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सही जनादेश, अब काम नहीं करने का कोई बहाना नहीं

सुरेंद्र किशोरराजनीितक विश्लेषक मेरी समझ से अधिकतर मतदाताओं ने इतिहास के इस नाजुक मोड़ पर सही जनादेश दिया है. मेरा तो हमेशा ही यह मानना रहा है कि अपवादों को छोड़कर मतदातागण आम तौर पर सही जनादेश ही देते हैं. यह और बात है कि कुछ सत्ताधारी उस जनादेश का सदुपयोग करते हैं और कुछ […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीितक विश्लेषक

मेरी समझ से अधिकतर मतदाताओं ने इतिहास के इस नाजुक मोड़ पर सही जनादेश दिया है. मेरा तो हमेशा ही यह मानना रहा है कि अपवादों को छोड़कर मतदातागण आम तौर पर सही जनादेश ही देते हैं. यह और बात है कि कुछ सत्ताधारी उस जनादेश का सदुपयोग करते हैं और कुछ अन्य दुरुपयोग. मौजूदा जनादेश मजबूत सरकार के लिए है. अब उस मजबूत सरकार के पास कोई बहाना नहीं रहेगा कि पूर्ण बहुमत के अभाव में हम कई अच्छे काम नहीं कर सके.

पिछले पांच सालों के शासनकाल के कुछ कल्याणकारी कामों का राजग को इनाम मिला है. दूसरी ओर, बिहार का प्रतिपक्ष मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को प्रभावित नहीं कर सका. उसके कई कारण रहे जिनकी चर्चा पिछले दिनों सार्वजनिक तौर पर भी होती रही है. आगे कभी प्रभावकारी बनना हो तो प्रतिपक्ष को अपने चाल, चरित्र और चिंतन में भारी बदलाव करना होगा. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है.
1977 में तो बिहार से लोकसभा में प्रतिपक्ष का एक भी सदस्य नहीं था, पर मतदाता जब जनता पार्टी सरकार की कार्यशैली से ऊबने लगे तो तीन साल के भीतर ही उन्होंने इंदिरा गांधी को दोबारा सत्ता में ला दिया. महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी सरकार अपने नये कार्यकाल में कैसा काम करती है. वैसे भी संसद में काम तो कम हंगामा ही अधिक होता रहता है. विपक्ष को खुद को जिम्मेदार विपक्ष बनाना होगा. गलत आंकड़ों और बेबुनियाद आरोपों से अधिकतर लोग नाराज ही होते हैं. कोई भी सरकार आदर्श नहीं होती. उसकी अपनी कमजोरियां होती हैं.
जाने-अनजाने वह समय-समय पर गलतियां भी करती हैं. प्रतिपक्ष को चाहिए कि वह सही तथ्यों के साथ सरकार को कठघरे में खड़ा किया करे. 1966-67 में प्रतिपक्ष के बहुत ही कम सांसद लोकसभा में थे. फिर भी उन्होंने अपने शालीन व्यवहार व अपने संसदीय कौशल के जरिये हमेशा ही सरकार को बचाव की मुद्रा में रखा. राजग को अभी बहुत से बुनियादी काम करने होंगे. उसका दबाव होगा. सरकारी भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे. इस मामले में पहले की अपेक्षा स्थिति सुधरी जरूर है.
पर बहुत कुछ करना बाकी है. केंद्र सरकार को चाहिए कि वह तत्काल सांसद फंड बंद करे. यह फंड राजनीति और प्रशासन को प्रदूषित कर रहा है. इस प्रदूषण के कम होने का सकारात्मक असर अन्य विकास व निर्माण कार्यक्रमों पर भी पड़ेगा. राजस्व बढ़ाने होंगे. सेना को और मजबूत करना होगा. बाहरी-भीतरी खतरों से मजबूती से निअटना होगा. रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे. कृषि पर आधारित उद्योगों का जाल बिछाना होगा.
उम्मीद की जानी चाहिए कि डबल इंजन की सरकार के कारण बिहार जैसे पिछड़े राज्य के विकास को अब और अधिक गति मिलेगी. यदि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना फिलहाल संभव नहीं हो तो भी बीच का एक रास्ता निकाला जा सकता है. केंद्र सरकार को चाहिए कि वह जीएसटी, आयकर और एक्साइज ड्यूटी में बिहार में विशेष छूट दे. ऐसा करने से बिहार में नये-नये उद्योग लग सकेेंगे. इससे राज्य के पिछड़ापन को कम करने में सुविधा होगी.
योजना और कार्यक्रम आम तौर पर समय पर पूरा नहीं हो पाते. इस ओर हाल में सरकार का ध्यान गया है. पर वह काफी नहीं है. ऐसा हर मामले में सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि योजनाओं को समय पर पूरा किया जा सके. इससे योजना खर्च में अनावश्यक वृद्धि नहीं होगी. एक गरीब देश और उससे भी गरीब राज्य के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण बात है.

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