36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

करम पर्व पर विशेष : प्रकृति से निकटता बढ़ाने का त्योहार

शैलेन्द्र महतो, पूर्व सांसद करम या करमा पर्यावरण की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण त्योहार है. विकसित सभ्यता ने अपनी उपभोक्तावादी संस्कृति और भौतिक उपलब्धियों के लोभ में एक ओर जंगल काटकर फर्नीचर बना डाले, वहीं दूसरी ओर सभी प्रकार के प्रदूषणों से न सिर्फ विश्व मानवता को आहत किया, बल्कि पूरी पृथ्वी को ही विनाश […]

शैलेन्द्र महतो, पूर्व सांसद

करम या करमा पर्यावरण की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण त्योहार है. विकसित सभ्यता ने अपनी उपभोक्तावादी संस्कृति और भौतिक उपलब्धियों के लोभ में एक ओर जंगल काटकर फर्नीचर बना डाले, वहीं दूसरी ओर सभी प्रकार के प्रदूषणों से न सिर्फ विश्व मानवता को आहत किया, बल्कि पूरी पृथ्वी को ही विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है. सभ्यता के विकास काल से ही स्थापित भले ही वह धार्मिक भावना से ही प्रेरित क्यों न हो, झारखंड राज्य और उसके सीमावर्ती क्षेत्र जैसे पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के रीति-रिवाजों में समानता है. यहां पूजा जानेवाला करम वृक्ष, सरहुल में पूजा जाने वाला शालवृक्ष और शादी-ब्याह में पूजे जाने वाले आम-महुआ के पेड़ साधारणत: काटे नहीं जाते, बल्कि यहां तक जिस व्यक्ति का टोटेम (गोत्र) में मिलता-जुलता पेड़ का नाम होता है उसे भी वह नहीं काटता. धार्मिक आस्था से झारखंड के लोग प्रकृति-पूजक हैं और प्रकृति पूजक लोगों के संस्कार ही पर्यावरण संरक्षण के हैं.

करम या करमा त्योहार वास्तव में फसलों और वृक्षों की पूजा का पर्व है. झारखंड क्षेत्र में वृक्षों की पूजा की परम्परा मानव सभ्यता के विकास के साथ ही चली आ रही है. झारखंड के आदिवासी और गैर अनुसूचित आदिवासी जातियां आस्था से प्रकृतिपूजक हैं. इनके देवता ईंट के बनाये किसी घर के अंदर या किसी छत के नीचे नहीं बल्कि मुक्त आकाश के सूरज, चांद, मेघ और सितारों की छांव में और पहाड़ों पर रहते हैं. झारखंडी संस्कृति के लोग किसी आकृति वाली प्रतिमा (मूर्ति) की नहीं, बल्कि प्रकृति की पूजा करते हैं. पूजा की तिथियां, मंत्र सब कुछ इनके अपने हैं. पुरोहित के लिए किसी ब्राह्मण की जरूरत नहीं, बल्कि उनके सामाजिक पुरोहित पाहन/महतो/लाया कहे जाने वाले पूजा-पाठ करते हैं.

करम त्योहार भादो महीने की उजाला पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है, किन्तु इसके विधि-विधान सात दिन पहले से ही शुरू हो जाते हैं. व्रती कुंवारी लड़कियां अपने साथ बांस की टोकरी (डाला) और अनाज (कुर्थी, गेहूं, चना और धान आदि) के बीज लेकर गांव की नदी, पोखर या तालाब (अपनी सुविधानुसार) के घाट पर जाती हैं. स्नान के बाद टोकरी में बालू डालती हैं. यहीं से बीज के अंकुरित होने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है. अपने-अपने करम जाना टोकरियों को बीच में इकट्टा रख कर सभी व्रती अपनी सहेलियों के साथ एक दूसरे का हाथ पकड़कर चारों ओर उल्लास में गीत गाती हुई नृत्य करती हैं. व्रती कुमारियां घर लौटकर टोकरी को पवित्र किये गये स्थान में सहेजकर रखती हैं और करम त्योहार के एकादशी तक हल्दी मिले जल के छींटों से दोनों शाम नियमित रूप से प्रतिदिन सींचती हैं. प्रति संध्या गांव की सखी-सहेलियां एक साथ घर के आंगन में टोकरी (डाला) को रखकर एक-दूसरे का कमर पकड़े नाचती, झूमती, गाती हुई चारों ओर परिक्रमा करती हैं. कुंमारियों के नियमित स्नेह दुलार और नृत्य गीतों के बीच बीज अंकुरित होकर पौधे बढ़ते जाते हैं जो एकादशी के दिन करमा पूजा के रूप में शामिल होते हैं. ये अंकुरित पौधे जावा कहलाते हैं.

कुवांरी बालिकाओं द्वारा की जाने वाली विधियां सिर्फ धार्मिक रीति-रिवाजों का निर्वाह ही नहीं, बल्कि कृषि कार्य और पौध संरक्षण के प्रशिक्षण का प्रारंभ भी है. कृषि कार्यों में झारखंड क्षेत्र की महिलाएं, पुरुषों के मुकाबले अधिक बोझ उठाती हैं. पुरुष हल जोतकर रोपनी लायक खेत बनाते हैं. उसके बाद रोपनी से लेकर कटनी तक, बल्कि फसल कूट-पीस कर भोजन बनाने का सारा काम तो महिलाएं ही करती हैं. फसल तैयार करने की पूरी प्रक्रिया में पुरुष सहायक भर ही होते हैं. उन व्रती बालिकाओं को करम जावा उनके भावी जीवन के कर्तव्यों और दायित्वों से परिचित कराता है और इन अवसरों पर गाये जाने वाले गीतों में होता है उनका प्रशिक्षण और कृषि दर्शन.

भादो एकादशी के दिन का करम त्योहार जिसका इंतजार लोग पूरे साल करते हैं, अलग-अलग समुदायों की धर्म कथाओं में कुछ-कुछ भिन्नता भले ही हो, लेकिन मूल भावना एक ही है. करम देवता उनके प्रतीक, जिन्हें पाहन-महतो-लाया कहा जाता है, सभी उपवास रखते हैं. बाद बाकी लोगों को खाने-पीने की पूरी छूट रहती है. पूजा के स्थान में विधि-विधान के साथ करम के पेड़ से एक या दो टहनियां लाकर गाड़ा जाता है. इसी करम टहनी के पास करम देवता की पूजा की जाती है, जहां चारों ओर घेर कर भक्ति भाव से लोग उपस्थित रहते हैं. करमू-धरमू दो भाई की कथा होती है. करम देवता ही वर्षा लाते हैं, उनके फसलों की रक्षा करते हैं और किसानों के जीवन से दुख-दारिद्र्य खत्म कर खुशहाली और समृद्धि देते हैँ. करम पेड़ का दो टहनियां एक साथ गाड़कर पूजा करने वाले मानते हैं कि वह पुरुष और प्रकृति अथवा सूर्य और पृथ्वी के मिलन का प्रतीक है. कुछ लोग उन्हें शिव और पार्वती की भी संज्ञा देते हैं.

उनका विश्वास है कि इनके मिलन से फसल बहुत ही अच्छी होती है. व्रतियों की पूजा-विधि खत्म होते ही बजने लगता है-मांदल और ढोल, कंठों से निकलते हैं झूमर गीत और थिरक उठते हैं पांव. सारी रात चलता है सामूहिक नाच. झारखंडी लोकनृत्यों में घुंघरू नहीं बांधे जाते. घुंघरू तो दरबारी संस्कृति का प्रतीक है, जिसमें कलुष होता है. झारखंडी लोक नृत्य कलुष विहीन होते हैं, इसलिए करम नृत्य में महिलाएं, पुरुष, बूढ़े, जवान, छोटे, बड़े सभी एक साथ, एक दूसरे की कमर में बाहें डाले एक समूह में सारी रात झूमर गीत और मांदल, ढोल की ताल पर भाव विभोर होकर नाचते रहते हैं. थिरकते पांव और गाते कंठ तभी रुकते हैं जब लाल सूरज सफेद होने लगता है, यानि सुबह हो जाती है. सभी गीतों की गूंज और पांवों की थिरकन पूरी तरह रुकी नहीं है. पूजा की गयी करम टहनियों को वे नाचते-गाते विसर्जन के लिए नदी, तालाब या पोखर में ले जाते हैं.

विसर्जन कर लौटते वक्त कई कंठ गाते ही रह जाते हैं और लौटते हुए वे खेत से एक धान का पूरा पौधा जड़ समेत उखाड़ कर लेते आते हैं जिसकी स्थापना कर पूजा की जाती है और परम्परानुसार उसके बाद व्रती कच्चू के पत्ते पर बासी (पाखाल) भात से पारना करते हैं. इस दिन गर्म भात खाना मना है. उस पूजा किये गये धान के पौधे को पुन: खेत में रोप दिया जाता है और करम त्योहार का दूसरा चरण पूरा होता है. द्वादशा के दिन झारखंड क्षेत्र का हर किसान अपने खेतों के बीच में किसी भी झाड़ी की एक-एक टहनी गाड़ देता है. अपने परिभ्रमणकारी देवता को किसी ने आजतक कभी देखा हो या नहीं, लेकिन फसलों की निरंतर रक्षा करते रहने वाले कई देवता (पक्षी)अवश्य इन टहनियों पर बीच-बीच में विश्राम करते दिखायी दे जाते हैं. प्रकृति की पूजा करने वाले लोग, जिनकी आस्था के देवता पेड़ों पर रहते हैं, जो पेड़ों की पूजा करते हैं वो ईंट-गारे के मंदिर नहीं बनाते, बल्कि जाहेर थान, सरना स्थलों के पेड़ ही उनके मंदिर हैं. झारखंड क्षेत्र का करम त्योहार वास्तव में प्रकृति वन्दना का त्योहार है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें