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छात्र राजनीति से मोदी के चाणक्य तक

दिल्‍ली :अपनी बेहतरीन वाक् शैली के लिए लोगों के बीच लोकप्रिय पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली हमारे बीच नहीं रहे. वर्तमान भारतीय राजनीति में जिन नेताओं की सबसे ज्यादा चर्चा होती है, उनमें भाजपा के कद्दावर नेता और देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का नाम आता है. वह मोदी सरकार के सबसे ताकतवर […]

दिल्‍ली :अपनी बेहतरीन वाक् शैली के लिए लोगों के बीच लोकप्रिय पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली हमारे बीच नहीं रहे. वर्तमान भारतीय राजनीति में जिन नेताओं की सबसे ज्यादा चर्चा होती है, उनमें भाजपा के कद्दावर नेता और देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का नाम आता है. वह मोदी सरकार के सबसे ताकतवर मंत्रियों व ‘चाणक्य’ माने जाते थे. ऊर्जावान संगठनकर्ता तथा सक्षम रणनीतिकार अरुण जेटली ने अपना राजनीतिक करियर छात्र जीवन में ही शुरू कर लिया था. 1974 में वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ‘संपूर्ण क्रांति आंदोलन’ से जुड़ गये थे.

जयप्रकाश नारायण ने जेटली को राष्ट्रीय समिति का संयोजक बनाया था. 1975-77 तक देश में आपातकाल के दौरान उनको मीसा एक्ट के तहत 19 महीने तक नजरबंद रहना पड़ा था. मीसा हटने के बाद जेटली जनसंघ में शामिल हो गये. 1991 में पहली बार जेटली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य बने. इसके बाद वह काफी लंबे वक्त तक भाजपा-प्रवक्ता रहे.
1999 में एनडीए सरकार बनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जेटली को केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया. अटल जी ने उन्हें सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की जिम्मेदारी सौंपी. राम जेठमलानी के इस्तीफा देने के बाद जेटली को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गयी थी.
मोदी का दिल्ली की लुटियंस राजनीति से कराया था परिचय
1995 से 2001 के बीच गुजरात भाजपा में उठा-पटक का दौर चल रहा था. इस दौरान मोदी दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में रह रहे थे. यहीं वह जेटली के संपर्क में आये. जानकारों के मुताबिक, जेटली का दिल्ली में बेहद शानदार सर्किल था.
उन्होंने मोदी का उसी तरह ख्याल रखा, जैसा कि वह अपने बहुत सारे नजदीकियों का रखा करते थे. कहा जाता है कि मोदी को सीएम के तौर पर गुजरात भेजने के फैसले के पीछे आडवाणी के साथ जेटली भी खड़े थे. 2014 में पहली बार सत्ता पर काबिज होने के बाद नरेंद्र मोदी को दिल्ली की लुटियंस राजनीति से परिचित कराने वाले जेटली ही थे. मोदी एक करिश्माई जन नेता के तौर पर उभरे, जिनके पास गजब की भाषण शैली है.
बड़ी िजम्मेदारियां संभालीं
2000 में जेटली पहली बार राज्यसभा सांसद बने. जून 2009 से वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने. पार्टी में एक महत्वपूर्ण रणनीतिकार से लेकर कई बड़ी जिम्मेदारियां संभालीं.
जेटली का ब्लॉग ‘कानून और जम्मू कश्मीर’ हमेशा याद किया जायेगा
कश्मीर को लेकर अरुण जेटली हरदम बेबाक रहे. जब भी मौका आया उन्होंने कश्मीर और अखंड भारत पर खुल कर अपनी बात रखी. वह व्यक्ति का विरोध न करके नीति का विरोध करते थे. यही वजह थी कि सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, हर कोई उनकी बात को बड़े गौर से सुनता था. एक बार कश्मीर से जुड़े एक मामले को लेकर उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की नीतियों पर सवाल उठाये.
उनका ब्लॉग ‘कानून और जम्मू-कश्मीर’ इस बात का प्रमाण है. इसमें उन्होंने लिखा, जम्मू-कश्मीर का सात दशक का इतिहास बदलते भारत के साथ कई सवालों का सामना कर रहा है. ज्यादातर भारतीयों का मानना है कि कश्मीर मामले में नेहरू का अपनाया रास्ता ऐतिहासिक गलती थी.
