एक अनुचित कानून

यदि आप राजस्थान में हैं और वहां के किसी मौजूदा या सेवानिवृत जज, अधिकारी, निर्वाचित जन-प्रतिनिधि के विरुद्ध मुकदमा दायर करना चाहते हैं, तो राज्य की कोई अदालत आपकी शिकायत को स्वीकार नहीं कर सकती है. इसके लिए पहले आपको सरकार की मंजूरी लेनी होगी. यदि आप अपनी शिकायत की गुहार लेकर मीडिया के पास […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 24, 2017 10:11 AM

यदि आप राजस्थान में हैं और वहां के किसी मौजूदा या सेवानिवृत जज, अधिकारी, निर्वाचित जन-प्रतिनिधि के विरुद्ध मुकदमा दायर करना चाहते हैं, तो राज्य की कोई अदालत आपकी शिकायत को स्वीकार नहीं कर सकती है. इसके लिए पहले आपको सरकार की मंजूरी लेनी होगी. यदि आप अपनी शिकायत की गुहार लेकर मीडिया के पास जाते हैं, तो उसे भी खबर चलाने की इजाजत नहीं है. वसुंधरा राजे सरकार बीते महीने जारी अध्यादेश को अब कानून का रूप देने की कवायद कर रही है. सीधे तौर पर यह प्रावधान न सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कुंद करने का प्रयास है, बल्कि मीडिया की आजादी और नागरिकों के जानने के अधिकार के विरुद्ध भी है.

बोफोर्स से लेकर व्यापम तक ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब सचेत नागरिकों और मीडिया के प्रयासों से बड़े-बड़े घोटाले और घपले उजागर हुए हैं. उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 के विनीत नारायण मामले में उस कानून को रद्द कर दिया था, जिसमें कुछ श्रेणियों के नौकरशाहों के खिलाफ जांच में सीबीआइ के अधिकार सीमित थे. वर्ष 2014 में संविधान पीठ ने उस कानून को खारिज कर दिया था, जिसके तहत संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारी के विरुद्ध जांच के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी थी. दोनों ही मामलों में मौलिक अधिकारों को आधार बनाया गया था.

अदालत का कहना था कि कुछ श्रेणी के अधिकारियों को अन्य अधिकारियों से अलग अधिकार नहीं दिये जा सकते हैं. राजस्थान की सरकार ने इस निर्देश की गलत व्याख्या करते हुए सभी लोकसेवकों को मंजूरी का कवच दे दिया है. सत्ता प्रतिष्ठानों में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं. यह सही है कि कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को जान-बूझकर परेशान करनेवाली शिकायतों से बचाया जाना चाहिए, लेकिन इसे तर्क बनाकर भ्रष्टाचार को सामने लानेवाले नागरिकों और पत्रकारों पर पाबंदी आयद करना तथा दंड का विधान करना कतई जायज नहीं है.

विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है. एक स्वतंत्र मीडिया के बगैर स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना भी संभव नहीं है. सरकार की पहली और आखिरी जवाबदेही नागरिकों के प्रति है. नागरिक को सत्ता के गलियारों की हलचलों से अवगत कराना तथा नागरिकों की आवाज को सत्ता तक पहुंचाने का काम मीडिया का है. इस काम में अड़ंगा डालने की बेजा हरकत संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक मर्यादा का उल्लंघन है. उम्मीद है कि जल्दी ही वसुंधरा राजे सरकार अपने इस कदम की समीक्षा कर इसे वापस लेगी.

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