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ट्रंप का अंतहीन ट्रेड वार अब भारत के खिलाफ मोर्चा

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों से पैदा हुआ चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. अमेरिका ने कनाडा और मैक्सिको के साथ भारत से होनेवाले आयात पर भी शुल्क बढ़ा दिया है. भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए अमेरिकी उत्पादों पर भी शुल्क बढ़ाने की घोषणा […]

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों से पैदा हुआ चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. अमेरिका ने कनाडा और मैक्सिको के साथ भारत से होनेवाले आयात पर भी शुल्क बढ़ा दिया है. भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए अमेरिकी उत्पादों पर भी शुल्क बढ़ाने की घोषणा कर दी है. अब ट्रंप यूरोप के साथ भी ऐसा ही करने की चेतावनी दे रहे हैं. जी-7 की हालिया बैठक भी संबंधित मुद्दों पर सहमति न बना सकी. इस परिदृश्य में व्यापार युद्ध के विभिन्न आयामों के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन दिनों.

चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध और भारत

जब से डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति का पद संभाला है, उन्होंने अति नाटकीय तरीके से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को तहस-नहस करना आरंभ कर दिया है. शुरू में ऐसा लगता था कि सबसे पहले अमेरिका वाला उनका नारा चुनाव के साथ ही धीरे-धीरे हल्का पड़ने लगेगा और राष्ट्रपति बन जाने के बाद ट्रंप का बड़बोलापन कम होगा और वह जिम्मेदारी का आचरण करेंगे. खुद भले ही वह अनुभवहीन हों, अनुभवी विशेषज्ञ सलाहकारों और सरकारी कर्मचारियों की कमी उन्हेंं नहीं रहेगी.

पर यह आशा निर्मूल साबित हुई. ट्रंप बड़ी तेजी से लगातार अपने सलाहकारों को बर्खास्त करते रहे हैं और उनका राजनयिक आचरण निरंकुश और स्वेच्छाचारी ही नजर आता रहा है. इसी का एक उदाहरण चीन के साथ ट्रेड वार की घोषणा है. यह बात सर्वविदित है कि चीन के कर्ज के बोझ तले अमेरिका दबा हुआ है. इन दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार बुरी तरह असंतुलित है, जिसका पलड़ा चीन के पक्ष में 30-40 अरब डॉलर से ज्यादा झुका हुआ है. चीन ने कई खरब डॉलर का निवेश अमेरिकी बांडों में लगा रखा है, अर्थात एक तरह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था चीन के हाथों गिरवी रखी है.

अमेरिका की और शिकायत यह है कि चीनी सरकार अमेरिकी कंपनियों की बौद्धिक संपत्ति में सेंधमारी करती रही है और अमेरिकी आविष्कारों की नकल में सस्ते उत्पाद बाजार में पेश कर उसे नुकसान पहुंचाती रही है. इसके विपरीत यह तर्क दिया जा सकता है कि कोई भी पूंजीवादी अपना उत्पादन वही ले जाता है, जहां कच्चा माल सुलभ हो, श्रम सस्ता हो और मनचाहा मुनाफा कमाने के लिए बाजार विशाल हो. चीन इन सभी बातों के मध्य आकर्षक नजर आ रहा है और इसीलिए बड़ी-बड़ी अमेरिकी कंपनियां वहां पहुंची है. ट्रंप ने जिस तरह के शुल्क एक दंड के रूप में चीन पर लगाये हैं, उनका खामियाजा इन अमेरिकी कंपनियों और अमेरिकी उपभोक्ता को ही सबसे पहले भोगना पड़ेगा.

ट्रंप ने जिन प्रतिबंधों की घोषणा की है वह कुल मिलाकर 50 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर जायेंगे. पहली खेप में 30 अरब डॉलर की सूची जारी की गयी है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, खनिज आदि शामिल है. जवाबी वार में चीन ने अमेरिका से आयात होनेवाली खाद्य सामग्री और जैसे सोयाबीन पर कड़े शुल्क लगा दिये है. यह उल्लेखनीय है कि ट्रंप ने इस तरह के प्रतिबंध सिर्फ चीन पर ही नहीं लगाये हैं, बल्कि अपने अटलांटिक बिरादरी के भाइयों- कनाडा, फ्रांस आदि पर भी यही दुलत्ती फटकारी है.

