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दर्द को शब्द देती किताब

किताब ‘कश्मीरनामा’ लेखक और कवि अशोक कुमार पांडेय की एक सार्थक रचना है. यह किताब कश्मीर की अनकही दास्तां को शेष भारत के साथ साझा करने का सबसे प्रमाणिक दस्तावेज है. निरंकुश राजाओं, बर्बर आक्रमणकारियों, धार्मिक कट्टरपंथियों, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के पक्षधरों, अखंड भारत के नारों, राजनीतिक अवसरों, वादाखिलाफियों और सदियों की लूट से तबाह एक […]

किताब ‘कश्मीरनामा’ लेखक और कवि अशोक कुमार पांडेय की एक सार्थक रचना है. यह किताब कश्मीर की अनकही दास्तां को शेष भारत के साथ साझा करने का सबसे प्रमाणिक दस्तावेज है.
निरंकुश राजाओं, बर्बर आक्रमणकारियों, धार्मिक कट्टरपंथियों, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के पक्षधरों, अखंड भारत के नारों, राजनीतिक अवसरों, वादाखिलाफियों और सदियों की लूट से तबाह एक क्षेत्र विशेष और वहां के लोगों की कहानी को बिना किसी पूर्वग्रह के कलमबद्ध करने की कामयाब कोशिश के लिए अशोक कुमार पांडेय बधाई के पात्र हैं.
जो कश्मीर अपनी सूफी पहचान के लिए जाना जाता था, जहां ऋषियों और सूफियों की निशानियां सालों की साजिशों के बाद भी मौजूद हैं. जहां 18वीं सदी के अंतिम वर्षों में सर्वे के लिए आये एक अंग्रेज अफसर वॉल्टर लॉरेंस को कश्मीरी मुसलमान और कश्मीरी हिंदुओं में फर्क करना मुश्किल हो गया था (कश्मीरनामा से).
जाहिर है उस धरती पर नफरत की फसल एक रात में तैयार नहीं हुई होगी. राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और शासन की नाकामियों की वजह से विलय संधि और आजादी की एक राजनीतिक प्रक्रिया आज नासूर बन गयी. कश्मीर के लोगों के इसी बेपनाह पीर को लेखक ने ‘कश्मीरनामा’ में उकेरा है.
‘कश्मीरनामा’ ना केवल जम्मू-कश्मीर के बारे में बनायी गयी कई अवधारणाओं को खंडित करती है, बल्कि कश्मीर के बारे में एक आम भारतवासी की सभी जिज्ञासाओं को भी शांत करती है. यह हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बरक्स कश्मीर के दो और पक्षकारों शेख अब्दुल्ला और हरि सिंह की भूमिका को भी ईमानदारी से पेश करती है.
इस संवेदनशील मुद्दे पर पंडित नेहरू और सरदार पटेल की भूमिका के बारे में भी जानकारियां देती है. आज के माहौल में जब इतिहास को लेकर तथ्यों की बात लगभग बेमानी हो गयी है, ‘कश्मीरनामा’ जैसी गंभीर कोशिश साहसिक है.
लेखक के मुताबिक कश्मीर की समस्या के समाधान के लिए जरूरी है कि भारत के शेष भाग से कश्मीर का बेहतर संवाद स्थापित हो. हिंदी में कश्मीर पर ‘कश्मीरनामा’ अकेली मुकम्मल किताब है.
यह उनके लिए जरूरी किताब है, जो कश्मीर में दिलचस्पी रखते हैं, जिनके लिए कश्मीर भूमि के एक टुकड़े से बढ़कर भारत की एक धर्मनिरपेक्ष पहचान है, जो कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं और वे जिनके लिए कश्मीर कराहते इंसानियत का मुल्क है.
राजेश कुमार

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