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आखिर किस विचारधारा के रास्ते चलेगा हिंदुस्तान

!!कुरबान अली, वरिष्ठ पत्रकार!! योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाये जाने के बाद बहस तेज है कि भारत किस विचारधारा के रास्ते आगे बढ़ेगा. आज से पढ़िए जाने-माने चिंतकों के विचार. आज पहली कड़ी योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में यह संकेत दे […]

!!कुरबान अली, वरिष्ठ पत्रकार!!

योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाये जाने के बाद बहस तेज है कि भारत किस विचारधारा के रास्ते आगे बढ़ेगा. आज से पढ़िए जाने-माने चिंतकों के विचार. आज पहली कड़ी
योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में यह संकेत दे दिया है कि वह कट्टर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के झंडे को आगे बढ़ाते हुए भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में अग्रसर रहेंगे. यहां ये भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री ने जिस ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत का उद्घोष किया था, उसे वह तार्किक परिणति तक पहुंचाते हुए अगला लोकसभा चुनाव भी उसी आधार पर लड़ेंगे, जिस प्रकार हाल ही में उन्होंने उत्तर प्रदेश में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करके भाजपा को सत्ता दिलायी है. खबरें ये भी है कि वह समय से पहले लोकसभा के चुनाव करा सकते हैं.
और अपने प्रधानमंत्री काल को अगले पांच वर्ष के लिए सुरक्षित कर सकते हैं. इसके पीछे तर्क यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा की तरह लोकसभा चुनावों में अगर उन्हें 3/4 बहुमत हासिल हो जाता है तो संविधान में संशोधन करने और अपने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को प्रभावशाली ढंग से लागू करने का अधिकार भी मिल जायेगा और राज्य सभा में बहुमत ना होने की कमी भी नहीं खलेगी. वैसे भी अगले एक वर्ष में राज्य सभा में भाजपा का बहुमत हो जाने वाला है.
लेकिन, सवाल ये महत्वपूर्ण नहीं है कि प्रधानमंत्री अपने पैतृक संस्था की विचारधारा और हिंदू मतों के ध्रुवीकरण करके क्या हासिल करते हैं, बल्कि सवाल ये है कि क्या ये वही हिंदुस्तान होगा, जिसका सपना कभी महात्मा गांधी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आजाद ने देखा था? जिनकी आजादी के लिए 90 वर्ष चले राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान हजारों लोगों ने अपनी जानों की कुर्बानी दी थी या यह देश सावरकर, हेड़गेवार और गोलवलकर की विचारधारा पर चलेगा, जिसमें गांधी, नेहरू, पटेल और आजाद का नाम मिटा दिया जायेगा?
गौरतलब है कि महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद जब राष्ट्रीय आंदोलन ने जोर पकड़ा, उसी समय हिंदुत्ववादी विचारधारा ने अंगरेजी हुकूमत का सहारा लेकर संघ की स्थापना की, जिसने शुरू में ही ये कह दिया था कि भारत में दो कौमें रहती हैं. एक हिंदू और दूसरी मुसलमान. संघ की इसी विचारधारा को बाद में मुसलिम लीग और उसके नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनाने के लिए इस्तेमाल किया और ‘द्विराष्ट्रवाद’ के सिद्धांत पर देश का बंटवारा करके आजादी हासिल की.
पाकिस्तान नफरत और मजहब के नाम पर बना एक ऐसा कृत्रिम देश था, जिसका 14 अगस्त, 1947 से पहले ना ही भूगोल था ना इतिहास और जहां गैर मुसलिम को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाया गया. लेकिन, हमने देखा कि जो देश एक धर्म और भाषा के नाम पर बना था, वो महज 25 वर्षों के भीतर दो हिस्सों में बंट गया. 1971 में बांग्लादेश के निर्माण ने मुहम्मद अली जिन्ना और उनकी मुसलिम लीग ने ‘द्विराष्ट्रवाद’ के सिद्धांत को पूरी तरह से खारिज कर दिया.
दूसरी ओर, भारत ने आजादी मिलने के बाद एक ऐसा संविधान निर्मित किया, जिसमें देश के सभी नागरिकों को बराबरी के अधिकार दिये गये और कहा गया कि जाति, धर्म, भाषा, लिंग, प्रांत और तंत्र के आधार पर देश मेें किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं होगा. सब लोग सौहार्द और भाईचारे के साथ रहेंगे. 1952 में हुए देश के पहले आम चुनावों में उस संविधान पर देश के बहुमत ने अपनी मुहर लगा दी, तब से आज तक 16 बार हुए आम चुनावों में उस पर मुहर लगती रही है.
(लेखक राज्यसभा टीवी में ओरल हिस्ट्री प्रोजेक्ट के हेड हैं)

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