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रीढ़ की क्षतिग्रस्त हड्डियों के लिए कारगर ट्रीटमेंट है वर्टिब्रोप्लास्टी

भारत में करीब पांच करोड़ से अधिक लोग ऑस्टियोपोरोसिस से परेशान हैं. बढ़ती उम्र के साथ उनमें बोन मिनिरल डेंसिटी भी घट रही है. इस कारण हड्डियों में फ्रैक्चर का रिस्क बढ़ रहा है, खासकर स्पाइन में. हालांकि हड्डियों में कमजोरी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन बुजुर्गों में इसके मामले अधिक देखने […]

भारत में करीब पांच करोड़ से अधिक लोग ऑस्टियोपोरोसिस से परेशान हैं. बढ़ती उम्र के साथ उनमें बोन मिनिरल डेंसिटी भी घट रही है. इस कारण हड्डियों में फ्रैक्चर का रिस्क बढ़ रहा है, खासकर स्पाइन में. हालांकि हड्डियों में कमजोरी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन बुजुर्गों में इसके मामले अधिक देखने में आते हैं. कंप्रेशन फ्रैक्चर तब होता है जब स्पाइन की कमजोर हड्डी क्षतिग्रस्त हो जाती है और काफी बैक पेन होता है.
जब कई हड्डियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो लंबाई पर असर पड़ने के साथ बॉडी पॉश्चर भी प्रभावित होता है. कई मरीजों में, दर्द लगातार होता है, क्योंकि लगातार हड्डियां क्षतिग्रस्त होती रहती हैं.
स्पाइन के ज्यादातर फ्रैक्चर को ठीक करने से पहले बेड रेस्ट कराते हैं, ताकि दर्द पूरी तरह से खत्म हो जाये. दर्द निवारक दवाएं, बैक ब्रेसेस और फिजिकल थेरेपी भी दी जा सकती है.
कभी-कभी मरीज की स्पाइन को तत्काल बचाने के लिए सर्जरी की जाती है. इसमें बोन ग्राफ्ट या इंटरनल मेटल डिवाइस की मदद ली जाती है. अब नयी नॉन-सर्जिकल ट्रीटमेंट काफी कारगर है, जिसे वर्टिब्रोप्लास्टी कहते हैं. यह खासकर उन मरीजों के लिए अच्छा विकल्प है, जिन्हें बेड रेस्ट, एनालजेसिक्स और बैक ब्रेसिंग देने के बाद भी राहत नहीं मिल पा रही है.
क्या है वर्टिब्रोप्लास्टी की प्रक्रिया
वर्टिब्रोप्लास्टी एक नयी नॉन-सर्जिकल टेक्नीक है, जिसमें मेडिकल ग्रेड सीमेंट को एक नीडिल के माध्यम से दर्दवाले हिस्से में इंजेक्ट किया जाता है.
इसकी मदद से मरीज अपने रोजमर्रा के काम निपटा सकता है. साथ ही एनालजेसिक्स लेने से भी बच सकता है. फ्रैक्चर में भी आराम पहुंचता है. वर्टिब्रोप्लास्टी दर्दवाले और बढ़ रहे बिनाइन ट्यूमर, मेलिग्नेंट जख्म का भी इलाज है. मल्टीपल मायलोमा, हिमेंजीओम और कई स्पाइनल बोन कैंसर में जहां परंपरागत थेरेपी भी काम नहीं करती, वहां वर्टिब्रोप्लास्टी कारगर साबित होती है.
वर्टिब्रोप्लास्टी के बाद कई मरीजों को दर्द से राहत मिली है. ज्यादातर मामलों में इस प्रक्रिया के बाद तत्काल दर्द दूर हुआ और एक ही दिन में मरीज अपने दिनचर्या के काम पर वापस लौट गया. इसमें क्षतिग्रस्त हड्डियों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल की जानेवाली बोन सीमेंट का प्रयोग काफी सेफ तरीका है.
अगर आपको हड्डी टूटने (ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर वर्टिब्रा) की वजह से काफी बैक पेन हो रहा हो, तो अब दो हफ्तों का बेड रेस्ट, दर्द निवारक दवाएं लेने की जरूरत नहीं है. ऐसे में विशेषज्ञ की सलाह से वर्टिब्रोप्लास्टी करायी जा सकती है. हाल में हुए फ्रैक्चर को वर्टिब्रोप्लास्टी से जल्दी ही ठीक किया जा सकता है. ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर की सफलता दर 90-95 प्रतिशत है. एग्रेसिव हिमेंजीओम्स का भी वर्टिब्रोप्लास्टी से इलाज संभव है. साथ ही मैलिग्नेंट पैथोजेनिक फ्रैक्चर में भी राहत मिल सकती है.
मोटापा से वर्टेब्रल डिस्क को नुकसान
मोटापे के कारण पीठ दर्द और परेशानियां इसलिए बढ़ती हैं, क्योंकि पेट के आसपास अतिरिक्त वजन बढ़ने से पेट के नीचे का कमर वाला हिस्सा आगे की तरफ खिंचता है, इससे पीठ के निचले हिस्से पर दबाव बढ़ता है और दर्द शुरू हो जाता है.
मोटे आदमी की वर्टेब्रल डिस्क बहुत तेजी से कमजोर या खराब हो जाती है. रीढ़ की हड्डी ही हमारे शरीर के वजन को सबसे ज्यादा सहारा देती है. अतिरिक्त वजन का अर्थ है रीढ़ पर अतिरिक्त दबाव और तनाव, जो वर्टेब्रा कॉलम में नुकसान पहुंचानेवाले बदलाव लाता है.
वर्टिब्रोप्लास्टी के फायदे
दर्द में कमी : वर्टिब्रोप्लास्टी से दर्द कम होता है. कुछ मामलों में तो पेनकिलर दवाओं की भी जरूरत नहीं होती. यह जल्दी मरीज को सामान्य स्थिति में ले आने में कारगर उपाय है.
कार्यक्षमता में वृद्धि : वर्टिब्रोप्लास्टी फ्रैक्चर में राहत देकर दर्द कम करता है और रोजमर्रा के कार्यों के लिए तैयार करता है.आगे टूट-फूट से बचाव : ऑस्टियोपोरोसिस और स्ट्रेंथनिंग के दौरान हड्डियों के बीच में हुई जगह को भरने के लिए खास सीमेंट का इस्तेमाल होता है, जिससे भविष्य में फ्रैक्चर होने की आशंका कम हो जाती है.
संक्रमण का खतरा नहीं : पूरी प्रक्रिया में मात्र 3 एमएम का चीरा लगता है, जो जल्द ही भर जाता है और संक्रमण का खतरा नहीं रहता.
बेहोशी का कोई प्रभाव नहीं : इस प्रक्रिया के दौरान एनेस्थीसिया दिया जाता है, जिसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है.
डे-केयर प्रोसीजर : यह प्रक्रिया काफी कम समय लेती है, जिसमें 30 मिनट से भी कम समय लगता है, क्योंकि सीमेंट जल्द ही सख्त हो जाता है और जल्द ही मरीज चलने-फिरने लायक हो जाता है. इलाज के बाद उसी दिन घर जा सकता है.
पीठ दर्द की परेशानी को अनदेखा न करें
डॉ अरविंद कुलकर्णी
हेड, मुंबई स्पाइन स्कोलियोसिस एंड डिस्क रिप्लेसमेंट सेंटर,
बॉम्बे हॉस्पिटल, मुंबई
विशेषकर मोटे मरीजों (जिनका बीएमआइ 30 से ज्यादा हो) में रीढ़ की हड्डी की सर्जरी के दौरान जटिलताएं और संक्रमण पैदा होने की आशंका दुबले मरीजों के मुकाबले काफी ज्यादा होती है.
ऐसे मरीजों का सर्जरी से पहले वजन कुछ कम किया जाये तभी सर्जरी के बाद आराम जल्दी मिल सकता है. इसके अलावा ज्यादा वजन वाले लोगों में इंट्राविनस लाइन डालने के लिए खून की नस मिलना भी मुश्किल भरा होता है. इसलिए स्पाइन पेन के मामले में वर्टिब्रोप्लास्टी काफी आधुनिक व कारगर तकनीक है.
खास है कि पीठ दर्द या रीढ़ की हड्डी की परेशानियों से पीड़ित अधिकतर लोग शायद यह जानते ही नहीं कि उनका अधिक वजन ही वास्तव में उनकी रीढ़ की हड्डी की परेशानी को बढ़ा रहा है. यदि वे व्यायाम करते हैं, तो उन्हें थकान, सांस लेने में परेशानी जैसी समस्या आ सकती है और यदि व्यायाम नहीं करते हैं, तो लगातार बढ़ते वजन से उनकी रीढ़ की हड्डी पर दबाव बढ़ता जायेगा. ऐसे में उनका पीठ दर्द या रीढ़ की हड्डी की परेशानी आगे और गंभीर हो जायेगी.

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