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बड़े बदलाव की ओर ई-रिटेल वाॅलमार्ट फ्लिपकार्ट करार

देश में खुदरा बाजार की ताकत और असीमित संभावनाओं को देखते हुए अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट ने 16 अरब डॉलर की पूंजी अदा कर दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स डील की है. भारतीय ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट में बड़ी हिस्सेदारी खरीद को अंजाम तक पहुंचने में प्रतिस्पर्धा आयोग जैसे तमाम नियामक संस्थाओं के तय मानदंडों पर खरा […]

देश में खुदरा बाजार की ताकत और असीमित संभावनाओं को देखते हुए अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट ने 16 अरब डॉलर की पूंजी अदा कर दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स डील की है. भारतीय ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट में बड़ी हिस्सेदारी खरीद को अंजाम तक पहुंचने में प्रतिस्पर्धा आयोग जैसे तमाम नियामक संस्थाओं के तय मानदंडों पर खरा उतरना होगा. भारतीय ऑनलाइन खुदरा बाजार में पहले से मौजूद अमेरिकी ई-कॉमर्स मार्केट प्लेस अमेजन के साथ वॉलमार्ट की प्रतिस्पर्धा का बढ़ना लाजिमी तो है ही, व्यापारियों और विक्रेताओं पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह आनेवाला वक्त बतायेगा.

आज जब भारत रोजगार सृजन की चिंताजनक स्थिति का सामना कर रहा है, तो ऐसे में बड़ी विदेशी कंपनियों के आने से क्या कुछ बदलेगा, किसानों की आय और विक्रेताओं के कारोबार पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशते आलेखों, भारतीय ऑनलाइन बाजार की मौजूदा स्थिति की जानकारी के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों पेज…

भारतीय रिटेल बाजार की भीषण लड़ाई

करीब 130 करोड़ लोगों के देश में जहां प्रति व्यक्ति औसत आय लगातार धीरे-धीरे बढ़ रही है और स्मार्टफोन के जरिये इंटरनेट व ई-कामर्स का प्रसार बेहद तेज हो चुका है, उस देश में आॅनलाइन खुदरा बाजार की लड़ाई अपने चरम पर पहुंच चुकी है. वर्ष 2007 में जन्मी दो आईआईटी दिल्ली स्नातकों की कंपनी फ्लिपकार्ट को जब विश्व की सबसे बड़ी भौतिक रिटेल कंपनी वाॅलमार्ट ने 17 अरब डाॅलर में खरीद लिया, तो स्पष्ट हो गया कि भारतीय रिटेल अमेरिका, चीन और यूरोप के बाद विश्व का सबसे महत्वपूर्ण बाजार बन गया है. इस भीमकाय खरीद को भारत में पूंजी निवेश की विजय निरूपित करनेवाले इसके दूसरे पक्ष को भी समझ रहे होंगे, जो व्यावसायिक न होकर सामरिक है.

भारत का विश्व में स्थान: आज का भारत एक विचित्र दौर से गुजर रहा है. विशाल और प्रतिभाशाली आबादी से निकले लाखों लोग दुनियाभर में छाये हुए हैं व अमेरिका और यूरोप की सबसे प्रतिष्ठित कंपनियों में से कईयों को शीर्ष पदों सेे चला रहे हैं. भारतीय प्रबंधन और विचार कौशल का लोहा सब मान चुके हैं.

लेकिन विडंबना देखिये कि स्वयं अपने घर में भविष्य के सबसे बड़े बाजारों- डिजिटल और ई-काॅमर्स- में भारत के अपने ब्रांड्स या तो हैं ही नहीं, या एक-एक करके बिकते जा रहे हैं. और वाॅलमार्ट के इस सौदे ने इस आशंका पर मुहर लगा दी है कि चीन की स्वयं के बाजारों को विदेशी कब्जे में न जाने देने की सजगता व समझदारी फिलहाल तो हमारी राष्ट्रीय नीतियों में परिलक्षित नहीं हो पा रही है. आईये, इस सौदे से उपजे सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष देखे जायें.

