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ट्रेंड सेटर बन रहे ट्रांसजेंडर

कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. जिस इंसान ने दृढ़ निश्चय कर लिया हो उसके लिए तो अपने लक्ष्य को हासिल करना और भी आसान हो जाता है. दुखद है कि आज भी समाज में ट्रांसजेंडर को वह इज्जत नहीं मिलती जिनके वह हकदार होते हैं. आज हम आपके सामने […]

कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. जिस इंसान ने दृढ़ निश्चय कर लिया हो उसके लिए तो अपने लक्ष्य को हासिल करना और भी आसान हो जाता है. दुखद है कि आज भी समाज में ट्रांसजेंडर को वह इज्जत नहीं मिलती जिनके वह हकदार होते हैं. आज हम आपके सामने ला रहे हैं ऐसे ही मजबूत इरादों वाले ट्रांसजेंडर्स की कहानी जो लोगों के लिए एक बड़ा उदाहरण बनकर सामने आयी हैं, जो ट्रांसजेंडर को आम लोगों से अलग और कमतर मानते हैं. पेश है अनुपम कुमारी की रिपोर्ट.

अपनी पहचान बनाना आसान नहीं

पुरुष प्रधान समाज में अपने वजूद का एहसास कराने के लिए जहां महिलाएं पहले से ही लड़ाई लड़ती रहती हैं, उस समाज में तीसरे लिंग यानी कि ट्रांसजेंडर के लिए भी अपनी पहचान बनाना आसान नहीं है. क्योंकि समाज की सोच के खिलाफ लड़ना कोई आसान काम नहीं होता है. फिर भी इन्होंने अपनी मजबूत इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प के बल पर अपने आपको समाज की मुख्यधारा से जोड़ते हुए अपने अस्तित्व का एहसास इस समाज को कराने का काम किया है.

पढ़-लिख कर कुछ करने का जज्बा

सुप्रीम कोर्ट ने जब तीसरे लिंग के तौर पर इन्हें मान्यता दे दी, तो इससे इनकी राहें तो कुछ आसान हो गयीं पर कई कठिनाईयां भी सामने आयी. फिर भी ये कठिनाईयों के आगे खुद को कमजोर नहीं मानने का निश्चय किया. सिर्फ नाचने -गाने की वर्जनाओं को तोड़कर अब वे पढ़-लिख कर कुछ अलग मुकाम हासिल करने लगी हैं. बॉलीवुड से लेकर बैंकिंग सेवाओं और ब्यूटी कांटेस्ट तक में इन्होंने अपनी एक खास जगह बनायी है.

एचआईवी रोगियों के लिए कर रही हैं काम

पटना निवासी डिंपल जैसमिन की कहानी भी कुछ इसी तरह की है.वह वर्तमान में हाजीपुर के सदर अस्पताल में प्रोग्राम मैनेजर के पद कार्यरत हैं. वह बातती हैं कि अच्छे फैमिली से होने के बाद भी मुझे ट्रांसजेंडर होने का खामियाजा भुगतना पड़ा. मुझे स्कूल की पढ़ाई तक छोड़नी पड़ी. इसके बावजूद मैं ओपेन स्कूलिंग से दसवीं और बारहवीं की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद एएन कॉलेज से मनोविज्ञान विषय से स्नातक स्तरीय पढ़ाई पूरी करने के बाद बिहार सरकार के साथ मिलकर एचआईवी मरीजों के लिए काम कर रही हूं. इस काम में मुझे इज्जत और सम्मान भी मिल रहा है. साथ ही मेरे जैसी अन्य ट्रांसजेंडर महिलाएं आगे बढ़ सकें.इसके लिए उन्हें प्रेरित भी करती हूं.

