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Thursday, March 28, 2024

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अयोध्या विवाद : फैसले का इंतजार

सर्वोच्च न्यायालय में दी सभी पक्षों ने दलीलें बहुचर्चित अयोध्या विवाद की अंतिम सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में विभिन्न पक्षों की तमाम दलीलों के साथ संपन्न हुई. पांच जजों, जस्टिस एसए बॉब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की संवैधानिक खंडपीठ की अगुवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा मामले की […]

सर्वोच्च न्यायालय में दी सभी पक्षों ने दलीलें
बहुचर्चित अयोध्या विवाद की अंतिम सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में विभिन्न पक्षों की तमाम दलीलों के साथ संपन्न हुई. पांच जजों, जस्टिस एसए बॉब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की संवैधानिक खंडपीठ की अगुवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा मामले की बीते 40 दिनों से सुनवाई की जा रही थी.
अब पक्षकारों के साथ-साथ देश-दुनिया की नजरें अदालत के फैसले पर टिकी हैं. साल 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2.77 एकड़ के विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच बांटने का आदेश दिया था. इस फैसले के खिलाफ कुल 14 अपीलें की गयीं. अब शीर्ष अदालत का रुख इस मामले में निर्णायक है. अयोध्या मामले के विविध पक्षों, पक्षकारों और घटनाक्रम की जानकारी के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
मालिकाना हक पर दोनों पक्षों का दावा
रामलला पक्ष की दलील
सुप्रीम कोर्ट में रामलला पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वकील का कहना है कि अयोध्या में जन्मस्थल ही देवतातुल्य है. कोई ढांचा खड़ा कर इस पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता. उन्होंने कब्जे का हवाला देते हुए कहा कि राम जन्मस्थान पर हिंदुओं ने हमेशा पूजा-अर्चना के अधिकार का दावा किया है. रामलला पक्ष के वकील ने विवादित भूमि पर मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़ा के दावे को खारिज किया है.
मुस्लिम पक्षकी दलील
मुस्लिम पक्ष ने विवादित स्थान पर मालिकाना हक की दलील दी है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वैधानिक बेंच को विवादित स्थान पर मालिकाना हक किसका बनता है, इस आशय की पड़ताल करनी चाहिए. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ‘गलत एक्ट’ जारी रखने की दलील दी है. उसका कहना है कि 22 दिसंबर, 1949 को मस्जिद के गुंबद के नीचे मूर्ति रख दी गयी थी. इसके बाद मजिस्ट्रेट ने यथास्थिति बहाल रखने का ऑर्डर पास कर दिया था. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि इस गलती को जारी रखा गया.
मंदिर के साक्ष्य पर दोनों पक्षों के तर्क
हिंदू पक्ष
हिंदू पक्ष के वकील का कहना है कि पुरातत्व सर्वेक्षण से जुड़े साक्ष्य हमारी आस्था को सपोर्ट करते हैं. रामलला विराजमान के वकील का कहना है कि मस्जिद के नीचे मंदिर की संरचना मिली है. इसमें कमल, परनाला, वृत्ताकार श्राइन के साक्ष्य मिले हैं. वकील के अनुसार, राम जन्मस्थान हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. स्कंद पुराण के हवाले से तर्क दिया है कि जन्म स्थान पर जाने भर से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मुस्लिम पक्ष
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि साल 1949 में मूर्ति को बीच वाले गुंबद के नीचे रख दिया गया. इससे पहले मूर्ति की पूजा बाहरी आंगन के राम चबूतरे पर होती थी. वकील राजीव ने कहना है कि फैजाबाद के तत्कालीन उपायुक्त केके नायर ने निर्देश के बावजूद मूर्तियों को हटाने की इजाजत नहीं दी. धवन के अनुसार, 22-23 दिसंबर, 1949 की रात गुपचुप तरीके से मूर्तियों को रखा गया, वहां पर कोई चमत्कार नहीं हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष से किये सवाल
बेंच ने पूछा कि जीसस जैसे किसी अन्य धार्मिक व्यक्ति के जन्म स्थान को लेकर ऐसा मामला किसी कोर्ट में आया? रामलला विराजमान के वकील ने कहा, वह इसकी जानकारी जुटायेंगे. रामलला विराजमान के वकील ने कहा है कि विवादित स्थल ही राम जन्मस्थान है, सदियों बाद इसका प्रमाण कैसे दिया जा सकता है.
कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा, क्या उसके पास कब्जे से संबंधित मौखिक या राजस्व रिकॉर्ड है? निर्मोही अखाड़ा की ओर से कहा गया कि 1982 में हुई डकैती में सारे रिकॉर्ड चोरी हो गये.
शिया वक्फ बोर्ड हिंदुओं के पक्ष में
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित जमीन का एक तिहाई हिस्सा मुस्लिम संगठनों को आवंटित किया था. शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए वह जमीन देने को तैयार है. बोर्ड ने कहा है कि मस्जिद का पहला मुतवल्ली (देखभाल करनेवाला) बाबर का कमांडर मीर बाकी शिया मुस्लिम था.
एएसआई रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष ने मांगी माफी
एएसआई रिपोर्ट मसले पर मुस्लिम पक्ष अपने रुख से पलट गया है. इससे पहले पक्ष ने एएसआई रिपोर्ट पर सवाल उठाया था. पांच जजों की संवैधानिक खंडपीठ के समक्ष मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने एएसआई की रिपोर्ट पर माफी मांग ली. उन्होंने कहा कि एएसआई रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल नहीं करना चाहते. उन्होंने कहा कि यदि हमने बेंच का समय नष्ट किया है, तो इसके लिए माफी मांगते हैं.
कालक्रम
1528 : बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबर के आदेश से अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण किया. अनेक हिंदू समूहों का मानना है कि यह मस्जिद वहां स्थित राम मंदिर को गिरा कर बनायी गयी है.
1853 : मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर अयोध्या में पहली बार सांप्रदायिक हिंसा.
1859 : ब्रिटिश प्रशासन ने बाड़ लगाकर विवादित ढांचे को दो हिस्से में बांट दिया, ताकि हिंदू-मुस्लिम दोनों यहां पूजा कर सकें.
1949 : बाबरी मस्जिद के भीतर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी गयी, जिसका मुसलमानों ने विरोध किया. इसके बाद दोनों ही पक्षों ने दीवानी मुकदमा दायर किया. सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित कर यहां ताला
लगा दिया.
1984 : विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद ने एक समिति का गठन किया.
1986 : जिला न्यायाधीश ने मस्जिद परिसर का दरवाजा खोलने का आदेश देते हुए वहां स्थापित मूर्तियों की पूजा की अनुमति दी. इस आदेश को चुनौती देने के लिए मुस्लिम समूहों द्वारा मस्जिद एक्शन कमिटी बनायी गयी.
1989 : विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर के लिए अपना आंदोलन तेज किया.
25 सितंबर, 1990 : राम मंदिर निर्माण के लिए समर्थन जुटाने के लिए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के विवादित रथयात्रा की शुरुआत.
23 अक्तूबर, 1990 : बिहार के समस्तीपुर जिले में रथयात्रा रोक दी गयी और आडवाणी को गिरफ्तार किया गया.
6 दिसंबर, 1992 : मंदिर निर्माण के उद्देश्य से अयोध्या में जुटी भीड़ ने मस्जिद की इमारत को ढाह दिया और अस्थायी मंदिर की स्थापना कर दी.
10 दिसंबर, 1992 : केंद्र सरकार द्वारा अयोध्या की घटनाओं की जांच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन.
2002 : तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या प्रकोष्ठ का गठन किया. इसी वर्ष अयोध्या से लौट रहे लोगों पर गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर हमला हुआ था. इसके बाद पूरे राज्य में भयानक दंगे हुए थे.
5 मार्च, 2003 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व विभाग को खुदाई का आदेश दिया.
22 अगस्त, 2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मस्जिद के नीचे 10वीं सदी की मंदिर के प्रमाण मिले हैं.
31 अगस्त, 2003 : ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट को न्यायालय में चुनौती देने की
बात कही.
30 सितंबर, 2010 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए विवादित क्षेत्र को तीन बराबर भागों में बांट दिया. एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और एक हिस्सा रामलला को दिया गया. इस बंटवारे में रामलला को भूमि का मुख्य विवादित भाग दिया गया, जिसका मुस्लिम पक्षकरों ने विरोध किया.