मोदी का दिल्ली की लुटियंस राजनीति से कराया था परिचय
1995 से 2001 के बीच गुजरात भाजपा में उठा-पटक का दौर चल रहा था. इस दौरान मोदी दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में रह रहे थे. यहीं वह जेटली के संपर्क में आये. जानकारों के मुताबिक, जेटली का दिल्ली में बेहद शानदार सर्किल था. उन्होंने मोदी का उसी तरह ख्याल रखा, जैसा कि वह अपने बहुत सारे नजदीकियों का रखा करते थे.
कहा जाता है कि मोदी को सीएम के तौर पर गुजरात भेजने के फैसले के पीछे आडवाणी के साथ जेटली भी खड़े थे. 2014 में पहली बार सत्ता पर काबिज होने के बाद नरेंद्र मोदी को दिल्ली की लुटियंस राजनीति से परिचित कराने वाले जेटली ही थे. मोदी एक करिश्माई जन नेता के तौर पर उभरे, जिनके पास गजब की भाषण शैली है.
अर्थव्यवस्था के लिए उठाये कई ठोस कदम
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अरुण जेटली को भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में कई बड़े सुधारात्मक कदम और उनके साहसिक कार्यान्वयन के लिए जाना जायेगा.
जीएसटी : यह अब तक का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म माना जाता है. इसके शिल्पकार जेटली ही थे. राज्यों को इसके लिए मनाना आसान नहीं था. बतौर वित्त मंत्री, उन्होंने यह कर दिखया.
इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड : इसकी भी गिनती महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में होती है. बैंकिंग व्यवस्था में ढांचागत सुधार के तहत यह कानून बनाया गया.
मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी : मौद्रिक नीति बनाने में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के उद्देश्य से 2016 में इसका गठन भी जेटली के महत्वपूर्ण आर्थिक फैसलों में शामिल है.
एनपीए की सफाई : जेटली ने नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स की बढ़ती समस्या से निपटने में बहुत हद तक कामयाबी हासिल की.
बैंकों का एकीकरण : स्टेट बैंक में उसके पांच असोसिएट बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय सहित अन्य बैंकों का एकीकरण बेशक जेटली के महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल है.
एफडीआइ का उदारीकरण : जेटली के प्रयासों से डिफेंस, इंश्योरेंस व एविएशन सेक्टर भी एफडीआइ के लिए खोले गये.
बजट सुधार : आम बजट में ही रेल बजट के मिलाने, बजट पेश करने की टाइमिंग में बदलाव जैसे बड़े कदम.
राजनीतिक यात्रा
1974 लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ‘संपूर्ण क्रांति आंदोलन’ से जुड़े
1975-77 आपातकाल के दौरान मीसा एक्ट के तहत 19 माह तक नजरबंद रहे
1977 जनसंघ में शामिल. दिल्ली अभाविप के अध्यक्ष
1991 भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने
1999 वाजपेयी सरकार में सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने
2003 कानून और न्याय मंत्री व उद्योग मंत्री के रूप में नियुक्त
2009 राज्यसभा में विपक्ष के नेता के चुने गये
2014 मोदी कैबिनेट में वित्त और रक्षा मंत्री बने
हाइकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में वकालत
80 के दशक में अरुण जेटली ने देश के विभिन्न हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बतौर वकील अपनी पहचान बनायी. जनवरी 1990 में वह दिल्ली हाइकोर्ट के नामित वरिष्ठ अधिवक्ता बने. 1989 में तत्कालीन वीपी सिंह की सरकार ने जेटली को देश का एडिशनल सॉलीसीटर जनरल बनाया.
वकालत के कॉरियर में जेटली शरद यादव (तब जनता दल), लालकृष्ण आडवाणी (भाजपा), माधव राव सिंधिया (कांग्रेस) के वकील रहे. तमाम नामी कंपनियों के वकील रहे और अपनी जगह बनायी.
अपने घर पर करवायी थी क्रिकेटर सहवाग की शादी
अरुण जेटली अपनी दरियादिली को लेकर भी अक्सर सुर्खियों में रहते थे. खेल जगत से भी उनका काफी करीबी रिश्ता था. 1999 में वह दिल्ली जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बने. वह बीसीसीआइ के उपाध्यक्ष भी रहे.
उनका क्रिकेट प्रेम उस वक्त काफी चर्चा में रहा था, जब उन्होंने िक्रकेटर वीरेंद्र सहवाग की शादी के लिए अपना सरकारी आवास दे दिया था. इस शादी में खेल, बॉलीवुड और राजनीति जगत की कई हस्तियों ने शिरकत की.
