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वर्ल्ड स्ट्रोक डे आज : समय रहते उपचार से बच सकती है जान

डॉ सतनाम सिंह छाबड़ा डायरेक्टर, न्यूरो एंड स्पाइन डिपाटमेंट, सर गंगाराम अस्पताल, नयी दिल्ली स्ट्रोक और ब्रेन अटैक दो अलग-अलग प्रकार के होते हैं- इस्केमिक प्रकार का ब्रेन अटैक मस्तिष्क में रक्त आपूर्ति कम हो जाने के कारण होता है, जिसकी वजह रक्त आपूर्ति करने वाली आर्टरी में ब्लॉकेज मानी जाती है. यह ब्लॉकेज शरीर […]

डॉ सतनाम सिंह छाबड़ा
डायरेक्टर, न्यूरो एंड स्पाइन डिपाटमेंट, सर गंगाराम अस्पताल, नयी दिल्ली
स्ट्रोक और ब्रेन अटैक दो अलग-अलग प्रकार के होते हैं- इस्केमिक प्रकार का ब्रेन अटैक मस्तिष्क में रक्त आपूर्ति कम हो जाने के कारण होता है, जिसकी वजह रक्त आपूर्ति करने वाली आर्टरी में ब्लॉकेज मानी जाती है. यह ब्लॉकेज शरीर में कहीं भी रक्त थक्का बन जाने से हो सकता है, जो धीरे-धीरे मस्तिष्क की आर्टरी तक पहुंच जाता है और व्यवधान पैदा करता है. एथेरोस्क्लेरोटिक गंदगी के कारण रक्तनलिका (आर्टरी) संकीर्ण होने के बाद यह व्यवधान या ब्लॉकेज पैदा होता है.
जबकि हेमोरेजिक प्रकार का ब्रेन अटैक मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण होता है, जिसकी वजह हाइपरटेंशन, धमनियों की कमजोर दीवारों में दरार (रक्त नलिकाओं में सूजन वाला क्षेत्र), वैस्क्यूलर विकृति (विकृत रक्त नलिकाएं फुलने से बने क्षेत्र) और कई अन्य कारक हैं. अनुमानत: हर 10 में से 8 स्ट्रोक की स्थिति से बचा जा सकता है. इसके लिए डायबिटीज, बढ़ता हुआ कोलेस्ट्रॉल, हाइपर टेंशन और मोटापा से बचाव जरूरी है.
किन्हें खतरा अधिक : स्ट्रोक किसी को भी हो सकता है, बच्चों को भी. हालांकि उम्र बढ़ने के साथ खतरा बढ़ता जाता है. 55 साल के बाद हर दशक बढ़ने के साथ स्ट्रोक का खतरा दोगुना हो जाता है. स्ट्रोक पुरुषों में ज्यादा कॉमन होता है, लेकिन इससे मरने वाले 50 फीसदी लोगों में महिलाएं अधिक होती हैं.
लिंग : पुरुषों में स्ट्रोक का खतरा अधिक रहता है.
नस्ल : पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीय सहित एशियाइयों में स्ट्रोक का खतरा अधिक रहता है. पारिवारिक पृष्ठभूमि भी स्ट्रोक और हृदय रोग में अहम भूमिका निभाती है.
हृदय रोग : एट्रियल फाइब्रिलेशन जैसे रोग और अन्य डिसऑर्डर इस खतरे को बढ़ा देते हैं.
कैरोटिड आर्टरी रोग : कैरोटिड (ग्रीवा) धमनियां मस्तिष्क तक रक्त सप्लाई करती हैं और इसके संकीर्ण होने से ब्रेन अटैक की संभावना बढ़ जाती है.हाइ कोलेस्ट्रॉल लेवल भी यह खतरा बढ़ाता है.
क्या है उपचार : स्ट्रोक का उपचार कुछ बातों पर निर्भर करता है, जैसे- स्ट्रोक के प्रकार, स्ट्रोक द्वारा मस्तिष्क का कौन-सा भाग प्रभावित हुआ है और सबसे महत्वपूर्ण है कि कितनी जल्दी मरीज को अस्पताल पहुंचाया गया और सही डायग्नोसिस.
स्ट्रोक द्वारा जो नुकसान होता है, उसे रोकने के लिए क्लॉट बस्टिंग ड्रग्स के पास 4-5 घंटे से कम का समय होता है. यानी इससे पहले मरीज का अस्पताल पहुंचना बेहद जरूरी है. जिन मरीजों के मस्तिष्क की बड़ी धमनियां ब्लॉक हो गयी हों, उनके लिए मेकेनिकल थ्रॉम्बेक्टोमी की सलाह सबसे अधिक दी जाती है. ब्लॉक हुई धमनियों को खोलने के लिए डॉक्टर मूल क्षेत्र की धमनी से मस्तिष्क के प्रभावित क्षेत्र के लिए एक केथेटर डालते हैं. स्टेंट खुलता है और क्लॉट को जकड़ लेता है.
डॉक्टर उस स्टेंट को क्लॉट सहित बाहर निकाल लेते हैं. इसके लिए विशेष सक्शन ट्यूब का भी इस्तेमाल किया जाता है. यह प्रक्रिया स्ट्रोक के गंभीर लक्षणों के छह घंटे के अंदर की जानी चाहिए. 80 प्रतिशत से अधिक मरीजों में ब्लॉकेज को खोल दिया जाता है और धमनियों में प्रवाह को पुन: स्थापित कर दिया जाता है. लगभग 60 प्रतिशत मरीजों की हालत में तेजी से सुधार आता है और तीन महीने के अंदर वे अपने डेली रूटीन के कामकाज खुद करने लग जाते हैं.
