28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

वैश्विक आर्थिक संकट के दस साल, अब भी मुश्किलें बरकरार, जानिए क्‍या था 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट?

साल 2008 में आये वैश्विक आर्थिक संकट के दस साल पूरे हो गये हैं. यह वो दौर था, जब करोड़ों नौकरियां खत्म हो गयी थी, बैंक दिवालिया हो रहे थे, शेयर बाजार के आंकड़े गिर रहे थे और निवेशकों की धड़कन तेज हो रही थी. भारत सहित दुनिया भर की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को क्षति पहुंची […]

साल 2008 में आये वैश्विक आर्थिक संकट के दस साल पूरे हो गये हैं. यह वो दौर था, जब करोड़ों नौकरियां खत्म हो गयी थी, बैंक दिवालिया हो रहे थे, शेयर बाजार के आंकड़े गिर रहे थे और निवेशकों की धड़कन तेज हो रही थी. भारत सहित दुनिया भर की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को क्षति पहुंची थी और सबकी आर्थिक विकास दर में गिरावट दर्ज की गयी थी. इस वैश्विक आर्थिक संकट की व्यापकता, उसके कारण, परिणाम और इन दस वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़े उसके प्रभावों की पड़ताल आज के इन डेप्थ में…
अरविंद मोहन
अर्थशास्त्री
मूलभूत कदम उठाना जरूरी
साल 2008 में आये वैश्विक आर्थिक संकट से भारत के आयात-निर्यात के एक हिस्से पर बुरा असर पड़ा था और व्यापार कमजोर हुआ था, लेकिन भारत का घरेलू उत्पादन मजबूत स्थिति में था. पिछले तीस वर्षों से भारत की राष्ट्रीय आय बढ़ती रही थी और साल 2008 में भी जीडीपी की दर 9 प्रतिशत के ऊपर थी. उस पूरे दशक में औसत वृ्द्धि दर लगभग 7.2 प्रतिशत बनी हुई थी. इसके अतिरिक्त फॉरेन एक्सचेंज रिजल्ट, जमा पूंजी भी बेहतर स्थिति में बनी हुई थी.
इन संकेतों से आगे बढ़कर जब हम जीडीपी पर गौर करते हैं, तो पाते हैं कि 2001 में हमारी जीडीपी में निवेश 25 प्रतिशत का था, जो उस समय ग्लोबल स्तर पर ऐतिहासिक महत्त्व रखता था. जिस तरह अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन हो रहा था, उसके बरक्स जीडीपी में 25 प्रतिशत का निवेश करके भारत ने इस ऐतिहासिक विकास दर को प्राप्त किया था.
साल 2008 आते-आते यह आंकड़ा और अच्छी स्थिति में था और 25 प्रतिशत से बढ़कर 37 प्रतिशत पर आ गया था. पूरी दुनिया में जिन देशों की अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में दिखायी दे रही थी, भारत उनमें अव्वल नंबर पर था और यह माना जा रहा था कि भारत को अब अग्रणी होने से रोका नहीं जा सकता. इस बीच हमसे कुछ गलतियां हुईं और हमारी अर्थव्यवस्था पिछड़ी, पर थोड़े अंतराल के बादही पुरानी मजबूत स्थिति में लौट आयी. वर्तमान समय में ट्रेड वार के खतरे मंडरा रहे हैं और दुनियाभर में चुनौतीपूर्ण स्थिति बनी हुई है.
तमाम देश 2008 के बाद से कमजोर बने हुए हैं, इटली, फ्रांस जैसे देशों की जीडीपी बेहतर स्थिति में नहीं है और यूरोप के बड़े हिस्से में आर्थिक संकट की आशंका बनी हुई है.
चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट आयी है और विकास दर नीचे गया है. ऐसे में भारत को इन उदाहरणों से सीखने की जरूरत है. चीन की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक गड़बड़ियां थीं, जिससे वहां गिरावट दर्ज हुई.
कुछ ऐसी ही स्थिति भारत के सामने भी खड़ी है. अब भारत को घरेलू क्षेत्रों में मूलभूत कदम उठाने की जरूरत है. इस शताब्दी के पहले दशक में भारत की विकास दर 7.2 प्रतिशत, इंडस्ट्रीज की वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र की 9 प्रतिशत थी, वहीं कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर मात्र 2.8 प्रतिशत थी. पिछले कुछ वर्षों में यह जीरो के समीप रही है.
यह स्थिति अर्थव्यवस्था में नयी संरचनात्मक मुश्किलें पैदा करेगी. एक तरफ भारत की विकास दर और जीडीपी लगातार बढ़ रही है, देश की कमाई भी बढ़ी है और साथ ही उपभोग और मांग में वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी तरफ कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए हमारे पास कोई रोडमैप नहीं है. अगर भारत ने इस स्थिति की ओर ध्यान नहीं दिया और अर्थव्यवस्था में दीर्घकालीन संतुलन नहीं पैदा कर पाया, तो भविष्य में हमारी अर्थव्यवस्था भी नीचे गिरती जायेगी.
साल 2008 से विनिर्माण के क्षेत्र में गिरावट
वित्तीय वर्ष उद्योगों में जमा धन
(वाईओवाई दर % में )
2007-08 27.8
2008-09 22.8
2009-10 24.4
2010-11 24.3
2011-12 19.8
2012-13 15.4
2013-14 12.3
2014-15 5.9
2015-16 0.1
2016-17 -1.4
2017-18 1.0
(स्रोत- राष्ट्रीय आवासीय बैंक)
क्या था 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट?
आज से दस वर्ष पहले दुनिया ने ऐसा समय देखा था, जब वैश्विक आर्थिक संकट का एक सिलसिला शुरू हुआ था. अमेरिका का वाल स्ट्रीट बैंक, लेहमन ब्रदर्स दिवालिया हो गया था. साल 2008 में जिस व्यापक वैश्विक आर्थिक संकट की शुरुआत हुई थी, लेहमैन ब्रदर्स उस श्रृंखला की पहली कड़ी था. इस दशक के मध्य तक एक ट्रेंड बना हुआ था, जब सभी बड़ी कंपनियां आवासीय क्षेत्रों में निवेश कर रही थीं.
इसी क्रम में, लेहमन ब्रदर्स ने रियल इस्टेट के क्षेत्र में बहुत भारी निवेश किया था और इसके लिए अपनी संपत्ति तक गिरवी रख दी थी. जब यह ट्रेंड फेल हुआ और आवासों के दाम गिरने लगे और ब्याज दरों में बहुत तेजी से बढ़ोत्तरी हुई, कर्ज में गले तक दबे लेहमन ब्रदर्स सहित सभी प्रमुख बैंक भारी घाटे में जाने लगे.
सितंबर 2008 में जब लेहमन ब्रदर्स ने खुद को दिवालिया घोषित किया, उस वक्त तक वह 619 बिलियन डॉलर के कर्जे में डूब चुका था. आसान शब्दों में कहें, तो यह वित्तीय संकट संयुक्त राज्य अमेरिका में नकदी की कमी से पैदा हुआ था. इस संकट की शुरुआत के बाद, दुनिया ने वित्तीय संस्थाओं के पतन के साथ-साथ राष्ट्रीय सरकारों द्वारा बैंकों को दिवालिया घोषित करना देखा.
सितंबर 2018 के बाद, दुनियाभर में शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर गिरावट दर्ज की जाने लगी. इस व्यापक आर्थिक संकट ने भारी मंदी की स्थिति पैदा की और लाखों लोग बेघर हो गये, करोड़ो नौकरियां चली गयी और अनेक ट्रिलियन डॉलर की संपत्तियां नष्ट हो गयीं. अर्थशास्त्रियों ने इसे 1930 दशक की मंदी के बाद का सबसे बड़ा वित्तीय संकट कहा था.
भारत के सेंसेक्स में 60 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी थी और यह 21,000 के आंकड़े से 8,500 पर आ गया था. भारत की जीडीपी पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 9.32 प्रतिशत से गिरकर 2008-09 में 6.72 प्रतिशत पर आ गयी थी. इन कारणों से प्रमुख व्यवसायों में विफलता देखी गयी. सरकारों द्वारा दिखायी जानेवाली वित्तीय प्रतिबद्धताओं और आर्थिक गतिविधियों में बड़ी गिरावट देखी जाने लगी. बैंक शोधन क्षमता, ऋण उपलब्धता में गिरावट और निवेशकों के लगातार अविश्वसनीय होते चले जाने के कारण वैश्विक शेयर बाजार पर बुरा प्रभाव पड़ा था.
साल 2008 के उत्तरार्ध और 2009 के प्रारंभ में निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. वित्तीय उत्पादों में निवेश के जोखिमों को आंकने में ऋण मूल्यांकन एजेंसियों और निवेशकों से भूल हुई थी. वहीं दूसरी तरफ, सरकारों ने भी वित्तीय संकटों के समय हल ढूंढ़ने वाली कोई भी विनियामक प्रक्रिया समायोजित नहीं की थी.
इन्हीं सब कारणों से, ऋण संकुचन और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट दर्ज की गयी और दुनियाभर में अर्थव्यवस्थाओं की गति धीमी हो गयी. जीडीपी और आर्थिक विकास दर के आंकड़े बताते हैं कि इस वैश्विक आर्थिक संकट ने विकसित देशों के बीच लगातार अपनी स्थिति मजबूत कर रहे ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) की विकास दर को धीमा कर दिया था.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें