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जानिए क्या है वो ”पांच बातें” जिसकी बदौलत आप करियर में भर सकते हैं कामयाबी की ऊंची उड़ान

नयी दिल्ली: प्रत्येक इंसान अपने करियर में तरक्की चाहता है. हर कोई चाहता है कि वो फिलहाल जहां है एकदिन उससे ऊंचा मुकाम हासिल करे. लेकिन कुछ ना कुछ खामी हमेशा रह जाती है, क्योंकि हम कुछ गलतियां बार-बार दोहराते हैं या समझ ही नहीं पाते कि तरक्की का रास्ता कैसे हासिल किया जाता है. […]

नयी दिल्ली: प्रत्येक इंसान अपने करियर में तरक्की चाहता है. हर कोई चाहता है कि वो फिलहाल जहां है एकदिन उससे ऊंचा मुकाम हासिल करे. लेकिन कुछ ना कुछ खामी हमेशा रह जाती है, क्योंकि हम कुछ गलतियां बार-बार दोहराते हैं या समझ ही नहीं पाते कि तरक्की का रास्ता कैसे हासिल किया जाता है. कभी-कभी लोग सीखना भी भूल जाते हैं. इसलिए जरूरी है कि हम काम के साथ सीखना जारी रखें. अपने कौशल और आंतरिक खूबियों को मिलाकर इस्तेमाल करना सीखना होगा. फिर प्रोफेशनल कामयाबी हासिल करना आसान हो जाएगा.

सामान्यत लोग अपने ऑफिस में कुछ गलतियां दोहराते हैं और आत्मनिरीक्षण नहीं करते. कुछ बुरी आदतों की वजह से लोगों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती. लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जब लोग प्रयास करना नहीं छोड़ते. जब लोग प्रयास करना छोड़ देते हैं तो स्वाभाविक तौर पर सीखना भी बंद कर देते हैं जिसका परिणाम होता है कि नई बातों, विषयों और तकनीक की दौड़ में पीछे छूट जाते हैं. लोगों के पास अपार क्षमता होती है लेकिन खुद पे विश्वास नहीं होने के कारण कभी अपनी खूबियां बाहर नहीं ला पाते और नाकामयाब होते हैं. वैसे एक कहावत है कामयाबी के बारे में कि, अगर आप उड़ सकते हैं तो पैदल क्यों चलते हैं.

वो पांच बातें जिसकी बदौलत आप अपने करियर को नई उड़ान दे सकते हैं…

अपने अतंरात्मा की आवाज सुनें

कहा जाता है कि लोग दिन भर में कई लोगों से बात करते हैं. मिलते-जुलते हैं. लेकिन एक बहुत अहम आदमी से बात करना तो भूल ही जाते हैं. जानते हैं वो अहम आदमी कौन है. वो है आप खुद. लोग खुद से ही बात करना भूल जाते हैं. पहली दिक्कत तो ये आती है कि लोग खुद से ही बात नहीं करते. अपने भीतर की आवाज को नहीं सुनते और दूसरी दिक्कत आती है जब लोग छोटी-छोटी नकारात्मक बातों को अनदेखा नहीं कर पाते. इसलिए दो बातें काफी अहम है. पहला कि आप अपने दिल की आवाज सुनें. ठहर कर सोचें और फैसले लें. दूसरा कि आप छोटी-मोटी बातों को अनदेखा कर आगे बढ़ें.

दूसरों पर दोष डालने से बचें

लोग ज्यादातर मामलों में अपनी नाकामयाबी, गलतियों और नाखुशी के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहरा देते हैं. कई बार लोग अपनी गलतियों के लिए दूसरों पर दोष डाल देते हैं. ये एक मनौवैज्ञानिक दोष है जो बताता है कि आपमें आत्मविश्वास की भारी कमी है और आप जिम्मेदारी लेने से घबराते हैं. चुनौतियों का सामना करना भी आपके लिए काफी मुश्किल भरा होता है. ऐसा करना किसी भी प्रोफेशन के लिए काफी खतरनाक होता है. अगर आपने इसमें सुधार नहीं किया तो कामयाबी हमेशा आपसे दूर भागेगी. इसलिए जिम्मेदारी लें और उर्जा को सही दिशा में लगाएं.

बॉस की हां में हां मिलाने से बचें

ऑफिस कल्चर में सामान्यत एक बात देखी जाती है हमेशा. लोग बॉस की हां में हां मिलाते रहते हैं. ऐसा करते हुए लोगों को लगता है कि वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों के प्रिय पात्र बने रहेंगे. ऐसा करते हुए लोग अपनी प्रतिभा, काबिलियत और स्वाभिमान सबको दांव पर लगाते हैं. ये बहुत गलत आदत हैं. ऐसा करते हुए लोग अपनी रचनात्मकता के साथ धोखा करते हैं. इसलिए जरुरी है कि जहां जरूरत हो अपनी असहमति जाहिर करें. अगर आपको लगता है कि, किसी प्रोजेक्ट पर आपकी अलग और बेहतर राय हो सकती है तो जरूर दें. ऐसा करने से आपकी रचनात्मकता का भी सम्मान होगा और सही राय जाहिर करने से प्रोफेशनल इज्जत भी बढ़ेगी.

अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलें

ज्यादातर लोग अपने कम्फर्ट जोन में रहना पसंद करते हैं. लोग अपना दायरा बनाते हैं और वहीं खुद को सुरक्षित महसूस करने लगते हैं. लेकिन किसी भी प्रोफेशन के लिए ये सबसे नुकसानदायक है. जब लोग खुद को कम्फर्ट जोन में बांध लेते हैं तो अपनी काबिलियत को व्यक्त करना बंद कर देते हैं. कम्फर्ट जोन की वजह से अतिरिक्त ज्ञान और कौशल हासिल करने का रास्ता भी बंद हो जाता है. ये वैसे अतिरिक्त कौशल और ज्ञान हासिल करने से हमें रोक देता है जिसकी बदौलत हम करियर में आगे बढ़ सकते थे. इसलिए हमेशा नई बातें सीखने को तैयार रहें. नई चुनौतियों को स्वीकार करें. ताकि करियर नई ऊंचाईयां हासिल कर सकें.

दूसरों से खुद की तुलना से बचें

तुलना सकारात्मक भी होती है और नकारात्मक भी. सकारात्मक इस दृष्टिकोण से कि, सहकर्मियों से तुलना होने पर लोग प्रेरित होते हैं बेहतर होने के लिए लेकिन ये होगा तब, जब लोग इसको सकारात्मक और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के तौर पर लेेंगे. लेकिन ऐसा होता नहीं है. कार्यस्थल पर सहकर्मियों से तुलना करते हुए लोग या तो ईर्ष्या, घृणा और हीन भावना का शिकार हो जाते हैं या फिर दूसरों का नुकसान करने के बारे में सोचने लगते हैं. इसका नतीजा व्यक्तिगत स्तर पर खराब तो होता ही है साथ में कार्यस्थल के माहौल, काम की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर डालता है.

एक बात का ध्यान रखें. आपकी प्रतिस्पर्धा खुद से है. आप खुद से ही खुद की तुलना करें, मतलब कि आप बीते दिनों के मुकाबले आज कितना अधिक बेहतर हुए. ऐसा करने से आप में सीखते रहने और बढ़िया करने की प्रवृत्ति पैदा होगी और कामयाबी मिलती जाएगी.

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