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शहीद जवान की पत्नी को न नौकरी मिली, न जमीन राज वर्मा, रांची : जम्मू में तैनात बीएसएफ के जवान सीताराम उपाध्याय पाकिस्तानी रेंजरों से लड़ते हुए 18 मई 2018 को महज 28 वर्ष की उम्र में शहीद हो गये थे. उस समय राज्य सरकार की ओर से घोषणा की गयी थी कि शहीद के […]

शहीद जवान की पत्नी को न नौकरी मिली, न जमीन

राज वर्मा, रांची : जम्मू में तैनात बीएसएफ के जवान सीताराम उपाध्याय पाकिस्तानी रेंजरों से लड़ते हुए 18 मई 2018 को महज 28 वर्ष की उम्र में शहीद हो गये थे. उस समय राज्य सरकार की ओर से घोषणा की गयी थी कि शहीद के आश्रित को नौकरी और जमीन दी जायेगी. लेकिन नौ माह बाद भी शहीद की विधवा रश्मि उपाध्याय को न नौकरी मिली और न ही जमीन.

इस बाबत रश्मि ने प्रभात खबर से बातचीत में बताया कि पति देश की सुरक्षा में शहीद हुए. मुझे और मेरे परिवार को गर्व है. लेकिन उनके चले जाने से अब घर में कोई दूसरा कमाने वाला नहीं है. राज्य सरकार ने नौकरी और जमीन देने की बात कही थी. जो अब तक नहीं मिला है. इस संबंध में उन्होंने पत्राचार किया तो मुख्यमंत्री जनसंवाद में कहा गया कि अभी तक बीएसएफ की ओर से एनओसी नहीं दिया गया है.

जब उन्होंने बीएसएफ के अधिकारी से संपर्क किया, तो उन्हें बताया गया की झारखंड सरकार को एनओसी भेज दिया गया है. अब एनओसी की बात में नौकरी और जमीन नहीं मिल रही है. तीन साल की बेटी सिद्धि और दो साल का बेटा कन्हैया के साथ ही ससुर बृजनंदन उपाध्याय और सास किरण देवी ही परिवार में है. घटना के बाद राज्य सरकार और बीएसएफ की तरफ से पैसे मिले थे. उसी में से कुछ पैसे से घर किसी तरह चल रहा है. बिना नौकरी के घर कैसे चलेगा. बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी. सास-ससुर का क्या होगा. यह चिंता मुझे खायी जा रही है.

रश्मि ने बताया कि अभी उनका परिवार गिरिडीह जिले के अति नक्सल प्रभावित पीरटांड़ थाना क्षेत्र के पालगंज में रहता है. सरकार की ओर से यह भी कहा गया था कि पालगंज मोड़ पर मेरे पति सीताराम उपाध्याय की प्रतिमा लगेगी और तोरण द्वार बनाया जायेगा. लेकिन यह भी घोषणा तक सीमित रह गयी. मैं सरकार से मांग करती हूं कि जो भी घोषणाएं की गयी थी उसे पूरा किया जाये, ताकि शहीद का परिवार खुद को उपेक्षित महसूस नहीं करे.

सरकारी मरहम से भी नहीं भर सका शहीद की मां का जख्म

इमरान, साहिबगंज : 02 जुलाई 2013 को पाकुड़ एसपी अमरजीत बलिहार के साथ नक्सली हमले में शहीद हुए संतोष मंडल की मां प्रेमा देवी की नजर आज भी बेटे के इंतजार में दरवाजे पर लगी रहती है. सरकारी मरहम भी उनके जख्म को भर नहीं पाया है. पत्थर तोड़ कर पुत्र को पुलिस विभाग में भेजने वाले पिता राज कुमार मंडल भी उस हादसे को नहीं भूल पाये हैं. कहते हैं बड़ा बेटा परिवार का आसरा था. दो वर्ष बाद उसके परिवार की जिंदगी पटरी पर लौट पायी है.

सरकार से मुआवजा मिला है. साथ ही आश्रित के तौर पर मंझले भाई श्रीराम मंडल को नौकरी मिली है और पुलिस विभाग में पाकुड़ में पदस्थापित हैं. सबसे छोटा भाई मैट्रिक की परीक्षा देनेवाला है. दो बहनें गुड़िया व रीना की शादी हो चुकी है. मुआवजे की राशि से बने पक्के के मकान में पूरा परिवार रहा है. लेकिन संतोष की कमी परिजनों को आज भी खलती है.

समदा सीज, सकरीगली निवासी शहीद संतोष मंडल को पड़ोस की उसकी दादी कालेश्वरी सहित पूरा गांव आज भी याद करता है. कालेश्वरी कहती हैं कि संतोष हीरा था. जब भी आता था दादी-दादी करता रहता था. पूरे गांव का दुलारा था वह. शहादत के वक्त संतोष व उसका पूरा परिवार कालेश्वरी के घर में ही रहा था.

वो थे, तो खुशियां थी अब सब कुछ होकर भी खुशी नहीं है

नीरभ किशोर/शशांक – गोड्डा :24 अप्रैल 2014 को दुमका जिले के काठीकुंड जंगल में नक्सलियों से हुई मुठभेड़ के दौरान गोली लगने से पथरगामा प्रखंड के लखनपहाड़ी गांव के जवान रघुनंदन झा शहीद हो गये थे. इस सदमे से उनका परिवार अब तक उबरा नहीं है. पत्नी रानी देवी बताती हैं जब वे जिंदा थे, तो घर में कमियों के बावजूद परिवार में खुशियां थी. आज सब कुछ होने के बाद भी खुशियां नहीं हैं. उन्होंने कहा कि उनके पति ने 2009 में पुलिस जवान के रूप में दुमका में योगदान दिया था.

इससे पहले वे होमगार्ड में थे. नौकरी के बाद किसी तरह एक छोटा सा पक्का मकान बनाया. पति की जगह पुत्र मनमोहन झा को पुलिस में अनुकंपा पर नौकरी मिली. आज रानी देवी अपने उस घर में अकेले पति की याद को संजोये हुए हैं. जिस समय पति का शव गांव आया था. उस वक्त पुलिस से लेकर नेताओं का तांता लग गया था.

तत्कालीन आयुक्त के साथ-साथ वरीय पुलिस पदाधिकारी लखनपहाड़ी गांव पहुंच कर पूरे परिवार से मिले और लोगों के बीच आश्वासन दिया था कि रघुनंदन झा की स्मृति में स्मारक व तोरणद्वार का निर्माण कराया जायेगा. लेकिन घोषणाएं जमीन पर नहीं उतर सकीं.

जब जिंदा थे, तो हर दिन खुशी और त्योहार लगता था

जामताड़ा : मिहिजाम निवासी डीएसपी प्रमोद कुमार वर्ष 2008 में 30 जून को तमाड़ में नक्सली हमले में शहीद हुए थे. आइसीआइसीआइ बैंक के रांची ब्रांच से जमशेदपुर ले जायी जा रही करेंसी तथा सोने की लूट की हुई वारदात की पड़ताल के सिलसिले में प्रमोद कुमार तमाड़ की जंगलों से गुजर रहे थे, तभी उग्रवादियों ने उनके वाहन पर हमला कर दिया.

जवाबी कार्रवाई के दौरान उग्रवादियों के द्वारा बिछाये गये लैंड माइंस की चपेट में उनका वाहन आ गया, जिसमें वे शहीद हो गये थे. शहादत के समय उनकी उम्र 39 वर्ष थी. घटना के कुछ माह बाद ही उन्हें राज्य कैडर से प्रोन्नत कर आइपीएस में पदोन्नति मिलने वाली थी. शहीद डीएसपी के परिवार को अपने प्रिय को खोने का गम के साथ गौरव भी है.

उनकी माता आशा देवी (90)बीमार रहती हैं. भाभी मंजू देवी ने बताया कि जब प्रमोद जीवित थे तो हर दिन खुशी व त्योहार जैसा मालूम होता था. अब वे नहीं हैं तो त्योहार की खुशी भी ठीक नहीं लगती है. पुलिस विभाग से सहयोग मिलता रहा है, लेकिन अनुकंपा पर भतीजे को पुलिस विभाग में नौकरी अब तक नहीं मिली है. सरकार से उचित सम्मानजनक पद की स्वीकृति प्राप्त नहीं होने से नौकरी की बाधा खत्म नहीं हुई है.

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