पंजाबी खाने के थे शौकीन पीएम भी रहते थे चिंतित
जेटली खाने के बड़े शौकीन थे. पंजाबी खाना उनकी खास रुचियों में था. डाॅक्टरों की मनाही के बावजूद वह मुंह का स्वाद पूरा करने से नहीं चूकते थे. जब उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा, तो प्रधानमंत्री ने जेटली को खाने पर नियंत्रण के लिए टोकना शुरू कर दिया था. यहां तक कि पीएम जेटली के घर पर फोन करके उनके खान-पान की जानकारी लेने लगे थे.
70 के दशक से मुड़ कर पीछे नहीं देखा
जेटली की छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि रही और 1974 के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. हालांकि वह कभी चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहते थे. उन्होंने परीक्षा भी दी थी, लेकिन कहते हैं उनके भाग्य में कुछ और लिखा था.
छात्र नेता से हाइकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित वकील बने अरुण जेटली को 2014-2019 तक मोदी सरकार की कैबिनेट का ताकतवर मंत्री बनना था. मंत्री ही नहीं केंद्र सरकार का संकट मोचक भी बनना था.
डीयू प्रथम राजनीतिक पाठशाला
दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर काॅलेज के विद्यार्थी जेटली ने श्रीराम काॅलेज से बीकॉम में दाखिला लिया. बीकॉम करने के बाद वह दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी में प्रवेश लिया और 1977 में लॉ ग्रेजुएट की डिग्री पाने से पहले अरुण जेटली ने राजनीति में भी काफी कुछ हासिल कर लिया था.
वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी जुड़े थे. 1974 में वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये. यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ. बीच में वकालत के करियर को धार दी, मगर 1991 में राजनीति में लौट आये. यहां से राजनीतिक सफर का रुख सत्ता की ओर हुआ और इसने भारतीय राजनीति की दिशा बदलने में बड़ा भूमिका निभायी.
दिल्ली से था दिली रिश्ता
जेटली का दिल्ली से करीबी रिश्ता रहा. दिल्ल्ी उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि, दोनों रही. इस वजह से दिल्ली की सियासी नब्ज को वह बखूबी समझते थे. समय के साथ उनका राजनीतिक कद जरूर बढ़ता गया, पर दिल्ली से उनका जुड़ाव पहले की तरह ही बना रहा.
बात चाहे दिल्ली भाजपा की संगठनात्मक जिम्मेदारी की हो या फिर चुनावी तैयारी, हर मामले में उनकी राय व पसंद पार्टी नेतृत्व के लिए विशेष मायने रखती थी. लिहाजा, यहां के नेताओं व कार्यकर्ताओं का उनसे विशेष लगाव था. दिल्ली विवि से सियासत की शुरुआत कर वह भारतीय राजनीति में छा गये.
आपातकाल में अटल और आडवाणी के साथ जेल यात्रा
आपातकाल के दौरान जेटली को तिहाड़ जेल के जिस सेल में रखा गया था, उसमें 11 और बड़े राजनीतिक कैदी थे. इनमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और केआर मलकानी भी थे. इस जेल यात्रा ने उन्हें अटल-आडवाणी के करीब लाया. यहीं नानाजी देशमुख के भी संपर्क में वह आये.
लंदन में ‘ट्यूब’ से करते थे सफर
कई बार ऐसा हुआ, जब लंदन जाने पर वहां के चोटी के उद्योगपति जेटली के लिए हवाई अड्डे पर बड़ी-बड़ी गाड़ियां भेजते थे, मगर अरुण हमेशा हीथ्रो हवाई अड्डे से लंदन आने के लिए ‘ट्यूब’ (भूमिगत रेल) का इस्तेमाल करते थे. बहुत से लोग ऐसा तब करते हैं जब लोग उन्हें देख रहे होते हैं, लेकिन अरुण तब भी ऐसा करते थे जब उन्हें कोई नहीं देख रहा होता था.
जब अपनी जेब से चुकाया किराया
अरुण जब वाजपेयी मंत्रिमंडल में मंत्री बने, तो कुछ दोस्तों के साथ नैनीताल गये. वहां उन्हें राज भवन के गेस्ट हाउस में ठहराया गया. जब चेक आउट का वक्त आया, ताे उन्होंने सभी कमरों का किराया अपनी जेब से दिया. यह वाकया वहां के कर्मचारियों ने के लिए चौंकाने वाला था, क्योंकि इससे पहले किसी केंद्रीय मंत्री को इस तरह बिल देते उन्होंने नहीं देखा था.

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