जाहिर है कि इस ट्रेड वार का प्रभाव भारत पर पड़े बिना नहीं रह सकता. सोचनेवाली बात है कि ट्रंप की इस घोषणा ने विश्व-व्यापारी संगठन वाली व्यवस्था को लगभग पूरी तरह नष्ट कर दिया है और इस बात के आसार नजर नहीं आते कि निकट भविष्य में अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विवादों का निपटारा आसानी से हो पायेगा. इस बारे में बहुत आशावादी होने की जरूरत नहीं कि चीन और अमेरिका की मुठभेड़ का लाभ भारत को अनायास ही हो सकेगा. चीन के साथ हमारे रिश्ते बहुत जटिल हैं और एशिया में, खासकर दक्षिण एशिया में हमारे सामरिक हितों का टकराव हमें अमेरिका के खिलाफ संयुक्त मोर्चा आसानी से नहीं बनाने देगा. चीन जिस तरह नेपाल में कई अरब डॉलर की आर्थिक सहायता दे पैर पसार रहा है, उसे देखते हुए भी यह नहीं लगता कि भारत उसके साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर व्यापक आर्थिक सहकार कर सकता है.

उपभोक्ताओं को होगा नुकसान

ट्रेड वार बड़े-बड़े देशों की आर्थिक लड़ाई है. इस लड़ाई का मकसद यह है कि कम से कम सामान दूसरे देशों से आये, ताकि अपने देश में बने सामानों की बिक्री बढ़े. अमेरिका ने अपनी संरक्षणवादी नीति के तहत यह ट्रेड वॉर शुरू किया है और अब चीन के साथ ही भारत भी इसमें शामिल हो गया है. अमेरिका चाहता है बाहर से आनेवाले सामान महंगे हों, ताकि उसके अपने औद्योगिक क्षेत्र को फायदा हो. स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़े और औद्योगिकरण का विकास हो. चूंकि अमेरिका में श्रम बहुत महंगा है, इसलिए वहां बने सामानों की कीमत ज्यादा होती है. जबकि सस्ते श्रम वाले देशों में बने सामानों की कीमत कम होती है,

इसलिए बड़े-बड़े देश सस्ते सामानों का आयात करते हैं. लेकिन, अमेरिका चाहता है कि यह आयात कम हो, ताकि वहां एक तरफ आयातित सामान महंगे होकर अमेरिका में बने सामानों के दामाें के आसपास पहुंच जायें, जिससे कि अमेरिकी लोग अपने देश में बने सामानों को खरीदने के लिए मजबूर हो जायें. इसीलिए यह पूरा का पूरा ट्रेड वार शुरू हुआ है. बड़े देशों को अगर चार भागों में बांट कर हम इसे अमेरिका, यूरोप, चीन और भारत के रूप में देखते हैं, तो हमें यह बात समझ में आती है कि इनके बीच व्यापारिक संबंधों में प्रगाढ़ता और आयात-निर्यात होते रहने चाहिए, ताकि वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित न हो. इस ट्रेड वार के नुकसान भी हैं और फायदे भी हैं. देशहित के रूप में सोचें, तो इसके फायदे हैं. लेकिन वहीं उपभोक्ता के बारे में सोचें, तो उसे नुकसान है.

अगर किसी देश में बने महंगे सामानों का उस देश के लाेग उपभोग करते हैं, तो यह देशहित में अच्छा है और उसके उद्योग क्षेत्र एवं अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छा है. लेकिन, इस प्रक्रिया में उपभोक्ता को महंगा सामान खरीदना पड़ता है, जिसका असर उसकी खुद की आर्थिकी पर पड़ता है. इसलिए किसी देश के लिए अक्सर संरक्षणवादी नीतियां उसके उपभोक्ताओं के लिए महंगी साबित होती हैं. ट्रेड वार के अन्य फायदे ये हैं कि इससे स्थानीय स्तर पर औद्योगिकरण से रोजगार बढ़ेगा और व्यापार घाटा कम होगा.