सकारात्मक पहलू

भारतीय उद्यमिता की विजय: स्टार्टअप इंडिया भले ही अपने मकसद में कामयाब होने में समय ले रहा हो, लेकिन दो युवा उद्यमियों सचिन और बिन्नी द्वारा इतनी बड़ी कंपनी बना कर बेच पाना भारतीय उद्यमिता की ताकत का प्रमाण है. यहां तक की यात्रा बेहद कठिन रही है और वालमार्ट को भी यह मानना पड़ा कि स्वयं के बलबूते पर वो इतना नहीं कर पायेगा जितना फ्लिपकार्ट पहले ही कर चुका है.

वेंचर कैपिटल बढ़ेगा: अनेक निवेशक जो इस सौदे से अरबों डाॅलर कमाकर फ्लिपकार्ट से बाहर निकलेंगे, उनसे उम्मीद है कि वे अब अन्य नये स्टार्टअप में पैसा लगाना शुरू करेगें. इससे शायद अनेक नये सचिन और बिन्नी पैदा हों. वालमार्ट द्वारा इतना निवेश एक ही कंपनी में करना भारतीय बाजार की ताकत को स्वीकारना है.

उपभोक्ताओं के लिए शायद वरदान: भारत का ई-काॅमर्स बाजार अब पूरी तरह से दो अमेरिकी खिलाड़ियों का युद्ध बन चुका है- अमेजन और वाॅलमार्ट. शायद कल एक तीसरा खिलाड़ी भी आये- अलीबाबा. इन सभी की यह विवशता रहेगी कि अधिक से अधिक उत्पादों को कम दामों पर बेचकर बाजार हिस्सेदारी बढ़ायें. इससे अल्प अवधि में तो भारतीय उपभोक्ताओं को लाभ ही होगा.

छोटे व्यापारी-विक्रेताओं को शायद फायदा: यदि वाॅलमार्ट और अमेजन ने अधिक से अधिक भारतीय छोटे व्यापारियों को अपने प्लेटफाॅर्म पर जगह दी, तो पूरी अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंच सकता है, लेकिन वालमार्ट की सोर्सिंग नीति शायद ऐसी न रहे. यह वक्त ही बतायेगा. वैसे नीति आयोग ने प्रसन्नता दर्शाते हुए कहा है कि इस भीमकाय डील से भारतीय छोटे उद्योगों को बहुत लाभ होगा!

नकारात्मक पहलू

भारतीय ब्रांड्स का पतन: भविष्य के दोनों बड़े बाजारों अर्थात ई-काॅमर्स और डिजिटल में भारतीय ब्रांड्स की भारत में ही उपस्थिति लगभग शून्य होती जा रही है. जो बचे हैं उनमें भी बड़ी हिस्सेदारी विदेशी निवेशकों की हो चुकी है. शायद भारत अपने ब्रांड्स चाहता ही नहीं है और हमें प्रेमपूर्वक अमेरिकी और चीनी ब्रांड्स का उपनिवेश बनना स्वीकार्य है. न सरकार को चिंता है न किसी और को.

मौजूदा कानूनों की अस्पष्टता: भारत में करोड़ों छोटे दुकानदार, व्यवसायी व उद्योग जीवन यापन में संघर्षरत रहते हैं और बिना सरकारी सब्सिडियों के अपनी आजीविका चलाते रहते हैं. वाॅलमार्ट ने जिस फ्लिपकार्ट को खरीदा है वह एक ‘ई-काॅमर्स मार्केटप्लेस’ है. खुदरा बाजारों में एफडीआई नीति के तहत ऐसी कंपनियां अपने ही प्लेटफाॅर्म पर बिक्री नहीं कर सकतीं! लेकिन सबको पता है कि दूसरी कंपनियां बनाकर व्यापक स्तर पर इस नियम की अस्पष्टता का फायदा उठाते हुए स्वयं मार्केटप्लेस कंपनी ही सबसे अधिक माल की बिक्री भी करती रहती है. अगर सरकार इस नियम को सख्ती से लागू कर दे, तो वालमार्ट के लिए यह डील शायद फायदे का सौदा न रहे.

सस्ते चीनी सामान की डंपिंग: अमेरिका में वाॅलमार्ट 70 प्रतिशत से अधिक सस्ता चीनी माल ही बेचता है. अनेक अध्ययनों ने बताया है कि वाॅलमार्ट ने अमेरिका में नौकरियां नष्ट की हैं, शुद्ध मात्रा में निर्मित नहीं की हैं. अगर वाॅलमार्ट ने सीधे चीन से आयातित सामान भारतीय बाजार को भर दिया, तो देश के पांच करोड़ खुदरा व्यापारी एवं दस करोड़ नौकरीपेशा, जो चार करोड़ लघु तथा मध्यम उद्योगों में कार्यरत हैं, को भारी क्षति होगी.

