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Friday, March 29, 2024

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प्रेरणा: नेत्रहीन शिक्षक ज्ञान कुमार 19 वर्षो से जगा रहे शिक्षा का अलख

रांची: बचपन में मैं आम बच्चों की तरह था. मुङो सब कुछ दिखाई देता था. पांच साल की उम्र में मुङो रेटिना डिटैचमेंट (रेटिना का फट जाना) हो गया. दोनों आंखों की रोशनी चली गयी. मेरे पिता ने रांची से लेकर मद्रास तक इलाज कराया, पर डॉक्टरों ने कह दिया था कि अब आपका बेटा […]

रांची: बचपन में मैं आम बच्चों की तरह था. मुङो सब कुछ दिखाई देता था. पांच साल की उम्र में मुङो रेटिना डिटैचमेंट (रेटिना का फट जाना) हो गया. दोनों आंखों की रोशनी चली गयी.

मेरे पिता ने रांची से लेकर मद्रास तक इलाज कराया, पर डॉक्टरों ने कह दिया था कि अब आपका बेटा नहीं देख सकता है. वर्ष 1978 में पिताजी ने राजकीय नेत्रहीन विद्यालय में मेरा दाखिला कराया. 1980 में सेंट माइकल नेत्रहीन विद्यालय में भरती हुआ. दो साल वहां पढ़ने के बाद 1982 में जिला स्कूल में दाखिला लिया. 1986 में मैट्रिक परीक्षा पास की. फिर सेट जेवियर कॉलेज से इंटर व ग्रेजुएशन किया. फिर रांची विवि में पीजी के लिए दाखिला लिया. इसी दौरान 1994 में बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से मुङो शिक्षक की नौकरी मिल गयी.

हक के लिए कोर्ट गया
शिक्षक ज्ञान कुमार के अनुसार, 1994 में रांची में पदस्थापित तत्कालीन उपायुक्त ने कहा, तुम सामान्य विद्यालय में पढ़ाई नहीं कर सकते हो. अगर कहीं नेत्रहीन स्कूल खुला, तो उसमें तुमको बहाल कर देंगे. डीसी के आदेश को सुन कर मैं कोर्ट गया. कोर्ट ने एक सप्ताह में आदेश दिया कि मुङो बहाल किया जाये. कोर्ट के आदेश के बाद जब मैं ज्वांइन करने आया, तो उपायुक्त ने मेरी पोस्टिंग अड़की के कथातु गांव में कर दी. मैंने फिर हाइकोर्ट में केस किया. इस पर कोर्ट ने आदेश दिया कि इसकी नियुक्ति इसके घर के समीप के स्कूल में की जाये. तब राजकीय प्राथमिक विद्यालय, कांके रोड में मेरा स्थानांतरण किया गया.

1996 में हुई शादी
1996 में मेरे घरवालों ने मेरी शादी करानी चाही, परंतु कोई भी मुझसे शादी करने के लिए तैयार नहीं था. फिर अखबारों में मैंने शादी का विज्ञापन दिया. एक परिवार को मैं पसंद आया और मेरी शादी गुड़िया श्रीवास्तव से हुई. आज हमारी दो बेटियां व एक बेटा है. दोनों बेटी डीएवी हेहल में पढ़ती हैं और मेरा 10 साल का बेटा मेरा साथी है. वह मेरे ही स्कूल में पढ़ता है. रोज मुङो घर से लेकर स्कूल आता व जाता है.

हिम्मत कभी न हारें
एक नेत्रहीन होने के कारण मुङो कई लोगों ने काफी हतोत्साहित किया, परंतु मैंने ठान लिया था कि मुङो अपने परिवार पर बोझ नहीं बनना है. मुङो काम करना है. बस यही सोच कर मैं पढ़ाई करता रहा. लोगों से यह कहना चाहता हूं कि अगर आपके घर में या आपके घर के आसपास में कोई नि:शक्त है, तो उसे उचित मार्गदर्शन दें. उसकी मदद करें, ताकि एक दिन वह अपने पैरों में खड़ा हो सके.

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