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भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में पारदर्शिता की कमी पर निराशा व्यक्त की

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने शांतिरक्षा जनादेशों की रुपरेखा तैयार करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की जवाबदेही एवं पारदर्शिता की कमी पर गहरी निराशा जताते हुए कहा है कि इस वैश्विक संस्था की ‘‘असफलता” के कारण शांतिरक्षकों एवं नागरिकों के हताहत होने की घटनाएं बढी हैं. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक […]

संयुक्त राष्ट्र : भारत ने शांतिरक्षा जनादेशों की रुपरेखा तैयार करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की जवाबदेही एवं पारदर्शिता की कमी पर गहरी निराशा जताते हुए कहा है कि इस वैश्विक संस्था की ‘‘असफलता” के कारण शांतिरक्षकों एवं नागरिकों के हताहत होने की घटनाएं बढी हैं. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक मुखर्जी ने महासभा में शांतिरक्षा अभियानों पर कल आयोजित एक बहस में कहा, ‘सुरक्षा परिषद जिस अपारदर्शी तरीके से और बिना किसी जवाबदेही के शांति अभियानों के आदेश देती है, हम उससे निराश हैं.’ मुखर्जी ने कहा कि ‘इस असफलता’ की मानवीय कीमत संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षकों के साथ साथ नागरिकों के हताहत होने की बढती संख्या से स्पष्ट है. संघर्षों के कारण छह करोड आम नागरिकों का जीवन प्रभावित हुआ है. इन संघर्षों को सुलझाने में एक ‘प्रभावहीन सुरक्षा परिषद असमर्थ है.’

उन्होंने महासभा के मौजूदा 70वें सत्र में सुरक्षा परिषद में शीघ्र सुधारों को प्राथमिकता बनाए जाने की अपील की ताकि ‘इन लाखों आम पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को उम्मीद मिल सके.’ महासचिव ने ‘संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान : शांति अभियानों संबंधी मामलों पर उच्च स्तरीय स्वतंत्र पैनल की सिफारिशों का क्रियान्वयन’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में सिफारिश की हैं कि शांति अभियान को संपन्न करने और जनादेश के प्रभाव एवं इन मामलों में उचित प्रतिक्रियाओं की साझी समझ के लिए परिषद, सचिवालय एवं सहयोगियों के बीच सतत वार्ता आवश्यक है.

मुखर्जी ने कहा कि भारत महासचिव के बयान का मजबूती से समर्थन करता है कि यह वार्ता अभियान की स्थापना से पहले ही शुरू हो जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में यह भी उचित पहचाना गया है कि ‘संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान को बल के स्थायी प्रयोग के जरिए राजनीतिक समाधान लागू करने के लिए तैयार नहीं किया गया है’ और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान सेना के आतंकवाद निरोधक अभियानों के लिए उचित साधन नहीं हैं.’ मुखर्जी ने कहा, ‘हम इस सिफारिश का समर्थन करते हैं क्योंकि संयुक्त राष्ट्र शंतिरक्षक सशस्त्र बंदूकधारियों, सरकार से इतर तत्वों और आतंकवादियों के खिलाफ लक्षित आक्रामक कार्रवाई करने के लिए तैनात नहीं किए जा सकते.’

उन्होंने जोर देकर कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जनादेश की रक्षा एवं आत्मरक्षा के अलावा किसी भी स्थिति में बल का प्रयोग नहीं करने, पक्षों की सहमति और निष्पक्षता के संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षा के बुनियादी सिद्धांतों को नहीं भूलना चाहिए. मुखर्जी ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में संसाधनों के आवंटन की समीक्षा की भी अपील की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान, संसाधनों की जिस बढती कमी का सामना कर रहे हैं उसे काफी हद तक दूर हो सकें. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षक विश्व संस्था के आंख और कान सभी कुछ हैं. सुरक्षा परिषद को उस जमीनी स्तर के मूल्यांकन से ही लाभ हो सकता है जो बलों में योगदान देने वाले देश, सदस्य देशों के बीच प्रत्यक्ष वार्ता के जरिए मुहैया करा सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र के शांतिरक्षा अभियानों में भारत सैनिकों का सबसे बडा योगदानकर्ता है. अब तक 69 मिशनों में से 48 में उसके 185,000 से अधिक सैनिकों ने हिस्सा लिया है. मुखर्जी ने ‘कुछ संयुक्त राष्ट्र कर्मियों” पर लगे दुर्व्यवहार एवं यौन उत्पीडन के आरोपों के बारे में कहा कि ये आरोप संगठन के लिए शर्म की बात हैं और शांतिरक्षकों द्वारा यौन उत्पीडन किए जाने के मामलों को ‘कतई बर्दाश्त’ नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘इस प्रकार का उत्पीडन पुरुषों, महिलाओं एवं बच्चों के जीवन को दु:खदायी बना देता है. हम इस प्रकार के मामलों को बहुत गंभीरता से लेते है. संयुक्त राष्ट्र को एक मानक लागू करना चाहिए और वह यह है कि इसके सभी अभियानों में भले ही वह शांतिरक्षा, शांतिनिर्माण या कोई अन्य अभियान हो, दुर्व्यवहार और यौन उत्पीडन के किसी भी मामले को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनाई जाएगी.’

मुखर्जी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने रोकथाम एवं मध्यस्थता पर फिर से ध्यान केंद्रित करने के साथ संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के संचालन के लिए तीन स्तम्भ प्रस्तावित किए है और वे हैं : मजबूत क्षेत्रीय-वैश्विक भागीदारी, शांति अभियानों की योजना बनाना और उनके संचालन के नये तरीके अपनाना ताकि उन्हें तीव्र बनाया जा सके और संघर्षरत देशों एवं लोगों की आवश्यकताओं के प्रति अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करना. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के इतर वैश्विक संस्था में आयोजित शांतिरक्षा शिखर सम्मेलन के दौरान मौजूदा और नये अभियानों में भारत के बलों का योगदान 10 प्रतिशत बढाने, महिला शांतिरक्षकों को अधिक प्रतिनिधित्व देते हुए तीन अतिरिक्त पुलिस इकाइयों, संयुक्त राष्ट्र मिशन में तकनीकी कर्मियों की तैनाती और भारत एवं फील्ड पर शांतिरक्षकों को अतिरिक्त प्रशिक्षण दिये जाने की घोषणा की थी. मुखर्जी ने कहा, ‘ये प्रतिबद्धताएं दर्शाती हैं कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की जब बात आती है तो भारत अपने वादों को पूरा करने का इच्छुक है.’

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