जमाने को दिखाना है

आलोक पुराणिक व्यंग्यकार प्रोफेसर राजरानी शर्मा समेत पुराने स्कूल के कई लोगों की समस्या है- दिखाने में ज्यादा भरोसा ना करते. फोन से वह काम लिया जाये, जो फोन का काम है यानि संवाद. दिखाने के काम फोन आने, लगे तो समझिये फोन सही काम नहीं आ रहा है. महंगा एपल फोन खरीदा प्रोफेसर राजरानी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 25, 2017 6:09 AM
आलोक पुराणिक
व्यंग्यकार
प्रोफेसर राजरानी शर्मा समेत पुराने स्कूल के कई लोगों की समस्या है- दिखाने में ज्यादा भरोसा ना करते. फोन से वह काम लिया जाये, जो फोन का काम है यानि संवाद. दिखाने के काम फोन आने, लगे तो समझिये फोन सही काम नहीं आ रहा है.
महंगा एपल फोन खरीदा प्रोफेसर राजरानी शर्मा ने और उस पर कवर ऐसी स्टाइल में लगाया कि एपल ब्रांड का चिह्न-अधखाया सेब ढक गया. प्रोफेसर शर्मा की छात्रा को मोबाइल कवर की यह हरकत नागवार गुजरी. कवर से भी कुछ उम्मीद माॅडर्न कपड़ों जैसी हो गयी है- छिपायें कम, दिखायें ज्यादा. एपल का ब्रांड नहीं दिखेगा, तो कौन मानेगा एपल है. बात तो किसी भी फोन से हो सके, दिखने-दिखाने के काम तो एपल फोन ही आता है ना. एपल सिर्फ खाने और प्रयोग करने के ही नहीं, दिखाने के काम भी आता है.
आफतें कई हैं, सिर्फ खरीदना ही नहीं होता कोई ब्रांड, उसका महात्म्य समझाना और फिर उससे यथोचित तारीफ हासिल करनी होती है. एपल फोन लिये घूम रहे हैं किसी को पता ना चले, तो क्या फायदा एपल का.
मैं तो एपल शिष्टाचार बहुत पहले ही समझ चुका हूं किसी के हाथ में एपल फोन देखकर, मालूम होते हुए भी उसके फीचर पूछता हूं और खुद बताता हूं कि यह तो डेढ़ लाख वाला एपल है, इस झूठ का कोई भी एपलधारी आमतौर पर खंडन नहीं करता. ऐसे झूठ से प्रसन्न होकर एपलधारी कहते हैं- आलोकजी विनम्र हैं. गहन विनम्रता झूठ की जड़ों से उगती है.
एक बार एक को मैंने लाख रुपये का फोन लेने पर डपटा था और किफायतशारी का लेक्चर दिया था, तो पीठ पीछे उससे सुनने को मिला था कि आलोकजी ब्रांड-निरक्षर हैं. ब्रांड वगैरह के बारे में कुछ ना समझते, ब्रांड-इल्लिटरेट.
ब्रांड-निरक्षरता ने बहुत मार मचायी हुई है. एक मित्र फ्रांस के एक ब्रांड का ऐसा अंतर्वस्त्र प्रयोग करते हैं, जिसकी कीमत भारतीय मुद्राओं में करीब अठारह हजार है.
अब ऐसों का पाला ब्रांड निरक्षरों से पड़ जाये, तो विकट आफत हो जाती है. पहले तो उस फ्रेंच ब्रांड का महात्म्य समझाओ फिर यह बताओ कि मैंने भी यही पहना है. विश्वास का संकट है इन दिनों, कोई आसानी से मानने को तैयार नहीं होता.
अब कुछ पैंटों और अंतर्वस्त्रों को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि ब्रांड-चिन्हवाला हिस्सा बाहर झांके. अंतर्वस्त्र बाहर झांके, यह बदतमीजी ना हुई क्या, यह सवाल पुराने स्कूल के लोग पूछ सकते हैं. अंतर्वस्त्रों के महंगे ब्रांडों पर खुला विमर्श हो, यह नयी ब्रांड साक्षरता का तकाजा है. इसलिए अब मैं हर परिचित को एपल फोन और उस महंगे अंतर्वस्त्रीय ब्रांड की बधाई दे देता हूं, नकली एपलवाले भी वह बधाई स्वीकार कर लेते हैं- यही ब्रांड साक्षरता है.

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