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Friday, March 29, 2024

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टोबा टेकसिंह

बंटवारे के दो-तीन साल बाद पाकिस्तान और हिंदुस्तान की हुकूमतों को ख्याल आया कि अख्लाकी कैदियों की तरह पागलों का भी तबादला होना चाहिए, यानी जो मुसलमान पागल हिंदुस्तान के पागलखानों में हैं उन्हें पाकिस्तान पहुंचा दिया जाये और जो हिंदू और सिख पाकिस्तान के पागलखानों में है उन्हें हिंदुस्तान के हवाले कर दिया जाये. […]

बंटवारे के दो-तीन साल बाद पाकिस्तान और हिंदुस्तान की हुकूमतों को ख्याल आया कि अख्लाकी कैदियों की तरह पागलों का भी तबादला होना चाहिए, यानी जो मुसलमान पागल हिंदुस्तान के पागलखानों में हैं उन्हें पाकिस्तान पहुंचा दिया जाये और जो हिंदू और सिख पाकिस्तान के पागलखानों में है उन्हें हिंदुस्तान के हवाले कर दिया जाये.
मालूम नहीं यह बात माकूल थी या गैर-माकूल थी. बहरहाल, दानिशमंदों के फैसले के मुताबिक इधर-उधर ऊंची सतह की कॉन्फ्रेंस हुई और दिन आखिर एक दिन पागलों के तबादले के लिए मुकर्रर हो गया. अच्छी तरह छान बीन की गयी. वो मुसलमान पागल जिनके लवाहिकीन (संबंधी ) हिंदुस्तान ही में थे वहीं रहने दिये गये थे. बाकी जो थे उनको सरहद पर रवाना कर दिया गया. यहां पाकिस्तान में चूंकि करीब-करीब तमाम हिंदू – सिख जा चुके थे इसलिए किसी को रखने-रखाने का सवाल ही न पैदा हुआ. जितने हिंदू-सिख पागल थे सबके सब पुलिस की हिफाजत में सरहद पर पहुंचा दिये गये.
उधर का मालूम नहीं. लेकिन इधर लाहौर के पागलखानों में जब इस तबादले की खबर पहुंची तो बड़ी दिलचस्प चीमेगोइयां होने लगी. एक मुसलमान पागल जो बारह बरस से हर रोज बाकायदगी के साथ जमींदार पढ़ता था, उससे जब उसके एक दोस्त ने पूछा- मोल्हीसाब. ये पाकिस्तान क्या होता है?
तो उसने बड़े गौरो फिक्र के बाद जवाब दिया-
– हिन्दुस्तान में एक ऐसी जगह है जहां उस्तरे बनते हैं.
ये जवाब सुनकर उसका दोस्त मुतमइन हो गया.
इसी तरह एक और सिख पागल ने एक दूसरे सिख पागल से पूछा-
– सरदार जी हमें हिंदुस्तान क्यों भेजा जा रहा है – हमें तो वहां की बोली नहीं आती.
दूसरा मुस्कुराया-
– मुझे तो हिंदुस्तान की बोली आती है – हिंदुस्तानी बड़े शैतानी आकड़ -आकड़ फिरते हैं.
एक मुसलमान पागल ने नहाते-नहाते ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’ का नारा इस जोर से बुलंद किया कि फर्श पर फिसल कर गिरा और बेहोश हो गया.
बाज पागल ऐसे थे जो पागल नहीं थे. उनमें अकसरियत ऐसे कातिलों की थी जिनके रिश्तेदारों ने अफसरों को दे – दिलाकर पागलखाने भिजवा दिया था कि फांसी के फंदे से बच जायें. ये कुछ-कुछ समझते थे कि हिंदुस्तान क्या तकसीम हुआ और यह पाकिस्तान क्या है, लेकिन सही वाकेआत से ये भी बेखबर थे.
अखबारों से कुछ पता नहीं चलता था और पहरेदार सिपाही अनपढ़ और जाहिल थे. उनकी गुफ्तगू (बातचीत) से भी वो कोई नतीजा बरआमद नहीं कर सकते थे. उनको सिर्फ इतना मालूम था कि एक आदमी मुहम्मद अली जिन्ना है, जिसको कायदे आजम कहते हैं. उसने मुसलमानों के लिए एक अलाहेदा मुल्क बनाया है जिसका नाम पाकिस्तान है. यह कहां है? इसका महल-ए-वकू (स्थल) क्या है इसके मुतअल्लिक वह कुछ नहीं जानते थे.