दूसरी बात यह है कि जब देशों के बीच में आयात-निर्यात बढ़-चढ़कर चलता रहता है, तो इससे उन देशों के बीच पारस्परिक संबंधों की प्रगाढ़ता बढ़ती रहती है. लेकिन, संरक्षणवादी नीति के चलते जब वही आयात-निर्यात कम होता है, तो इससे देशों के संबंधों में खटास पैदा होने की संभावना रहती है. तीसरी बात यह है कि स्थानीय स्तर पर उद्योगों का विकास तो होगा, लेकिन वह दूसरे देशों के मुकाबले प्रतिस्पर्धात्मक नहीं हो पायेगा, जिसका नुकसान यह होगा कि महंगा होने के साथ-साथ उन सामानों की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी. इसलिए जरूरी है कि देश ट्रेड वार करें, लेकिन अपने उपभोक्ताओं का ध्यान रखते हुए ऐसी आर्थिक नीतियां बनायें, जिससे सबका भला हो.

अमेरिका-

चीन व्यापार

648.5 बिलियन डॉलर का वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार हुआ अमेरिका-चीन के बीच वर्ष 2016 के दौरान.

169.8 बिलियन डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया अमेरिका से चीन को.

478.8 बिलियन डॉलर मूल्य का आयात किया अमेरिका ने चीन से इस अवधि के दौरान.

इन आयातित वस्तुओं की कीमत में होगी वृद्धि

30 प्रतिशत से बढ़कर 70 प्रतिशत हो जायेगा काबुली चना, चना और मसूर दाल पर आयात शुल्क.

40 प्रतिशत आयात शुल्क देना होगा मसूर दाल पर पूर्व के 30 प्रतिशत आयात शुल्क के मुकाबले.

120 रुपये प्रति किलो हो जायेगा अमेरिका से आयातित छिलके वाला बादाम पूर्व के 100 रुपये प्रति किलो की तुलना में.

120 फीसदी हो जायेगा छिलकेवाले अखरोट पर आयात शुल्क पूर्व के 30 फीसदी के मुकाबले.

75 प्रतिशत अब शुल्क लगेगा सेब पर, जबकि पहले इस उत्पाद पर 50 प्रतिशत शुल्क ही लगता था.

17.50 प्रतिशत शुल्क लगेगा बोरिक एसिड पर व 20 प्रतिशत लगेगा फॉस्फोरिक एसिड पर, जबकि दोनों पर पूर्व में 10-10 फीसदी आयात शुल्क लगता था.

20 प्रतिशत शुल्क देना होगा डायग्नॉस्टिक रिएजेंट पर बढ़े हुए दर से जो पूर्व के मुकाबले दोगुना है.

17.5 प्रतिशत की वृद्धि की गयी है फाउंड्री मोल्ड के लिए इस्तेमाल होनेवाले बाइंडर पर लगनेवाले आयात शुल्क में.

27.50 प्रतिशत हो गया है आयात शुल्क फ्लैट रौल्ड आयरन प्रोडक्ट पर जो पहले 15 प्रतिशत था़ 22.50 फीसदी कर दिया गया है फ्लैट रौल्ड स्टील प्रोडक्ट पर लगनेवाला शुल्क जो पहले 15 फीसदी था.

30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है अर्टेमिया पर लगनेवाले आयात शुल्क में.

25 प्रतिशत का इजाफा हुआ है ऑटोमोबाइल व अर्थ मूविंग इक्विपमेंट और सेलुलर मोबाइल फोन में इस्तेमाल होनेवाले सिम सॉकेट/ अन्य मेकेनिकल उत्पादों पर लगनेवाले आयात शुल्क में पूर्व के 15 प्रतिशत शुल्क के मुकाबले.

भारत-अमेरिका आयात-निर्यात आयात

वर्ष राशि (मिलियन डॉलर में)

2014-2015 4,48,033.41

2015-2016 3,81,006.63

2016-2017 3,84,355.56

2017-2018 4,65,578.29

2018-2019 39,515.95

निर्यात

2014-2015 3,10,338.48

2015-2016 2,62,290.13

2016-2017 2,75,851.71

2017-2018 3,03,376.22

2018-2019 25,283.54

नोट : 2018-2019 के आंकड़े 23 जून तक के हैं.

