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नयी किताब : प्रेम संबंध की कथा

साहित्य जीवन का प्रतिबिंब होता है. इसलिए साहित्य में जीवन के विभिन्न रूप प्रतिबिंबित होते हैं. मानवीय संबंधों के भी अनेक रूप हैं. विशेष रूप से स्त्री-पुरुष संबंधों के अनेक रूप हम साहित्य में पाते हैं, जिसमें कुछ ऐसे भी संबंध होते हैं, जिन्हें सामाजिक मर्यादा के अनुरूप नहीं माना जा सकता. फिर भी यह […]

साहित्य जीवन का प्रतिबिंब होता है. इसलिए साहित्य में जीवन के विभिन्न रूप प्रतिबिंबित होते हैं. मानवीय संबंधों के भी अनेक रूप हैं. विशेष रूप से स्त्री-पुरुष संबंधों के अनेक रूप हम साहित्य में पाते हैं, जिसमें कुछ ऐसे भी संबंध होते हैं, जिन्हें सामाजिक मर्यादा के अनुरूप नहीं माना जा सकता. फिर भी यह मानवीय जीवन का एक यथार्थ है, जिसे नकारा नहीं जा सकता. इसी सच को अपने उपन्यास ‘खामोश लम्हों का सफर’ में पत्रकार-लेखक नीलांशु रंजन ने पूरी ईमानदारी से उकेरा है.
विवाहेत्तर प्रेम संबंध पर आधारित उपन्यास ‘खामोश लम्हों का सफर’ की खास बात यह है कि इस प्रेम संबंध में वर्जनाएं नहीं टूटतीं, सामाजिक मर्यादाओं का अतिक्रमण नहीं होता और सामाजिक मर्यादा की सीमा पूरे उपन्यास में बनी रहती है.
यही कारण है कि नायक ‘अंकित’ और नायिका ‘अन्नी’ के बीच का प्रेम संबंध मूल रूप से भावनात्मक ही रहता है. दैहिक आकर्षण रहते हुए भी दूरी बनी रहती है. विवाहेत्तर प्रेम संबंध तो है, लेकिन द्वंद्व भी है. नायिका के अंदर द्वंद्व लगातार बना हुआ है कि जो वह कर रही है, वह सही है या गलत.
चूंकि वह शादीशुदा है और भारतीय परिवेश में पली-बढ़ी है, इसलिए उसके अंदर नैतिकता-अनैतिकता का सवाल बना रहता है. लेकिन, वह अंकित के प्यार के आगे बेबस हो जाती है. नायिका अन्नी हरिवंश राय बच्चन पर शोध कर रही है. उपन्यास में बच्चन की आत्मकथा और मधुशाला की अच्छी-खासी चर्चा है.
अनुज्ञा बुक्स से प्रकाशित हुए इस उपन्यास की भाषा में उर्दू का बाहुल्य है. उपन्यासकार एक शायर है, इसलिए उपन्यास में शायरी का पुट है. लेकिन हां, उपन्यास की भाषा आज के पाठकों के लिए सहज है. उपन्यास के शुरू में ही ‘सदा-ए-दिल’ शीर्षक आत्मकथ्य में शायरी के साथ उपन्यासकार ने अपनी बातों को रख दिया है.
पाठक जब अन्नी और अंकित के खामोश सफर में डूबते-उतराते हैं, तभी अचानक उसका साबका अप्रत्याशित अंत से होता है, जिसका अनुमान पाठक बिल्कुल नहीं लगा पाता. रूमानी प्रेमकथा पर आधारित यह उपन्यास अच्छी भाषा, सरस प्रेम संवाद के कारण पठनीय है. इस उपन्यास पर एक फिल्म का भी निर्माण हो रहा है.
प्रो कलानाथ मिश्र

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