यही वजह है कि पागल खाने में वो सब पागल जिनका दिमाग पूरी तरह माउफ नहीं हुआ था, इस मखमसे में गिरफ्तार थे कि वो पाकिस्तान में हैं या हिंदुस्तान में. अगर हिंदुस्तान में हैं तो पाकिस्तान कहां है. अगर वो पाकिस्तान में है तो ये कैसे हो सकता है कि वो कुछ अरसा पहले यहां रहते हुए भी हिंदुस्तान में थे. एक पागल तो पाकिस्तान और हिंदुस्तान, और हिंदुस्तान और पाकिस्तान के चक्कर में कुछ ऐसा गिरफ्तार हुआ कि और ज्यादा पागल हो गया.
झाडू देते-देते एक दिन दरख्त पर चढ़ गया और टहनी पर बैठ कर दो घंटे मुस्तकिल तकरीर करता रहा, जो पाकिस्तान और हिंदुस्तान के नाजुक मसअले पर थी. सिपाहियों ने उसे नीचे उतरने को कहा तो वो और ऊपर चढ़ गया. डराया, धमकाया गया तो उसने कहा-
– मैं न हिंदुस्तान में रहना चाहता हूं न पाकिस्तान में. मैं इस दरख्त पर ही रहूंगा.
एक एमएससी पास रेडियो इंजीनियर में, जो मुसलमान था और दूसरे पागलों से बिल्कुल अलग-थलग, बाग की एक खास रविश (क्यारी) पर सारा दिन खामोश टहलता रहता था, यह तब्दीली नमूदार हुई कि उसने तमाम कपड़े उतारकर दफादार के हवाले कर दिये और नंगधडंग सारे बाग में चलना शुरू कर दिया.
एक मोटे मुसलमान पागल ने, जो मुस्लिम लीग का एक सरगर्म कारकुन था और दिन में पंद्रह-सोलह मरतबा नहाता था, यकलख्त (एकदम) यह आदत तर्क (छोड़)कर दी. उसका नाम मोहम्मद अली था.
चुनांचे उसने एक दिन अपने जिंगले में ऐलान कर दिया कि वह कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना है. उसकी देखादेखी एक सिख पागल मास्टर तारासिंह बन गया. करीब था कि उस जिंगले में खून-खराबा हो जाय, मगर दोनों को खतरनाक पागल करार देकर अलहदा-अलहदा बन्द कर दिया गया.
यूरोपियन वार्ड में दो एंग्लो-इंडियन पागल थे. उनको जब मालूम हुआ कि हिंदुस्तान को आजाद करके अंग्रेज चले गये हैं तो उनको बहुत रंज हुआ.
वह छुप-छुप कर इस मसअले पर गुफ्तगू करते रहते कि पागलखने में उनकी हैसियत क्या होगी. एक सिख था जिसको पागलखाने में दाखिल हुए पंद्रह बरस हो चुके थे. हर वक्त उसकी जबान पर अजीबोगरीब अल्फाज सुनने में आते थे,’ओपड़ी गुड़गुड़ दी एन्क्स दी बेध्याना विमन्ग दी बाल आफ दी लालटेन.’ वो न दिन में सोता था न रात में. पहरेदारों का कहना था कि पंद्रह बरस के तवील अर्से में एक एक लम्हे के लिए भी नहीं सोया. लेटा भी नहीं था. अलबना किसी दीवार के साथ टेक लगा लेता था.
हर वक्त खड़ा रहने से उसके पांव सूज गये थे. पिंडलियां भी फूल गयीं थीं. मगर इस जिस्मानी तकलीफ के बावजूद वह लेटकर आराम नहीं करता था.
हिंदुस्तान-पाकिस्तान और पागलों के तबादले के मुतअिल्लक जब कभी पागलखाने में गुफ्तगू होती थी तो वह गौर से सुनता था. कोई उससे पूछता कि उसका क्या खयाल है तो बड़ी संजीदगी से जवाब देता, ‘ओपड़ी गुड़गुड़ दी एन्क्स दी बेध्याना विमन्ग दी वाल आफ दी पाकिस्तान गवर्नमेंट.’
लेकिन बाद में आफ दी पाकिस्तान गवर्नमेंट की जगह आफ दी टोबा टेकसिंह गवर्नमेंट ने ले ली और उसने दूसरे पागलों से पूछना शुरू किया कि टोबा टेकसिंह कहां है जहां का वो रहने वाला है. लेकिन किसी को भी नहीं मालूम था कि वो पाकिस्तान में है या हिंदुस्तान में. जो यह बताने की कोशिश करते थे वो खुद इस उलझाव में गिरफ्तार हो जाते थे कि स्याल कोटा पहले हिंदुस्तान में होता था, पर अब सुना है कि पाकिस्तान में है.
क्या पता है कि लाहौर जो अब पाकिस्तान में है कल हिंदुस्तान में चला जायेगा या सारा हिंदुस्तान ही पाकिस्तान बन जायेगा. और यह भी कौन सीने पर हाथ रखकर कह सकता था कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों किसी दिन सिरे से गायब नहीं हो जायेंगे.
उस सिख पागल के केस छिदरे होके बहुत मुख्तसर रह गये थे. चूंकि वह बहुत कम नहाता था इसलिए दाढ़ी और बाल आपस में जम गये थे जिनके बाइस (कारण) उसकी शक्ल बड़ी भयानक हो गयी थी. मगर आदमी बेजरर (अहानिकारक) था. पंद्रह बरसों में उसने किसी से झगड़ा-फसाद नहीं किया था.
पागलखाने के जो पुराने मुलाजिम थे वो उसके मुतअलिक इतना जानते थे कि टोबा टेकसिंह में उसकी कई जमीनें थीं. अच्छा खाता-पीता जमींदार था कि अचानक दिमाग उलट गया. उसके रिश्तेदार लोहे की मोटी-मोटी जंजीरों में उसे बांधकर लाये और पागलखाने में दाखिल करा गये.
महीने में एक बार मुलाकात के लिए ये लोग आते थे और उसकी खैर-खैरियत दरयाफ्त करके चले जाते थे. एक मुफ्त तक ये सिलसिला जारी रहा, पर जब पाकिस्तान हिंदुस्तान की गड़बड़ शुरू हुई तो उनका आना बंद हो गया.
उसका नाम बिशन सिंह था. मगर सब उसे टोबा टेकसिंह कहते थे. हर महीने जब उसके अजीज व अकारिब (संबंधी) उससे मिलने के लिए आते तो उसे अपने आप पता चल जाता था. पाकिस्तान और हिंदुस्तान का किस्सा शुरू हुआ तो उसने दूसरे पागलों से पूछना शुरू किया कि टोबा टेकसिंह कहां है. जब इत्मीनान बख्श (सन्तोषजनक) जवाब न मिला तो उसकी कुरेद दिन-ब- दिन बढ़ती गयी. अब मुलाकात नहीं आती है. पहले तो उसे अपने आप पता चल जाता था कि मिलने वाले आ रहे हैं, पर अब जैसे उसके दिल की आवाज भी बंद हो गयी थी जो उसे उनकी आमद की खबर दे दिया करती थी.
पागलखाने में एक पागल ऐसा भी था जो खुद को खुदा कहता था. उससे जब एक दिन बिशन सिंह ने पूछा कि टोबा टेकसिंह पाकिस्तान में है या हिंदुस्तान में तो उसने हस्बेआदत (आदत के अनुसार) कहकहा लगाया और कहा-
– वो न पाकिस्तान में है न हिंदुस्तान में, इसलिए कि हमने अभी तक हुक्म नहीं लगाया.
बिशन सिंह ने इस खुदा से कई मरतबा बड़ी मिन्नत समाजत से कहा कि वो हुक्म दे दे ताकि झंझट खत्म हो, मगर वो बहुत मसरूफ था, इसलिए कि उसे ओर बेशुमार हुक्म देने थे. एक दिन तंग आकर वह उस पर बरस पड़ा, ‘ओपड़ी गुड़गुड़ दी एंक्स दी बेध्याना विमंग दी वाल आफ वाहे गुरुजी दा खलसा एन्ड वाहे गुरूजी की फतह. जो बोले सो निहाल सत सिरी अकाल.’
उसका शायद यह मतलब था कि तुम मुसलमान के खुदा हो, सिखों के खुदा होते तो जरूर मेरी सुनते. तबादले से कुछ दिन पहले टोबा टेकसिंह का एक मुसलमान दोस्त मुलाकात के लिए आया. पहले वह कभी नहीं आया था. जब बिशन सिंह ने उसे देखा तो एक तरफ हट गया और वापस आने लगा मगर सिपाहियों ने उसे रोका. ये तुमसे मिलने आया है – तुम्हारा दोस्त फजलदीन है.
बिशन सिंह ने फजलदीन को देखा और कुछ बड़बड़ाने लगा. फजलदीन ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर हाथ रखा.- मैं बहुत दिनों से सोच रहा था कि तुमसे मिलूं लेकिन फुर्सत ही न मिली. तुम्हारे सब आदमी खैरियत से चले गये थे मुझसे जितनी मदद हो सकी मैने की. तुम्हारी बेटी रूप कौर… वह कुछ कहते कहते रूक गया . बिशन सिंह कुछ याद करने लगा – बेटी रूप कौर
फजलदीन ने रूक कर कहा – हां वह भी ठीक ठाक है. उनके साथ ही चली गयी थी.
