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Friday, March 29, 2024

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श्रीराम शंकरलाल संगीत उत्सव

शास्त्रीय संगीत संस्थापक सुमित्रा चरतराम की पुत्री, केंद्र की निदेशक, शोभा दीपक सिंह ने दिल्ली में ‘श्रीराम शंकरलाल संगीत उत्सव’ के 71वें वर्ष को ‘श्रीराम भारतीय कला केंद्र’ के हरे-भरे लाॅन में 8, 9 और 10 मार्च को मनाया. उत्सव में संगीत भरने के लिए एक से बढ़कर एक उस्ताद और भविष्य के उस्ताद शामिल […]

शास्त्रीय संगीत

संस्थापक सुमित्रा चरतराम की पुत्री, केंद्र की निदेशक, शोभा दीपक सिंह ने दिल्ली में ‘श्रीराम शंकरलाल संगीत उत्सव’ के 71वें वर्ष को ‘श्रीराम भारतीय कला केंद्र’ के हरे-भरे लाॅन में 8, 9 और 10 मार्च को मनाया. उत्सव में संगीत भरने के लिए एक से बढ़कर एक उस्ताद और भविष्य के उस्ताद शामिल हुए.
अंग्रेजी को कोसते हिंदी मीडियावालों से अगर पूछा जाये कि वे जिस माध्यम को देश में सबसे अधिक पढ़ा जानेवाला बता रहे हैं, उसका उसी देश की कला-संस्कृति को पढ़ाने में क्या योगदान है, तो वे बगलें झांकने लगेंगे. यही कारण है कि शास्त्रीय संगीत की बात करने पर हिंदी पढ़नेवाला ऐसे मुंह बा लेता है, जैसे आउट ऑफ सिलेबस बात हो. 70 साल से चले आ रहे ‘श्रीराम शंकरलाल संगीत समारोह’ के बारे में अगर दिल्ली-वालों से ही पूछा जाये, तो बहुत संभव है कि उनका परम ज्ञानी होने का दंभ भरभरा जाये.
देश के आजाद होने के वक्त रियासतें, जहां कला और संस्कृति पाली-पोसी जाती थीं, खत्म हो रही थीं. राज्य के अलावा शास्त्रीय संगीत और उसके उस्तादों को जिन्हें आगे चलकर संगीत की विरासत संभालनी थी, उन्हें संभालने की जिम्मेदारी जिन लोगों ने समझी और संभाली, उनमें सर श्रीराम के भाई सर शंकरलाल और दोनों भाइयों के परिवार का ऐतिहासिक योगदान है.
साल 1947 के पंद्रह अगस्त की रात आजादी के पर्व में एक पूरी रात संगीत की भी जुड़ी, जिसे सजाया था ‘श्रीराम भारतीय कला केंद्र’ की संस्थापक सुमित्रा चरतराम ने, और जिसमें उस्ताद अलाउद्दीन खान, उस्ताद अमजद अली खान के पिता उस्ताद हाफिज अली खान, जो ग्वालियर से दिल्ली आये, पंडित रवि शंकर, उस्ताद विलायत खान, पंडित भीमसेन जोशी के गुरु उस्ताद मुश्ताक हुसैन खान, राहुल देव बर्मन के गुरु पंडित समता प्रसाद, बांसुरी का वर्तमान रूप- जिसके चलते वह एक शास्त्रीय वाद्य यंत्र बन सकी- देनेवाले पंडित पन्नालाल घोष, पंडित बिरजू महाराज के पिता पंडित अच्छन महाराज शामिल थे.
इस केंद्र की पहली मैनेजर श्रीमती निर्मला जोशी और उनके बाद आयीं श्रीमती नैना देवी की संगीत और दिल्ली में गहरी पैठ थी. इन दोनों ने इन उस्तादों को केंद्र से जोड़ने, दिल्ली लाने, खत्म हो गयी रियासतों से जुड़े दिग्गजों को आश्रय व अपना गुरुकुल केंद्र को बनाने के लिए तैयार किया. शब-ए-आजादी की उस महफिल ने ‘झंकार म्यूजिक सर्किल’ को जन्म दिया, जिसने आगे चलकर हर महीने संगीत की बैठक और सालाना उत्सव शुरू किया. उस्तादों को इस उत्सव के आने का इंतजार रहता है.
सनद के लिए कुछ नाम जो उत्सव का हिस्सा रहे हैं: भीमसेन जोशी, गंगुभाई हंगल, बड़े गुलाम अली खान, आमिर खान, डागर बंधु, मल्लिकार्जुन मंसूर, राम चतुर मलिक, शराफत हुसैन खान, पंडित जसराज, बेगम अख्तर, गिरिजा देवी, किशोरी आमोनकर, रशीद खान, राजन-साजन मिश्रा, अजय चक्रवर्ती, उल्हास काशलकर, बिस्मिल्लाह खान, अली अकबर खान, निखिल बनर्जी, राधिका मोहन मोहित्रा, अमजद अली खान, शरण रानी, हरि प्रसाद चौरसिया, शिव कुमार शर्मा, जाकिर हुसैन, सुल्तान खान, राम नारायण, एल सुब्रमण्यम, एन राजन, शाहिद परवेज, विश्वमोहन भट्ट.
संस्थापक सुमित्रा चरतराम की पुत्री, केंद्र की निदेशक, शोभा दीपक सिंह ने दिल्ली के इस संगीत-उत्सव के 71वें वर्ष को ‘श्रीराम भारतीय कला केंद्र’ (जिसके एक तरफ का हिस्सा कमानी ऑडिटोरियम और दूसरी तरफ साहित्य अकादमी है) के हरे-भरे लाॅन में 8, 9 और 10 मार्च को मनाया.
उत्सव में संगीत भरने के लिए पंडित जसराज, पंडित उल्हास काशलकर, पंडित उदय भवालकर, पंडित रोनू मजूमदार, पंडित शॉनक अभिषेकी, देबाशीष भट्टाचार्य, आरती अंकलेकर टिकेकर, इरशाद खान, कलापिनी कोमकली, जयंती कुमारेश और मंजिरी असनारे की मौजूदगी ने भविष्य के उस्तादों को सुनने का ऐतिहासिक मौका दिया.
रसिक श्रोताओं और पुरानी दिल्ली की सोंधी चाट-जलेबी के बीच देर तक चलनेवाली महफिल का लुत्फ तब और बढ़ जाता रहा, जब पंडित उल्हास काशलकर जैसे भगवान-की-आवाज वाले उस्ताद, ‘पंडितजी एक गीत और…’ जैसी एक-से अधिक दफा की जानेवाली दरख्वास्त सुन लेते रहे.
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