किसानी करनेवाले लोगों का कार्तिक में मन हर्षित रहता है. त्योहारों की तैयारी करते गीत गुनगुनाते ये अपने खेतों की ओर देखते हैं और गदगद हो जाते हैं.
कक्का कहते हैं कि कार्तिक का महीना असल में धान की कटाई का महीना होता है. त्योहार बीतते-बीतते खेतों में धान की फसल की तीन पीढ़ियां इतराने लगती हैं.
पहली पीढ़ी पूरी तरह पक कर तैयार रहती है. दूसरी पीढ़ी पक रही होती है. तीसरी पीढ़ी का रंग अभी हरा होता है. पहली दो पीढ़ी को जब तक काटा और तैयार किया जाता है, तीसरी पीढ़ी भी खलिहान में आने को मचलने लगती है.
कक्का कहते हैं कि कार्तिक के महीने में खेतों में नजर आ रहे पके धान के लहराते पौधों को देखकर किसका मन मयूर न नाच उठेगा भला!