ढोंग के संजाल में समाज

गंगेश ठाकुर टिप्पणीकार भारत में लोगों की आस्था नदियों में, पहाड़ों में, वृक्षों में, जानवरों में, पक्षियों में और ना जाने किन-किन चीजों में रहती है. हालांकि, आस्था एक निजी विषय है. लेकिन, आस्था के नाम पर जब कुछ लोग मानवता का चीरहरण करने लगते हैं, तो यही आस्था सवालों के घेरे में आ जाती […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 21, 2017 6:44 AM

गंगेश ठाकुर

टिप्पणीकार

भारत में लोगों की आस्था नदियों में, पहाड़ों में, वृक्षों में, जानवरों में, पक्षियों में और ना जाने किन-किन चीजों में रहती है. हालांकि, आस्था एक निजी विषय है. लेकिन, आस्था के नाम पर जब कुछ लोग मानवता का चीरहरण करने लगते हैं, तो यही आस्था सवालों के घेरे में आ जाती है. देश में धर्म के ठेकेदारों की संख्या जिस तरह बढ़ी है, वह चिंता का विषय है.

इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि धर्म के तथाकथित ठेकेदार लोगों को भारतीय लोकतंत्र में सरकार के चयन के समय विशेष पार्टियों के समर्थन का आह्वान करते हैं. यानि लोकतंत्र अब धर्म के ठेकेदारों के इशारे पर चलने लगा है!

कहते हैं कि इंसान के भीतर ही भगवान का वास होता है. लेकिन, जिस तरह से पिछले कुछ सालों में भारत में बाबाओं का उदय हुआ है और उनकी तस्वीरों ने जैसे धीरे-धीरे लोगों की दीवारों पर भगवान की तरह ही जगह बना ली है, उसे देखकर लगने लगा है कि यह कथन मिथ्या के अलावा कुछ और नहीं है.

दुनियाभर में आस्था के नाम पर जिस तरह से मौतें होती हैं, उसके आंकड़े भी काफी चौंकानेवाले हैं. खासकर भारत में आस्था जिस तरह से इंसानों की जान ले रही है, उससे लगता है कि आस्था का यह अंधापन बेहद घातक है.

देश की बहुत बड़ी जनसंख्या किसी ना किसी बाबा या धर्मगुरु में अपनी आस्था रखती है. बाबा का कथन उनके लिए आदेश होता है. इधर बीच कुछ बाबाओं-संतों के चेहरे से जिस तरह से नकाब उतरा है, उसने सबको हैरत में डाल दिया है.

पर, आस्था देखिये कि उनको बचाने के लिए भी लाखों लोग सड़कों पर उतर जाते हैं. कुछ बाबाओं के कारनामों ने तो यह साबित कर दिया है कि आस्था अब अंधेपन की शिकार है. लोग बाबाओं पर भरोसा करते हैं और दिल को तसल्ली देते हुए कहते हैं कि कुछ मुट्ठीभर बदनाम बाबाओं के कारण अच्छे धर्मगुरु बदनाम होते हैं. इन बाबाओं के चंगुल में अमीर-गरीब सब हैं, लेकिन आस्था के इस अंधकुएं में डूबकर मरनेवाले ज्यादा से ज्यादा गरीब और आम लोग ही होते हैं.

आस्था के नाम पर ठगने का सिलसिला सदियों पुराना है और लोगों को भरोसा दिलाया जाता रहा है कि चमत्कार होते हैं. उन चमत्कारों के ढोंग में जिस तरह के घिनौने कृत्य बाबाओं द्वारा किये जाते हैं, हाल में ही उसके कुछ उदाहरण सामने आये हैं.

अब भी अंधभक्ति का खेल जारी है. देश में पढ़े-लिखे का एक तबका इन बाबाओं के लिए ट्रैफिक मैनेजमेंट का काम करता है, क्योंकि उसे पता है कि भक्ति को अंधभक्ति में कैसे बदलना है. यह जागरूक समाज के निर्माण का समय है, समाज में लोगों के अंदर व्यापक सोच विकसित करने के लिए प्रयास की जरूरत है, ताकि इन बाबाओं के संजाल से समाज को कंगाल होने से बचाया जा सके.

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