ट्रेन में पैसा मांग कर पूरी की पढ़ाई

ट्रेन में लोगों से पैसे मांगना एक समय हमारा काम हुआ करता था. पढ़ाई-लिखाई से दूर बस हमें इसकी ही ट्रेनिंग दी जाती थी. मैं भी इसी का हिस्सा रह चुकी हूं. पर मैं इन सब से अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थी. इसलिए शुरू से ही पढ़ाई पर फोकस करती रहती थी. वैशाली जिले के छोटे से जगह की वीरा यादव आज पटना यूनिवर्सिटी की एक चर्चित चेहरा हैं. वह नेट की तैयारी भी कर रही हैं. साथ ही सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्यों को करती हैं. वह बताती हैं कि शुरू से पढ़ने की इच्छा थी. पर समाज और परिवार का साथ नहीं मिल पाने के कारण कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. इसके लिए मैंने ट्रेन में गाना तक गाये और उस पैसे से पटना यूनिवर्सिटी से पीजी तक की पढ़ाई पूरी की. इस दौरान शुरू में कई तरह की परेशानियां भी झेली. पर इन सब के बावजूद मैं कभी टूटी नहीं. अाज ट्रांसजेंडर के उस परंपरागत कार्य को छोड़ अपनी अलग पहचान बना चुकी हूं.

बैंक पीओ के रूप में बनायी पहचान

कंकड़बाग निवासी मोनिका पहली ट्रांसजेंडर वुमेन हैं जो बैंकिंग सेवा में कार्यरत हैं. वह सिंडिकेट बैंक में बैंक पीओ के पद पर कार्यरत हैं. वह बताती हैं कि पढ़ाई में बेतरह होने के बाद भी इन्हें कई समाजिक वर्जनाओं को तोड़ना पड़ा. नवोदय की छात्रा और पटना यूनिवर्सिटी से लॉ की टॉपर रहीं मोनिका ने अाखिरकार अपना लोहा मनवाया. बैंक में नौकरी करने के साथ-साथ वह मॉडलिंग सेक्टर में भी किस्मम अजमाती रहती हैं. इसी वर्ष आयोजित मॉडलिंग फेस ऑफ बिहार का भी खिताब मोनिका ने जीता है. वह बताती हैं कि अच्छे फैमिली बैकग्राउंड से होने के कारण आर्थिक आैर पारिवारिक सर्पोट तो मिला पर समाज की अवहेलना की शिकार भी होना पड़ा. बावजूद मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी. कल तक जो लोग मेरे ट्रांसजेंडर होने का गॉशिप करते थे. आज वह अपने बच्चों को मेरा उदाहरण देते हैं.

राष्ट्रीय स्तर की ब्यूटी कांटेस्ट की हैं प्रतिभागी
माही गुप्ता बिहार की पहली ट्रांसजेंडर वुमेन हैं,जो इस वर्ष मुंबई में आयोजित होने वाले मिस ट्रांसक्वीन इंडिया में भाग ले रही हैं. वे मूल रूप से बिहार के कटिहार जिले की रहने वाली हैं.मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी माही के लिए ट्रांसजेंडर होना किसी अभिशाप से कम नहीं था.बावजूद आज वह नेशनल स्तर के प्रतियोगिता में भाग ले रहीं हैं और बिहार का नाम रौशन कर रही हैं. इतना ही नहीं, माही द्वारा कैंसर रोगियों के लिये चलाये गये जागरूकता शिविर के लिये उन्हें बॉलीवुड अभिनेता विवेक ओबेराय और अनुपम खेर द्वारा सम्मानित भी किया गया है. माही के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं रहा है. वह बताती हैं कि मेरे लिये ट्रांसजेंडर के रूप में खुद को स्थापित करना किसी चुनौती से कम नहीं था. पढ़ाई के दौरान लिंग भेद-भाव जैसी समस्याएं झेलने के बाद भी मैं हिम्मत नहीं हारी. स्नातक स्तरीय पढ़ाई पूरी की. साथ ही ब्यूटिशयन का कोर्स किया. बच्चों को ट्यूशन देने के साथ-साथ बच्चों को खिलौने बनाने की ट्रेनिंग देने का कार्य करते हुए वर्ष 2017 में ब्यूटी प्रजेंट की प्रतियोगिता जीतने के बाद नेशनल स्तर के प्रतियोगिता के लिये आवेदन किया. जिसमें मेेरा सलेक्शन हो गया है.

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