37.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

आबादी बदल रहा है पाकिस्तान

पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग पाकिस्तान पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि वह इन इलाकों में बाहरी लोगों को बसाकर आबादी के संतुलन को बदलने में लगा है. उसका यह रवैया उसके ही वादों के विरुद्ध है. सत्तर के दशक में पाक अधिकृत कश्मीर से गिलगित-बाल्टिस्तान को अलग करने के बाद से […]

पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग पाकिस्तान पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि वह इन इलाकों में बाहरी लोगों को बसाकर आबादी के संतुलन को बदलने में लगा है. उसका यह रवैया उसके ही वादों के विरुद्ध है. सत्तर के दशक में पाक अधिकृत कश्मीर से गिलगित-बाल्टिस्तान को अलग करने के बाद से पाकिस्तान संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन करता रहा है.

साल 1984 में उसने पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों के नागरिकों को गिलगित-बाल्टिस्तान में जमीन खरीदने की पूरी छूट दे दी. इंस्टिट्यूट फॉर गिलगित-बाल्टिस्तान स्टडीज के सेंगे एच शेरिंग के अनुसार, पाकिस्तान ने 1947 से ही अधिकृत कश्मीर में अतिक्रमण किया है और इसके हिस्से को चीन को दे दिया है.
कुछ दशकों से उसका ध्यान जनसंख्या के संतुलन को बदलने पर है. साल 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान को सीमित स्वायत्तता देने का आदेश पत्र जारी किया गया, किंतु 2018 में एक आदेश से इस क्षेत्र पर पूरी तरह से पाकिस्तान को नियंत्रण का अधिकार मिल गया. ऐसा माना जाता है कि यह आदेश पाकिस्तान के इस क्षेत्र को अपना पांचवां प्रांत बनाने के सिलसिले की एक कड़ी है.
वर्तमान में यह क्षेत्र न तो प्रांत है और न ही राज्य. शेरिंग के अनुसार, पाकिस्तान इस क्षेत्र की पानी समेत खनिज संपदा के दोहन के बदले कोई रकम नहीं चुकाता है. वह यातायात पर भी कोई शुल्क नहीं देता है. यूनाइटेड कश्मीर पीपुल्स नेशनल पार्टी के सचिव जमील मकसूद के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर रियासत का विभाजन पाकिस्तान की विस्तारवादी नीति के कारण हुआ और तब से उसके अलोकतांत्रिक शासन के तहत लोग त्रस्त हैं.
शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर, समाज, प्राकृतिक संसाधन आदि तबाह हो चुके हैं. किशोरों और युवाओं को आतंकी शिविरों में ले जाकर आतंकवादी बनाया जा रहा है तथा शिक्षित लोगों को पाकिस्तान के पक्ष में प्रचार करने के काम पर लगाया जा रहा है. मकसूद का मानना है कि पाकिस्तान सोची-समझी रणनीति के तहत अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान को पिछड़ा रखना चाहता है.
पीओके का प्रशासन
गिलगित-बाल्टिस्तान के अलावा पीआके के दूसरे हिस्से कश्मीर, की राजधानी मुजफ्फराबाद है. कश्मीर इंटरिम कॉन्स्टिट्यूशन एक्ट 1974 के तहत इस क्षेत्र का प्रशासन तय किया जाता है. इस एक्ट के तहत पाक कब्जे वाले कश्मीर का राष्ट्रपति ही यहां का संवैधानिक प्रमुख होता है, जबकि यहां के प्रधानमंत्री मुख्य कार्यकारी के तौर पर काम करते हैं.
यहां के प्रधानमंत्री के पास विधानसभा के सदस्यों को चुनने का अधिकार होता है. पाक अधिकृत कश्मीर की विधानसभा में 41 निर्वाचित सदस्य होते हैं, जबकि अन्य सदस्यों में आठ को-ऑप्टेड सदस्य (पांच महिलायें), एक तकनीक या अन्य क्षेत्र से जुड़ा सदस्य, एक उलेमा और विदेश में रह रहा पाक अधिकृत कश्मीर का एक नागरिक, शामिल हाेते हैं.