दिसंबर 2010 : रामलला व सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी.
2011 : सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित स्थल को तीन भागों में विभाजित करने के उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी और यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया. सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाशीधों की पीठ ने टिप्पणी की कि उच्च न्यायालय का फैसला आश्चर्यजनक था, क्योंकि कोई भी पार्टी इस स्थल का विभाजन नहीं चाहती थी.
26 फरवरी, 2016 : विवादित ढांचे के स्थान पर राम मंदिर के निर्माण के लिए भाजपा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी की हस्तक्षेप की मांग को सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया.
2017 : उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में भाजपा नेताओं पर आपराधिक षडयंत्र रचने का आरोप लगाया और लखनऊ की ट्रायल कोर्ट को दो वर्षों में सुनवाई खत्म करने का आदेश दिया.
5 दिसंबर, 2017 : तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षतावाली एक खंडपीठ ने 8 फरवरी, 2018 को इस मामले की अंतिम सुनवाई की तारीख तय की.
2018 : उच्चतम न्यायालय ने जनवरी, 2019 में इस मामले की सुनवाई का निर्देश दिया.
26 फरवरी, 2019 : मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने 26 फरवरी को मध्यस्थता से मामले का साैहार्दपूर्ण हल निकालने की वकालत की.
6 मार्च, 2019 : उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में अदालत की निगरानी में मध्यस्थता की
कोशिश पर अपना आदेश सुरक्षित रखा. इस बीच हिंदू पक्ष के वकीलों ने यह कहते हुए मध्यस्थता का विरोध किया कि इस तरह की पहले हुई कोशिशें असफल रही हैं.
जबकि मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने बातचीत के लिए मतदान किया था.
6 अगस्त, 2019 : उच्चतम न्यायालय में इस मामले की ियमित
सुनवाई शुरू हुई.
16 अक्तूबर, 2019 : मामले की अंतिम सुनवाई पूरी हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया.
1993 में प्राप्त की गयी 67 एकड़ भूमि
दोनों पक्षों की ऐतिहासिक बिंदुओं पर दलील
हिंदू पक्ष
अखिल भारतीय श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति के वरिष्ठ अधिवक्ता पीएन मिश्र ने कहा कि बाबर कभी अयोध्या नहीं आया और न ही उसने मस्जिद का निर्माण कराया. उनका कहना है कि हिंदू पक्ष पुराकाल से राम जन्मस्थान पर पूजा-अर्चना कर रहा है. उन्होंने तर्क दिया का ढांचे का निर्माण बाबर द्वारा नहीं कराया गया और तीन गुंबद वाले ढांचे को मस्जिद नहीं कहा जा सकता है. इसके अलावा मिश्रा ने स्कंद पुराण और अयोध्या महात्म्य से राम जन्मभूमि का उल्लेख किया.
मुस्लिम पक्ष
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि अभिलेखों से स्पष्ट है कि अयोध्या में बाबर ने मस्जिद का निर्माण कराया था. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि इस बात का जिक्र बाबरनामा में भी किया गया है. मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्षकारों पर आरोप लगाया कि उसने केवल गजेटियर्स का हवाला दिया और अभिलेखों का जिक्र नहीं किया है.
उपासना स्थल पर दोनों की दलीलें
हिंदू पक्ष
रामलला विराजमान के वकील के परासरन ने कहा है कि अयोध्या का राम जन्मस्थान पवित्र और पूज्य है, वहां सदियों से पूजा होती आ रही है. निर्मोही अखाड़े का कहना है कि 1934 से उक्त स्थान पर मुस्लिम नहीं आते थे और न ही रोजाना नमाज होती थी.
मुस्लिम पक्ष
इसके उलट मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि 1934 के बाद भी विवादित ढांचे में नमाज पढ़ी गयी थी. साथ ही कहना है कि 1934 में ‘मस्जिद’ पर हमला किया गया था, जिसकी बाद में मरम्मत भी करायी गयी. इसके लिए पीडब्ल्यूडी दस्तावेज का भी जिक्र किया गया है.
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