34.1 C
Ranchi
Friday, March 29, 2024

BREAKING NEWS

Trending Tags:

पुलिस शहीद दिवस पर विशेष : जिनके पैरों में छाले हैं, मैं उनकी आंखों का जल हूं

कुमार अभिनव पुलिस शहीद दिवस गर्व से भर देने वाला दिन है. देश-समाज की बेहतरी के लिए शहादत धारण करना एक पवित्र संकल्प की तरह भी है. इसलिए इस दिवस का स्मरण प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य भी है. पुलिस नाम की जो संस्था है, उसका काम पीड़ित व सताये हुये लोगों के दु:खों को दूर […]

कुमार अभिनव
पुलिस शहीद दिवस गर्व से भर देने वाला दिन है. देश-समाज की बेहतरी के लिए शहादत धारण करना एक पवित्र संकल्प की तरह भी है. इसलिए इस दिवस का स्मरण प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य भी है.
पुलिस नाम की जो संस्था है, उसका काम पीड़ित व सताये हुये लोगों के दु:खों को दूर करना है. इसका विकास हर देश समाज तथा कालखंड में बदलती परिस्थितियों के अनुसार होता रहा है. पुलिस शक्ति की विचारधारा उतनी ही पुरानी है, जितनी की मानव सभ्यता. जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया, लोगों के बीच व्यवस्था बनाये रखने की आवश्यकता बढ़ती गयी. इस विकास यात्रा की लंबी और गहरी ऐतिहासिकता रही है.
महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर अफगान व मुगल शासकों ने अरबी एवं जागीरदारी प्रथा लागू कर फौजदार एवं कोतवाल नामक दो संस्थाएं स्थापित कीं. दो जनवरी, 1757 को इस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता पर पुन: कब्जा करने के बाद अगस्त, 1769 में युरोपियन सुपरवाइजर के पदों पर नियुक्ति की. वर्ष 1804 में लार्ड बेंटिक ने पुलिस कमेटी बनायी. 17 अगस्त, 1860 को अंग्रेजी हुकूमत ने पहला पुलिस कमीशन बनाया. मार्च, 1861 में पुलिस एक्ट लागू हुआ. कालांतर में पुलिस व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन हुए जो वर्तमान अब भी जारी है.
स्वतंत्र भारत में 21 अक्तूबर, 1959 का दिन एक एतिहासिक दिन है. उस दिन लद्दाख सीमा पर भारत की पुलिस के बीस जवानों की टुकड़ी पर चीनी सेना ने घातक हमला किया था, परंतु पुलिस के जवानों ने दिलेरी एवं बहादुरी से मुकाबला किया था.
उस संघर्ष में 10 जवानों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी. इसी शहादत की स्मृति में हर वर्ष 21 अक्तूबर को पुलिस शहीद दिवस मनाया जाता है. तब से आज तक गत 61 वर्षों में 40 हजार से अधिक पुलिसकर्मी खूंखार अपराधियों, आतंकियों एवं नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये हैं.
पुलिस हमारी आंतरिक सुरक्षा की पहली दीवार है. आतंकवादी हमला, नक्सली हमला, धार्मिक दंगा, डकैती, लूट, अतिक्रमण हटाने से लेकर जंगल तथा खनन माफियाओं पर लगाम, हिंसक भीड़ से जानमाल की सुरक्षा आदि अनेका कार्य पुलिस के दायित्वों में शामिल हैं.
अवकाश का दिन और न ही ड्यूटी के घंटे निर्धारित हैं. लोगों के लिए होली, दीवाली, ईद, बकरीद, मेले, उत्सव सब हैं, परंतु पुलिस के लिए इन त्योहारों का अर्थ सिर्फ ड्यूटी है. यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि पुलिस के कार्यों में समाज की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है.
शहरी क्षेत्रों में 1000 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 1500 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी का अनुपात है. जाहिर है इस दायित्व और वस्तुस्थिति के बीच बड़ा गैप है. ऐसे में महज आलोचना से नहीं, बल्कि पुलिस को साधन संपन्न, पारदर्शी, निष्पक्ष और जवाबदेह बनाने की जरूरत है.
जरूरत है एक ऐसे मॉडल पुलिस की जो 21वीं सदी में पुलिस लोगों की हिमालयी अपेक्षाओं पर खरा उतरने लिए कारगर हो. बिहार में महत्वपूर्ण थानों को अपग्रेड कर पुलिस निरीक्षक को स्तरीय बनाकर, डीएसपी-एसडीपीओ के पदों को बढ़ाकर, ट्रैफिक में पदों को बढ़ाकर व्यवस्था में सुधार किया जाता सकता है. नयी व्यवस्था के तहत हर रैंक में हर जिले में स्मार्ट पुलिसकर्मी-पदाधिकारी का अवार्ड देकर पुलिस को स्मार्ट व जवाबदेह बनने की दिशा में बढ़ा जा सकता है.
और अंत में:
मैं मर जाऊं तो सिर्फ मेरी पहचान लिख देना
मेरे खून से मेरे सर पर जन्म स्थान लिख देना
कोई पूछे तुमसे स्वर्ग के बारे में तो
एक कागज के टुकड़े पर हिंदुस्तान लिख देना.
-लेखक सीबीआइ में पदस्थापित हैं
You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

अन्य खबरें