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आतंकवाद की पैरोकारी करता चीन, व्यापार अवरुद्ध कर दिया जाये जवाब

चीन ने एक फिर जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होने से बचाकर अपनी प्राथमिकता दुनिया को बता दी है. चीन भारत से खरबों रुपये कमाता है और दूसरी तरफ आनेवाले दशकों में विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बनने का सपना देखता है. अपनी महत्वाकांक्षा में अंधा होकर चीन आतंकियों को पनाह […]

चीन ने एक फिर जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होने से बचाकर अपनी प्राथमिकता दुनिया को बता दी है. चीन भारत से खरबों रुपये कमाता है और दूसरी तरफ आनेवाले दशकों में विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बनने का सपना देखता है. अपनी महत्वाकांक्षा में अंधा होकर चीन आतंकियों को पनाह देनेवाले पाकिस्तान की हर संभव मदद कर रहा है और उसके गुनाहों पर बार-बार पर्दा डाल रहा है. इन बातों से भड़ककर भारत में एक बार फिर चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मांग उठी है और व्यापारिक संबंध तोड़ने की बात भी चल रही है. इन्हीं बहसों के आलोक में प्रस्तुत है आज का इन दिनों…
व्यापार अवरुद्ध कर चीन को दिया जाये जवाब
डॉ अश्विनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विवि
भारत ही नहीं पूरा विश्व जिस प्रकार से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है, वह किसी से छिपा हुआ नहीं है. दुनियाभर में किसी को भी कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान आज आतंकवादियों की पनाहगाह बना हुआ है.
अमेरिका भी जानता है कि अमेरिका पर हुए भीषण आतंकवादी हमले के मुख्य गुनहगार ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान ने पनाह दे रखी थी. आज मसूद अजहर, जो दुर्दांत आतंकवादियों का सरगना है, वह भी लगातार आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है.
पाकिस्तान की सरकार तो जैसे आतंवादियों की बंधक बनी हुई है. लेकिन, चीन जब पाकिस्तान के अंध-समर्थन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में मसूद अजहर जैसे कुख्यात आतंकवादी को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर लगातार चौथी बार अड़ंगा लगाता है, तो भारत समेत दुनियाभर के देशों में गुस्सा आना स्वाभाविक ही है. आज सुरक्षा परिषद् के 13 सदस्य इस प्रस्ताव पर एकजुट हैं, लेकिन चीन के वीटो के कारण मसूद अजहर आज तक अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित नहीं हो सका है.
आतंकवाद से जूझते हुए अमेरिका और यूरोप के देश चीन के इस प्रस्ताव से अत्यंत खिन्न हैं और अमेरिका ने तो यहां तक कहा है कि चीन के वीटो के बाद अब उन्हें इस लड़ाई में अन्य रास्ते खोजने होंगे. चीन का यह कदम काफी चिंतनीय है, जिसकी हर स्तर पर आलोचना हो रही है.
उसका यह कदम दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अड़चन है. मौका है कि चीन के खिलाफ कूटनीतिक से लेकर आर्थिक कदम तक उठाये जायें, ताकि उसे पता चल सके कि ऐसी गैर-जिम्मेदाराना करतूत का खामियाजा कितना गंभीर होता है. साफ है कि चीन को अपने इस कुकृत्य की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
यह सर्वविदित है कि चीन की अर्थव्यवस्था निर्यातों पर निर्भर करती है. पिछले काफी समय से दुनिया में भारी सब्सिडी होने का फायदा उठाकर चीन ने वैश्विक बाजारों पर कब्जा जमा लिया है. इसके फलस्वरूप दुनियाभर में मैन्युफैक्चरिंग को भारी नुकसान हुआ और उसका प्रभाव भारत की मैन्युफैक्चरिंग पर भी पड़ा. अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका और बाकी तमाम मुल्कों में बेरोजगारी बढ़ने का मुख्य कारण चीन ही है. दुनियाभर में अधिकतर देश चीन से इस कारण से नाराज भी हैं.
पिछले कुछ समय से अमेरिका ने चीन से आनेवाले साजो-सामान पर आयात शुल्क बढ़ा दिये हैं, जिसके कारण चीन के निर्यातों पर भारी प्रभाव पड़ रहा है.
गौरतलब है कि अमेरिका चीनी सामानों का सबसे बड़ा बाजार है और अमेरिका को चीन से 419 अरब डाॅलर का व्यापार घाटा है. भारत भी चीन के सामान का एक बड़ा बाजार है और चीन हमें लगभग 76 अरब डाॅलर का सामान निर्यात करता है और चीन से हमारा व्यापार घाटा 63 अरब डाॅलर है.
चीन न केवल दुनिया के लिए आर्थिक खतरा है, बल्कि चीन अपने पड़ोसी देशों की सीमाओं की सुरक्षा के लिए भी खतरा बना हुआ है. चीन के अपने लगभग सभी देशों के साथ सीमा विवाद हैं, क्योंकि चीन उन देशों की भूमि पर अपना अधिकार जताता रहता है.
आज दुनियाभर में चीन के खिलाफ माहौल है और उसे सबक सिखाने के लिए इससे अच्छा मौका दुनिया को नहीं मिलेगा. भारत को चीन से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (एमएफएन) का दर्जा वापस ले लेना चाहिए, जैसा पाकिस्तान के साथ किया गया था. सुरक्षा की दृष्टि से चीन के रक्षा और टेलीकॉम उपकरणों पर भी सामरिक कारणों से प्रतिबंध लगाये जायें, क्योंकि इन साजो-सामान के आयात से हमारी सुरक्षा खतरे में है.
पूर्व में की गयी ऐसी कार्रवाई से चीनी सामानों के आयात पर असर देखा गया है, लेकिन प्रतिबंधों को और कड़ा करने की जरूरत है. गौरतलब है कि साल 2018 के बजट में जो चीनी सामान पर आयात शुल्क बढ़ाये गये, उससे छह महीने में ही चीनी आयात 2.5 अरब डाॅलर कम हो गया था.
गौरतलब है कि डब्ल्यूटीओ समझौते के अनुसार जो आयात शुल्क लगाया जा सकता है, उससे भी कम शुल्क चीनी सामानों पर लगाया जाता है. इसलिए चीनी आयात को कम करने के लिए भारत सरकार को कड़ी कार्रवाई करते हुए उसके सामानों पर शुल्क बढ़ा देना चाहिए.
चीन फिलहाल आर्थिक मोर्चे पर काफी जूझ रहा है और अमेरिका ने भी उसके खिलाफ व्यापार युद्ध शुरू किया हुआ है. इसे देखते हुए भारत के लिए ऐसा करना अपेक्षित है, ताकि चीन को यह पता चल सके कि किसी आतंकी को बचाने का नतीजा क्या होता है. यह कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई को और मजबूती देगी.

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