कितना खतरनाक है यह रोग
स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क में नुकसान से पूरा शरीर प्रभावित हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप आंशिक से लेकर गंभीर विकलांगता तक आ सकती है. इनमें पक्षाघात, सोचने, बोलने में दिक्कत और भावनात्मक समस्याएं शामिल हैं. भारत जैसे निम्न आय और मध्य आय वर्ग वाले देश में असमय मौत और विकलांगता का स्ट्रोक एक अहम कारण बनता जा रहा है, क्योंकि इन जगहों की जनसंख्या स्थितियां बदली हैं और कई प्रमुख परिवर्तनकारी रिस्क फैक्टर्स बढ़े हैं. स्ट्रोक झेल चुके ज्यादातर लोग विकलांगता की स्थिति में जी रहे हैं और लंबे समय से उनके स्वास्थ्य लाभ तथा देखभाल का जिम्मा उनका परिवार ही उठा रहा है. इस वजह से उन परिवारों की आर्थिक स्थिति और बदतर हो रही है.
कैसे करता है असर
मस्तिष्क तक रक्त की सप्लाई करने वाली आर्टरी में ब्लॉकेज हो जाने के कारण रक्त आपूर्ति बाधित होने के कारण ब्रेन अटैक होता है.
इससे उस जगह की दिमागी कोशिकाएं मरने लगती हैं, क्योंकि उन्हें काम करने के लिए जो ऑक्सीजन और पोषण मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता. यह ब्लॉकेज शरीर में कहीं भी रक्त का थक्का बन जाने से हो सकता है, जो धीरे-धीरे मस्तिष्क की आर्टरी तक पहुंच जाता है और व्यवधान पैदा करता है. यह एथेरोस्क्लेरोटिक गंदगी के कारण संकीर्ण होती आर्टरी में रक्त थक्का जमने से हो सकता है. इसके कई रिस्क फैक्टर्स हो सकते हैं. 140/90 एमएमएचजी से अधिक रक्तचाप अटैक का खतरा बढ़ा देता है. उम्र बढ़ने के साथ ही खतरा बढ़ता जाता है.
शुरुआती लक्षण और संकेत
चेहरे, बांह, पैर (खासकर शरीर के एक तरफ) में अचानक संवेदन शून्यता या कमजोरी.
अचानक भ्रम की स्थिति, बोलने या किसी बात को समझने में दिक्कत.
एक या दोनों आंखों से देखने में अचानक दिक्कत.
चलने में तकलीफ, चक्कर आना, संतुलन या समन्वय का अभाव.
आम तौर पर सब्राकनोइड हेमरेज में बिना वजह अचानक भयंकर सिरदर्द होने लगता है. इसके साथ ही उल्टी, दौरा या मानसिक चेतना का अभाव जैसी शिकायतें भी होती हैं. इन मामलों में नॉन-कॉन्ट्रास्ट सीटी तत्काल करा लेना चाहिए.
बचाव के लिए उठाएं ये कदम
ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए बीपी, डायबिटीज और वजन को कंट्रोल में रखें. बिना डॉक्टर की सलाह के दवा का सेवन न करें. खाने में हरी सब्जियां और फल की मात्रा बढ़ाएं. लो कोलेस्ट्रॉल, लो सैच्युरेटेड फैट को डायट में शामिल करें. शराब और धूम्रपान को अनिवार्य रूप से छोड़ें और व्यायाम को नियमित दिनचर्या में शामिल करें.
प्रदूषण, तनाव, हाइ ब्लड प्रेशर और स्मोकिंग प्रमुख कारण : प्रदूषण के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्कत होती है. वायु में धूल के कणों की वजह से सांस की नली संकरी हो जाती है. इससे शरीर में ऑक्सिजन की कमी हो जाती है, जिस कारण भी खून की धमनियां फट जाती हैं और दिमाग में खून की सप्लाई बंद हो जाती है. खून की सप्लाई बंद होने से थक्के जमने शुरू हो जाते है, जिससे ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज का खतरा बढ़ जाता है. काम का तनाव, हाइ बीपी और स्मोकिंग भी प्रमुख कारण हैं.
खास बात : लक्षण दिखने के शुरुआती साढ़े चार घंटे में अगर इलाज शुरू हो, तो बड़े नुकसान से बच सकते हैं. जितनी जल्दी क्लॉट खत्म करने की दवा दी जायेगी, उतना ही बेहतर परिणाम मिलेगा.

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