बिशन सिंह खामोश रहा. फजलदीन ने कहना शुरू किया –
उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम्हारी खैर-खैरियत पूछता रहूं. अब मैंने सुना है कि तुम हिंदुस्तान जा रहे हो. भाई बलबीर सिंह और भाई बिधावा सिंह से सलाम कहना बिशन सिंह ने मरून्डे की पोटली लेकर पास खड़े सिपाही के हवाले कर दी और फजलदीन से पूछा- टोबा टेकसिंह कहां है?
– टोबा टेकसिंह… उसने कद्रे हैरत से कहा– कहां है! वहीं है, जहां था.
बिशन सिंह ने पूछा – पाकिस्तान में या हिंदुस्तान में?
-हिंदुस्तान में… नहीं-नहीं पाकिस्तान में…
तबादले की तैयारियां मुकम्मल हो चुकी थीं. इधर से उधर और उधर से इधर आने वाले पागलों की फेहरिस्तें (सूचियां) पहुंच गयी थीं, तबादले का दिन भी मुकरर्र हो गया था. सख्त सर्दियां थीं. जब लाहौर के पागलखाने से हिंदू-सिख पागलों से भरी हुई लारियां पुलिस के मुहाफिज दस्ते के साथ रवाना हुई तो मुतअल्लिका (संबंधित ) अफसर भी हमराह थे. पागलों को लारियों से निकालना और उनको दूसरे अफसरों के हवाले करना बड़ा कठिन काम था. बाज तो बाहर निकलते ही नहीं थे.
जो निकलने पर रजामंद होते थे, उनको संभालना मुश्किल हो जाता था क्योंकि इधर-उधर भाग उठते थे. पागलों की अकसरियत इस तबादले के हक में नहीं थी. इसलिए कि उनकी समझ में आता था कि उन्हें अपनी जगह से उखाड़कर कहां फेंका जा रहा है. चंद जो कुछ सोच रहे थे- ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे. दो-तीन मरतबा फसाद होते-होते बचा, क्योंकि बाज मुसलमान और सिखों को ये नारे सुनकर तैश आ गया.
जब बिशन सिंह की बारी आयी ओर वाहगा के उस पार मुतअल्लका अफसर उसका नाम रजिस्टर में दर्ज करने लगा तो उसने पूछा- टोबा टेकसिंह कहां है? पाकिस्तान में या हिन्दुस्तान में? -मुतअल्लका अफसर हंसा – पाकिस्तान में. यह सुनकर विशनसिंह उछलकर एक तरफ हटा और दौड़कर अपने बाकी साथियों के पास पहुंच गया.
पाकिस्तानी सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और दूसरी तरफ ले जाने लगे. मगर उसने चलने से इन्कार कर दिया, और जोर-जोर से चिल्लाने लगा – टोबा टेकसिंह कहां है ओपड़ी गुड़गुड़ दी एन्क्स दी बेध्याना विमन्ग दी वाल आफ दी टोबा टेकसिंह एंड पाकिस्तान. उसे बहुत समझाया गया कि देखों अब टोबा टेकसिंह हिन्दुस्तान में चला गया है.अगर नहीं गया तो उसे फौरन वहां भेज दिया जायेगा. मगर वो न माना. जब उसको जबर्दस्ती दूसरी तरफ ले जाने की कोशिश की गयी तो वह दरम्यान में एक जगह इस अंदाज में अपनी सूजी हुई टांगों पर खड़ा हो गया जैसे अब उसे वहां से कोई ताकत नहीं हटा सकेगी.
आदमी चूंकि बेजरर था इसलिए उससे मजीद जबर्दस्ती न की गयी. उसको वहीं खड़ा रहने दिया गया और बाकी काम होता रहा. सूरज निकलने से पहले शांत बिशनसिंह हलक से एक चीख निकली – इधर-उधर से कई अफसर दौड़ आये और देखा कि वो आदमी जो पंद्रह बरस तक दिन-रात अपनी टांगों पर खड़ा रहा, औंधे मुंह लेटा था. उधर खारदार तारों के पीछे हिन्दुस्तान था – इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान. दरमियान में जमीन के इस टुकड़े पर, जिसका कोई नाम नहीं था, टोबा टेकसिंह पड़ा था.
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