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क्या बदला जा सकता है भाग्य…जानिए

डॉ एनके बेरा (ज्योतिषविद्) कहावत प्रसिद्ध है- समय से पहले एवं भाग्य से ज्यादा नहीं मिलता (Not Before Time and not more than Fate). कहा जाता है, जो किस्मत में लिखा है, वही मिलेगा. अब प्रश्न उठता है कि क्या भाग्य बदला जा सकता है, दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदला जा सकता है? इस संबंध […]

डॉ एनके बेरा (ज्योतिषविद्)
कहावत प्रसिद्ध है- समय से पहले एवं भाग्य से ज्यादा नहीं मिलता (Not Before Time and not more than Fate). कहा जाता है, जो किस्मत में लिखा है, वही मिलेगा. अब प्रश्न उठता है कि क्या भाग्य बदला जा सकता है, दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदला जा सकता है? इस संबंध में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार- किसी भी प्रकार की सांसारिक दुर्भाग्य अर्थात् व्याधि, दुःख, कष्ट व समस्या को ठीक करने के मात्र तीन उपाय हैं –
औषधि-मणि-मन्त्राणां, ग्रह-नक्षत्र-तारिका ।
भाग्यकाले भवेत्सिद्धिः, अभाग्यं निष्फलं भवेत ।।
किसी भी मनुष्य की समस्याएं, जैसे- दरिद्रता, बेरोजगारी, काम-काज में बाधा, संतान कष्ट, व्याधि, दुःख आदि समस्या को ठीक करने का प्रथम उपाय है औषधि. इससे ठीक न होने पर मणि, रत्न चिकित्या का विधान है और तत्पश्चात मंत्र-जप-तप-दान एवं प्रार्थनाएं. किंतु ऋषि कहते हैं कि ये सभी उपाय अनुकूल समय अर्थात् भाग्यकाल में ही सिद्ध होते हैं.
मनुष्य के उस अनुकूल समय को ज्योतिष में भाग्यकाल एवं प्रतिकूल समय अर्थात् दुर्भाग्य का समय कब आ रहा है? यह विषय शुद्ध रूप से कालगणक, ज्योतिष शास्त्र बतलाता है कि अनुकूल समय में मिट्टी में हाथ डालो, तो सोना हो जायेगा.वास्तव में भविष्य को बदलने अर्थात् दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की शास्त्रोक्त प्रक्रिया का नाम ही ज्योतिष है.
योग वशिष्ठ के मुमुक्ष प्रकरण के चतुर्थ वर्ग में महर्षि कहते हैं- उदार स्वभाव और सदाचारवाले व्यक्ति भाग्य के चक्र से वैसे ही निकल जाते हैं, जैसे पिंजरे से सिंह. निरंतर पुरुषार्थ ही दुदैव को काटता है.
जो सोता है, उसका भाग्य भी सो जाता है और निरंतर चलनेवाला व्यक्ति अपनी मंजिल पर पहुंच ही जाता है. ज्योतिष हमलोग को विभिन्न योगों के लक्षण, उनके प्रभाव, उनके नाम व सुंदर समाधान को भी बतलाता है, जैसे-हस्तरेखा दिव्य विज्ञान है, जो भूत, भविष्य एवं वर्तमान-तीनों कालों को जानने की कला सिखलाता है. साथ ही इसके माध्यम से हम शुभाशुभ भविष्य को बदलने की क्षमता भी प्राप्त करते हैं.
अब इस प्रायोगिक-सैद्धांतिक बात को समझने का प्रयत्न करते हैं- जैसे किसी स्त्री-पुरुष दोनों के हाथ में संतान रेखाएं नहीं हैं. जन्मकुंडली में महर्षि पराशर कहते हैं- पंचमेश नीच का होकर यदि छठे, आठवें एवं बारहवें स्थान में हो तो पुत्रहीन योग बनता है. ‘प्रयत्नेन पुत्रं लभति’ अर्थात् उस जातक को पुत्र नहीं होता, किंतु प्रयत्न करने से पुत्र होगा. अब इस प्रयत्न का अर्थ क्या है? सांसारिक प्रयत्न- जैसे रक्त जांच, शुक्राणुओं की जांच एवं समुचित चिकित्सीय उपचार सब कर चुके हैं. अब कौन-सा प्रयत्न बाकी रहा. ज्योतिषानुसार, ‘प्रयत्न त्रिविधा प्रोक्ता’ यानी प्रयत्न तीन प्रकार के हैं- औषधि, मणि एवं मंत्र चिकित्सा. संतानहीन कुयोग को दूर करने के लिए ज्योतिष में संबंधित उपाय बताये गये हैं, जैसे ग्रहों के अशुभ प्रभाव दूर करने के लिए सटीक रत्न धारण, रूद्राभिषेक, मंत्र जाप आदि. रामायण में प्रमाण है पुत्रेष्ठि यज्ञ के क्षीरभोजन से राजा दशरथ को चार पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई. अत: भाग्य फल है और पुरुषार्थ उसे पल्लवित करता है.

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