न नाम की चिंता, न काम की: हमने डिजिटल और ई-काॅमर्स बाजारों को विदेशियों को सौंपकर इस संभावना को नष्ट कर दिया कि निकट भविष्य में हमारा अपना गूगल या अमेजन हो, जो अमेरिका में दबदबा बनाये. वाॅलमार्ट और अमेजन के हमले से कहीं हमारे कामगार भी तबाह न हो जायें. अानेवाले वर्षों में सब कुछ साफ हो जायेगा.

बड़ी ब्रांड्स का सच: बड़े रिटेलर्स जो संपूर्ण फैक्ट्रियों का उत्पादन खरीद लेते हैं, उनसे उपभोक्ताओं को तो फायदा शायद पहुंचे, लेकिन किसानों को सबसे अधिक नुकसान होता है. कुल बिक्री में किसानों की आय का हिस्सा लगातार गिरता जाता है.

आज भारत में जहां नौकरी सृजन की स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई है, वहां छोटे व्यापारियों और उद्योगों को भी यदि इतनी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा, तो हम एक खतरनाक भविष्य की ओर देख रहे हैं. सरकार को चहिए कि वो ई-कामॅर्स मार्केटप्लेस की मालिकाना कंपनी द्वारा इंवेटरी माॅडल (अर्थात स्वयं के द्वारा बिक्री) पर नियमानुसार सख्ती से प्रतिबंध लगाये. हम यह न भूलें कि अपने लोगों के हित से बड़ा कोई धर्म नहीं और मुक्त व्यापार का बात करनेवाला अमेरिका रिवर्स गियर लगाकर ट्रंप प्रशासन के तहत केवल खुद का लाभ देख रहा है. हमारी आबादी का आकार और नौकरी-धंधों की स्थिति की वास्तविकता समझते हुए ही हमें कदम उठाने चाहिए.

अमेजन को झटका

वॉलमार्ट और फ्लिपकार्ट की इस डील से दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी समझी जाने वाली अमेजन को बड़ा झटका लगने की उम्मीद है, क्योंकि भारतीय बाजार में अमेजन खुद इस वर्ष 5.5 बिलियन डॉलर की रकम निवेश करने की तैयारी में है. भारत में अमेजन की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कंपनी के मालिक जेफ बेजोस यह कदम उठाने जा रहे हैं. वॉलमार्ट के भारतीय बाजार में आने से अमेजन के लिए रिटेल सेक्टर में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, और अमेजन ऐसा नहीं होने देना चाहेगी.

भारत में लिस्टेड शीर्ष रिटेल कंपनियाें की वैल्यू

कंपनी वैल्यू

फ्लिपकार्ट 21.0

एवेन्यू सुपरमार्ट्स 13.4

फ्यूचर रिटेल 4.3

आदित्य बिड़ला फैशन एंड रिटेल 1.7

फ्यूचर कंज्यूमर 1.6

नोट : वैल्यू बिलियन डॉलर में है. साथ ही, इसमें रिलायंस रिटेल को शामिल नहीं किया गया है, जो रेवेन्यू के मामले में सबसे आगे है.

(स्रोत : ब्लूमबर्ग)

वॉलमार्ट इंडिया फैक्ट्स

वर्ष 2007 में वालमार्ट ने भारती इंटरप्राइजेज के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर घरेलू बाजार में प्रवेश किया.

मई, 2009 में उसने अमृतसर में अपना पहला स्टोर खोला.

वॉलमार्ट इंडिया 2014 में वॉलमार्ट इंक की पूर्ण स्वामित्व वाली इकाई बनी.

वॉलमार्ट इंडिया के देश के नौ राज्यों में बेस्ट प्राइस नाम से 21 ओम्नी स्टोर हैं.

कंपनी का कहना है कि उसके सदस्यों की संख्या देश में 10 लाख को पार कर गयी है.

कंपनी ने मुंबई में पहला फुलफिलमेंट स्टोर शुरू किया.

कैश एंड कैरी कारोबार के अलावा वॉलमार्ट ने ग्लोबल सोर्सिंग सेंटर और नवंबर, 2011 में वॉलमार्ट लैब्स की शुरुआत की.

आंकड़ों में इस डील से

जुड़े प्रमुख तथ्य

7.5 बिलियन डॉलर ग्रॉस मर्चेंडाइज वैल्यू रिकॉर्ड की गयी है फ्लिपकार्ट की बीते वित्तीय वर्ष के दौरान.

4.6 बिलियन की नेट बिक्री रही है फ्लिपकार्ट की बीते वित्तीय वर्ष के दौरान.

261 मिलियन यूनिट सामानों की बिक्री की बीते वित्तीय वर्ष के दौरान इस कंपनी ने.

50 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी हुई है इसके कारोबार में बीते वर्ष के मुकाबले.

77 फीसदी फ्लिपकार्ट के शेयर खरीदेगा वॉलमार्ट इंक, जिसके लिए 16 बिलियन यानी करीब एक लाख करोड़ रुपये का सौदा तय किया गया है.

20.8 बिलियन डाॅलर की वैल्यू का आकलन किया गया है फ्लिपकार्ट का, जिसे इस वर्ष की सबसे बड़ी अधिग्रहण संबंधी डील समझा जा रहा है.

54 मिलियन सक्रिय ग्राहक हैं फ्लिपकार्ट के.

800 से अधिक शहरों में फ्लिपकार्ट की लॉजिस्टिक सहयोगी ई-कार्ट की सेवाएं संचालित होती हैं देशभर में.

भारत में ई-कॉमर्स उद्योग

का विस्तार

30 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है मौजूदा समय में भारतीय ई-कॉमर्स उद्योग के जरिये.

200 बिलियन डाॅलर तक पहुंचने की उम्मीद है भारत में ई-कॉमर्स से जुड़े कारोबार के वर्ष 2026 तक. इसमें इन चार फैक्टर्स का होगा बड़ा योगदान- आर्थिक सुधार, जनसंख्या में वृद्धि, इंटरनेट की बढ़ती सघनता और स्मार्टफोन का व्यापक प्रसार.

40 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर्स

हो चुके हैं भारत में.

14 फीसदी इंटरनेट यूजर्स ही ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं भारत में मौजूदा समय में, जिसके वर्ष 2026 तक बढ़ कर 50 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है.

डील में आ सकता है नया मोड़

वॉलमार्ट और फ्लिपकार्ट की डील में नया मोड़ सामने आ रहा है. फ्लिपकार्ट के बड़े निवेशक सॉफ्ट बैंक अब अपनी हिस्सेदारी नहीं बेचना चाहता है. हालांकि, सॉफ्ट बैक के मासायोशी सन इस बारे में अब तक कुछ ठोस फैसला नहीं कर पाये हैं, लेकिन खबरों में इस बारे में अनेक अटकलें लगायी जा रही हैं कि वे फैसला बदल सकते हैं. सॉफ्ट बैंक फिलहाल यह हिसाब लगाने में व्यस्त है कि फ्लिपकार्ट में निवेश करने के एक साल के भीतर उसके कितने पैसे बनेंगे.

सॉफ्टबैंक को चिंता है कि यदि उसने फ्लिपकार्ट में अपनी 22 फीसदी हिस्सेदारी वॉलमार्ट को बेच दी, तो उसे काफी टैक्स चुकाना पड़ सकता है. दअरसल, भारत में कोई शेयर खरीदने के एक वर्ष के भीतर बेचने पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लागू होता है. मासायोशी सन शायद यह सोच रहे होंगे कि फ्लिपकार्ट की वैल्यू में बढ़ोतरी हो सकती है.

विकल्प तलाशने में जुटा सॉफ्ट बैंक

सॉफ्टबैंक इस समय अपने विकल्प तलाशने में जुटा हुआ है. इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल सॉफ्टबैंक फ्लिपकार्ट में किये गये निवेश से बहर निकलने के मूड में नहीं है. वह इस बारे में अगले एक सप्ताह में फैसला कर सकता है. मासायोशी भारत पर बड़ा दांव लगा रहे हैं और उनके हिसाब से फ्लिपकार्ट की वैल्यू आने वाले दिनों में और बढ़ेगी. सॉफ्टबैंक विजन फंड ने अगस्त, 2017 में फ्लिपकार्ट में ढाई अरब डॉलर का निवेश किया था. अब अगर कंपनी इस निवेश को भुनाने का फैसला करती है, तो उसे चार अरब डॉलर मिल सकते हैं.

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