एनपीए पर पहल

सूद तो क्या, मूलधन भी वसूल नहीं हो रहा है. ऊपर से वित्त बाजार, औद्योगिक उत्पादन और बुनियादी ढांचे के निर्माण की निजी अथवा सरकारी परियोजनाओं के लिए बैंकों पर ज्यादा-से-ज्यादा कर्ज और उधार देने का नैतिक दायित्व! यह समस्या लंबे समय से जारी है, पर रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के पहलकदमियों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 14, 2017 7:07 AM
सूद तो क्या, मूलधन भी वसूल नहीं हो रहा है. ऊपर से वित्त बाजार, औद्योगिक उत्पादन और बुनियादी ढांचे के निर्माण की निजी अथवा सरकारी परियोजनाओं के लिए बैंकों पर ज्यादा-से-ज्यादा कर्ज और उधार देने का नैतिक दायित्व! यह समस्या लंबे समय से जारी है, पर रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के पहलकदमियों से इसके विकराल होने का पता चला.
अब यह तो पता चल चुका है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कर्ज में दी गयी अपनी 9.64 लाख करोड़ (इसमें लंबे समय से वसूल न हो पाने के कारण एनपीए करार दी गयी राशि के साथ-साथ वह रकम भी शामिल है, जिसकी वसूली को लेकर बैंक आश्वस्त नहीं हैं) रुपये की राशि नहीं वसूल पा रहे, पर सरकार, वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक सहित किसी को भी नहीं पता कि वसूली या भरपायी के लिए ठीक-ठीक क्या किया जाना चाहिए. यह 9.64 लाख करोड़ रुपये की रकम कितनी बड़ी होती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के 50 शीर्ष बैंकों में शुमार भारतीय स्टेट बैंक का कुल बैलेंस शीट 33 लाख करोड़ रुपये का है और भारत सरकार के स्वास्थ्य का सालाना बजट 33 हजार करोड़ रुपये का होता है.
बैंकों को इस बोझ से उबारने के लिए रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय नये सिरे से कदम उठा रहे हैं. नयी योजना नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट फंड (एनआइआइएफ) बनाने की है. संपदा के प्रबंधन का कामकाज संभालनेवाली यह संस्था कर्ज-प्रवाह के बाधित होने से रुकी पड़ी कुछ परियोजनाओं को फिर से वित्तीय जीवनदान देने के काम संभाल सकती है. रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य प्राइवेट एसेट मैनेजमेंट कंपनी और नेशनल एसेट मैनेजमेंट कंपनी बना कर एनपीए का समाधान करने के उपाय पहले सुझा चुके थे और उनके सुझावों की झलक एनआइआइएफ में देखी जा सकती है. कानून में बदलाव के जरिये रिजर्व बैंक को कुछ नयी शक्तियां दी गयी हैं और निकट भविष्य में बड़े कर्जदाताओं पर इन शक्तियों के उपयोग से रिजर्व बैंक कार्रवाई भी कर सकता है.
अप्रैल में न्यूयार्क में वित्त मंत्री ने कहा था कि भारत में एनपीए की समस्या बड़ी तो है, परंतु यह 20 से 30 बड़े खातों तक सीमित भी है और भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए इस चुनौती से निबटना कोई मुश्किल नहीं. उम्मीद की जानी चाहिए कि रिजर्व बैंक जल्द ही एनपीए की बड़ी चुनौती से सार्वजनिक बैंकों को उबार लेगा और बड़े कर्जदारों की कर्जमाफी या फिर सरकारी कोष से धन देकर उबारने जैसे कदम नहीं उठाये जायेंगे.

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