यहां का अपना सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय व दूसरी छोटी अदालतें भी हैं. इस प्रांत के सरकार के पास कश्मीर काउंसिल की वित्तीय, विधायी और प्रशासनिक शक्तियां हैं, जिन्हें कश्मीर इंटरिम कॉन्स्टिट्यूशन एक्ट 1974 में संशोधन के माध्यम से प्रदान किया गया है. इस प्रकार इस संशोधन ने इस क्षेत्र के काउंसिल की शक्तियों को कम कर दिया है. ठीक वैसे ही जैसे गिलगित-बाल्टिस्तान की शक्तियों को कम कर दिया गया.
पाक अधिकृत कश्मीर काउंसिल के अध्यक्ष पाकिस्तान के प्रधानमंत्री होते हैं. जबकि इसके सदस्यों में पाक कब्जे वाले कश्मीर विधानसभा के छह निर्वाचित सदस्य, इस क्षेत्र के राष्ट्रपति या उनके द्वारा नामित कोई सदस्य, कश्मीर मामलों के संघीय मंत्री और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा नामित (संघीय मंत्रियों और सांसदों में से) पांच सदस्य शामिल होते हैं. लेिकन वास्तविकता यह है िक ये सारे चयन और प्रशासनिक िनर्णय पािकस्तान की सरकार व सेना के
द्वारा होते है़ं
अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान का विरोध
जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की बौखलाहट का एक बड़ा कारण यह भी है कि उसके अवैध कब्जेवाले कश्मीर में भारत के साथ जाने की मांग उठने लगी है. हालांकि लंबे समय से पाक अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान से अलग होने या जम्मू-कश्मीर के साथ मिलने की मांग होती रही है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से ऐसी आवाजें अधिक मुखर हुई हैं.
नियंत्रण रेखा के निकट और मुजफ्फराबाद से सटे इलाकों में अनेक प्रदर्शन हुए हैं. प्रदर्शनकारियों ने पाकिस्तानी सरकार और सेना की ज्यादतियों के विरुद्ध जम कर नारेबाजी की. इससे रोकने के इरादे से पाकिस्तान ने रावलकोट, हजीरा और तेतरी जिलों और अन्य कुछ क्षेत्रों में इंटरनेट की सेवाएं बंद कर दी है. अगस्त के महीने से ही इंटरनेट बंद करने और सैनिकों की गतिविधियां बढ़ाने के समाचार मिल रहे हैं.
पाकिस्तान भले ही अपने कब्जे के इलाकों को आजाद कश्मीर कहता हो, लेकिन वहां की कथित सरकार उसकी कठपुतली से अधिक कुछ नहीं है. वास्तविकता यह है कि पाकिस्तानी सैनिकों की दहशत के साये में वहां शासन चलाया जाता है. उस इलाके की खनिज संपदा का दोहन किया जाता है. जमीनों पर पाकिस्तान के नौकरशाहों व सैनिक अधिकारियों के कब्जे का सिलसिला भी सालों से चल रहा है.
कई जगहों पर आतंकियों के प्रशिक्षण शिविर हैं. इस स्थिति ने वहां के स्थानीय लोगों की जिंदगी लगातार तबाह होती जा रही है. यह भी विडंबना ही है कि अधिकृत कश्मीर को संवैधानिक तौर पर पाकिस्तान का हिस्सा नहीं माना गया है, पर पाकिस्तान के विरुद्ध आवाज उठानेवाले लोग पाकिस्तानी कानून के मुताबिक राजद्रोह और विद्रोह के आरोप में बड़ी संख्या में जेलों में बंद हैं.
यह क्षेत्र संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव और स्थानीय कानून के तहत भी पाकिस्तान का भाग नहीं है. पर्यावरण बचाने और खनिज संपदा के दोहन को रोकने की मांग करने, दमन का विरोध करने और सामान्य आधिकारों की पक्षधरता करने पर भी स्थानीय शासन लोगों को पाकिस्तान-विरोधी बताते हुए भारत का एजेंट कह देता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें