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बॉलीवुड में मां दुर्गा का संगीतमय रूप, गाने जनमानस के भाव पटल पर ऐसे छाये

आशा सागर,टिप्पणीकारत्योत्योहारों की बात चले और नवरात्रि का जिक्र न आए, यह तो संभव नहीं. इस बार भी नवरात्रि हर बार की तरह उत्साह और उमंग लेकर आयी है. मां दुर्गा की आराधना को समर्पित शारदीय नवरात्रि 29 सितंबर से प्रारंभ हो गयी, जिसकी मनोहर छटा हमें सात अक्तूबर तक देश के हर कोने में […]

आशा सागर,टिप्पणीकार
त्योत्योहारों की बात चले और नवरात्रि का जिक्र न आए, यह तो संभव नहीं. इस बार भी नवरात्रि हर बार की तरह उत्साह और उमंग लेकर आयी है. मां दुर्गा की आराधना को समर्पित शारदीय नवरात्रि 29 सितंबर से प्रारंभ हो गयी, जिसकी मनोहर छटा हमें सात अक्तूबर तक देश के हर कोने में आस्था, विश्वास, अध्यात्म को संजोये हुए दुर्गा के पंडालों, गीतों, भजनों व मनोहर सजावटों के रूप में देखने को मिल रही है.

दुर्गा का हर रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री स्वयं में एक अनोखा भाव लिये हुए हैं और इनका हर रूप एक दूसरे से भिन्न है. ये रूप कभी शांति, तो कभी रौद्रता, कभी शीलता तो कभी रहस्य, कभी समर्पण तो कभी तप का संदेश देते हैं.

हमारा हिंदी फिल्मी जगत भी मां की महिमा से अछूता नहीं है. हिंदी फिल्मों में हमेशा से ही मां दुर्गा की आराधना में रचे गये गीतों ने अपनी एक विशेष जगह बनायी है. ये गीत जनमानस के भाव पटल पर ऐसे छा गये, जैसे ये सिर्फ गीत न हों, बल्कि उनकी आराधना हों, मां से विनती हों और फिल्म भर का हिस्सा न होकर हमारी संस्कृति का हिस्सा हों.

हिंदी फिल्मों में आये कुछ गीत तो ऐसे थे, जो सालों के अंतर को पाटते हुए आज तक भुलाये नहीं जा सके. ‘जय संतोषी मां’ फिल्म का गीत ‘मैं तो आरती उतारूं रे’ आज भी सुनने पर आपको दो घड़ी सब काम छोड़ उसे साथ-साथ गुनगुनाने पर मजबूर कर देता है.

वहीं फिल्म ‘आशा’ का गीत ‘तूने मुझे बुलाया शेरावालिये, मैं आया मैं आया शेरावालिये’ और फिल्म ‘अवतार’ का गीत ‘चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है’ ने देशभर में कितने ही असंख्य श्रद्धालुओं को वैष्णो देवी की यात्रा के लिए प्रेरित किया और आज भी उसी तरह प्रेरित करता है. इस गीत में बसी पुकार हमें बरबस खींचती है.

हर तरह की फिल्मों में मां के गीतों ने अलग-अलग भावों से दर्शकों को जोड़ा है. मर्द फिल्म में जब एंग्री यंगमैन कहे जानेवाले अमिताभ बच्चन ‘मां शेरावाली मां शक्तिशाली, मां मेरी मां से मिला दे मुझे’ गाते हैं, तो यह सिर्फ एक भजन नहीं रह जाता, बल्कि पुरुषत्व की कठोर छवि को तोड़ता सा प्रतीत होता है.

उधर मॉडर्न अभिनेता के रूप में चर्चित रहे अक्षय कुमार भी ‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ फिल्म में ‘मां शेरावालिये, तेरा शेर आ गया’ से चर्चित हो गये.
इस तरह के गीतों ने मातृ आराधना के गीतों को विनती के भाव से इतर एक नया रूप दिया. बहुत सी फिल्में ऐसी हैं जिनके नाम, कहानी व पात्र हमारी स्मृतियों की खूंटी से भले गिर गये हों, पर उन फिल्मों में मां दुर्गा की स्तुति में गाये गये भक्ति गीत आज भी भुलाये नहीं भूले जा सकते.
जैसे ‘कोहराम’ फिल्म का ‘जय माता दी, जय माता दी’ गीत, साल 1979 में आयी अमिताभ व रेखा अभिनीत ‘सुहाग’ फिल्म का गीत ‘ओ शेरोंवाली बिगड़ी बना दे ओ शेरोंवाली’, साल 1982 में राजेश खन्ना अभिनीत ‘अशांति’ का गीत ‘शक्ति दे मां, शक्ति दे मां’, साल 1978 में ‘भक्ति में शक्ति’ फिल्म का गीत ‘मां तेरे दरबार में झुके सारा संसार, सुन ले मेरी पुकार जोता वालिये’, जिसे मशहूर हस्ती दारा सिंह पर फिल्माया गया था.
साल 1974 में आयी फिल्म ‘आलिंगन’ का गीत ‘मात अंग चोला साजे’ आदि सभी ऐसे ही गीत हैं, जिन्होंने कभी हमें भावुक किया, तो कभी कमजोर व निःसहाय महसूस करने पर इन भक्तिगीतों से प्रेरणा मिली.
फिल्मी भक्तिगीत हमारी शक्ति और विश्वास का निरंतर स्रोत बने रहे हैं. ये वे भक्तिगीत हैं, जिन्होंने फिल्मों के माध्यम से भारतीय समाज की मध्यमवर्गीय पारिवारिक संरचना में हर आयु और वर्ग के लोगों को आस्था, प्रेम व संगीत से जोड़े रखा. क्रांतिवीर, अवतार, त्रिमूर्ति, हमसे न टकराना, करण-अर्जुन और न जाने कितनी ही बहुचर्चित फिल्मों ने मां दुर्गा के आराध्य गीतों के माध्यम से जनमानस में प्रसिद्धि पायी.
फिल्मों के माध्यम से दुर्गा मां के भजनों ने न केवल हर वर्ग को आपस में जोड़ा, बल्कि देश के अलग-अलग कोनों में रहनेवाले लोगों की संस्कृतियों की विभिन्नता और दुर्गा की आराधना के विभिन्न प्रकार के प्रचलनों से भी एक-दूसरे को अवगत कराया.
फिल्मों का एक बहुत बड़ा योगदान यह भी है कि इसने अपने इन गीतों और भजनों के माध्यम से देश की विभिन्न संस्कृतियों और मान्यताओं को उजागर किया. आज देश के हर कोने में जो डांडिया बड़े चाव से खेला जाता है, पहले डांडिया नवरात्रि में विशेष रूप से केवल गुजरात में ही खेला जाता था, पर अब देशभर में खेला जा रहा है.
आज पंडाल केवल पश्चिम बंगाल और कोलकाता में ही नहीं लगते, बल्कि देश के हर कोने में सजाये जाते हैं. आज खेतड़ी व कलश केवल पंजाब की ही चीज नहीं रह गये हैं, उन्हें भी सब ओर अपना लिया गया है.
कन्या पूजन का पवित्र उपक्रम अब केवल दिल्ली व उत्तर प्रदेश में ही नहीं सिमटा है, बल्कि यह देश के हर कोने में एक चलन बन गया है. इन फिल्मी भजन गीतों ने हमें भक्ति के हर रस से सरोबार किया है, तो वहीं देश को एक साझा संस्कृति से परस्पर जोड़े रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.

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