(स्रोत : वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार)

ट्रेड वार का चीन पर प्रभाव

चीन अपधातु यानी बेस मेटल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अमेरिका द्वारा वर्तमान में जो कदम उठाये गये हैं, उस वजह से बेस मेटल की कीमत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. अमेरिका के इस कदम से कच्चे तेल पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, नतीजा वैश्विक विकास के धीमा होने की आशंका है. इस संबंध में ग्लोबल एनर्जी फर्म ‘वुड मैकेंजी’ का कहना है कि अगर चीन अमेरिका की बजाय कहीं और से कच्चा तेल आयात करने लगे, जिसकी गुणवत्ता अमेरिकी तेल के समान ही हो, तो इससे अमेरिका को ही नुकसान होगा, क्योंकि चीन जैसा बड़ा बाजार ढूंढना उसके लिए मुश्किल हो जायेगा.

भारत-चीन के बीच व्यापार

84.44 बिलियन डॉलर का कारोबार हुआ दोनों देशों के बीच वर्ष 2017 के दौरान, जो अब तक सबसे अधिक रहा है.

71.18 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था भारत और चीन के बीच इससे पिछले वर्ष यानी 2016 के दौरान.

18.63 फीसदी की वृद्धि हुई है दोनों देशो के कारोबारी लेन-देन से जुड़े संबंधों में इस वर्ष.

40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है इस बार भारत से चीन के निर्यात में, जो 16.34 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है.

70 बिलियन डॉलर के आसपास थमा हुआ था दोनों देशों के बीच व्यापार पिछले कई सालों से.

वैश्विक व्यापार युद्ध जैसे हालात

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते नौ मार्च को भारत सहित दुनिया के अन्य देशों से आयातित स्टील और एल्युमीनियम पर शुल्क में क्रमश: 25 और 10 फीसदी की बढ़ोतरी की घोषणा की थी. इसके बाद से ही दुनियाभर के देश अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा रहे हैं. अमेरिका की संरक्षणवादी नीति के कारण पूरी दुनिया में व्यापार युद्ध जैसे हालत पैदा हो गये हैं. भारत के अलावा यूरोपीय यूनियन ने भी कई अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क में बढ़ोतरी का फैसला किया है.

इसके अलावा चीन ने भी अमेरिका की इस दादागिरी का जवाब बढ़-चढ़ कर दिया है. अमेरिका से आयात होने वाले वस्तुओं पर लगने वाले शुल्क में संभावित वृद्धि की जानकारी भारत ने संशोधित सूची के साथ विश्व व्यापार संगठन को कुछ दिन पहले ही सौंपी है. जबकि इस संबंध में वित्त मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में 29 वस्तुओं को ही शामिल किया गया है.

ब्याज दर की बड़ी चिंता

दुिनया में व्यापार युद्ध की आशंका से भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय यह हो सकता है कि यहां अनेक किस्म के परोक्ष असर सामने आ सकते हैं. आयातित वस्तुओं पर ऊंची दरों पर टैक्स लगाने की दशा में अमेरिका की घरेलू अर्थव्यवस्था में कीमतों के बढ़ने की आशंका बनी रहेगी. नतीजन वहां के आयातक दूसरी चीजों से इसकी भरपाई करेंगे. इससे अमेरिका में फेडरल रिजर्व पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का दबाव बढ़ेगा. भारत जैसे देशों के लिए यह स्थिति प्रतिकूल हो सकती है, क्योंकि अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी का असर भारतीय बाजार को भी प्रभावित कर सकता है.

मुद्रा का प्रवाह

मुद्रास्फीति का असर भारत को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित करेगा. वैश्विक मंदी से महज एक वर्ष पहले यानी 2007 के आसपास अमेरिकी बॉन्ड में पांच फीसदी के हिसाब से सालाना वृद्धि होती थी, जो वर्ष 2016 तक आते-आते 1.5 फीसदी तक पहुंच गयी.

भारतीय सिक्योरिटी बाजार में भी पिछले सात माह से गिरावट का दौर रहा है. भारतीय बैंक बैड लोन्स की समस्या से जूझ रहे हैं और दिन-ब-दिन इनकी साख में कमी आ रही है.

वहीं दूसरी ओर, अमेरिका में ब्याज दरों के बढ़ने का अर्थ यह हो सकता है कि भारतीय इक्विटी बाजार में भी इसका असर देखा जाये. ऐसी दशा में अमेरिकी निवेशक व्यापक तादाद में अपनी रकम भारतीय बाजार से निकाल कर एक बार फिर से अमेरिका का रुख कर सकते हैं.

भारत पर अल्पकालिक असर बेहतर!

यदि यह ट्रेड वार यानी व्यापार युद्ध लंबे अरसे तक जारी रहता है, तो अमेरिका और चीन के बीच व्यापार में कटौती होने पर कम-से-कम भारत और ब्राजील जैसे देशों के लिए, अल्पकालीन तौर पर ही सही, लेकिन उनके लिए नतीजे बेहतर होने की संभावना बढ़ सकती है. हालांकि, दीर्घकालीन तौर पर देखा जाये, तो व्यापार युद्ध अच्छी खबर नहीं है. यह हमेशा उच्च मुद्रास्फीति और विकास दर कम होने की अवस्था की ओर ले जाता है. मुद्रास्फीति आम तौर पर सोने जैसी परिसंपत्तियों के लिए अच्छी होती है, जबकि मुद्रा और इक्विटी बाजार में कुछ क्षेत्रों पर नकारात्मक असर

पड़ता है.

भारत ने अपनाया कड़ा रुख

स्टील और एल्युमीनियम के आयात पर अमेरिका द्वारा शुल्क बढ़ाने से भारत को स्टील के निर्यात पर 19.86 करोड़ डॉलर और एल्युमीनियम पर 4.22 करोड़ डॉलर के नुकसान का अंदेशा है. अब भारत ने देसी चने, छोले और मसूर दाल जैसे खाने-पीने के सामान पर सात फीसदी से 60 फीसदी तक आयात शुल्क बढ़ा दिया है. भारत ने अमेरिका को एक कड़ा संदेश दिया है. कहा जा सकता है कि यह एक नये व्यापारिक युद्ध की शुरुआत है. हालांकि, आगे यह किस दिशा में जायेगा और किस मोड़ पर थमेगा, यह कहना मुश्किल है. इतना जरूर है कि कि इस कड़े फैसले के जरिये भारत ने अमेरिका को यह संदेश दे दिया है कि भारत अपने आर्थिक हितों से कोई समझौता नहीं करेगा.

डब्ल्यूटीओ में शिकायत

स्टील और एल्युमिनियम पर अमेरिका द्वारा शुल्क बढ़ाये जाने के खिलाफ भारत ने डब्ल्यूटीओ में उसकी शिकायत भी की है. मालूम हो कि भारत अमेरिका को सालाना डेढ़ अरब डॉलर मूल्य के स्टील एवं एल्युमिनियम उत्पादों का निर्यात करता है.

भारत में निवेश पर पड़ सकता है असर

चीन और अमेरिका के बीच चल रहे ट्रेड वार का असर भारत में बाहर से आनेवाले निवेश पर पड़ सकता है. हालांकि, यह वार कई मामलों में भारत के लिए फायदेमंद भी साबित हो सकता है. इसकी वजह से कच्चे तेल की कीमतों के कम होने की उम्मीद जतायी जा रही है, जो भारत के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है. टेक्सटाइल, गारमेंट और जेम्स व ज्वेलरी जैसी वस्तुओं को लेकर भारत और भी प्रतिस्पर्धी बन सकता है, क्योंकि इन वस्तुओं के निर्यात में भारत को पहले से ही बढ़त हासिल है. हालांकि, छोटी अवधि में ऐसा होना मुश्किल है, क्योंकि चीन द्वारा अमेरिका को बड़े पैमाने पर अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं का निर्यात किया जाता है, जिसकी भरपाई करना भारत के लिए आसान नहीं होगा.

– उपासना भारद्वाज, अर्थशास्त्री, कोटक

महिंद्रा बैंक

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