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अमेरिका में वर्क वीजा के नियम कठोर होने से भारतीय पेशेवरों पर असर की आशंका, जानें कैसे

संरक्षणवादी नीतियों के सिलसिले में अमेरिकी सरकार ने एच-1 बी वीजा नियमों को कड़ा करते हुए इस वीजा के धारकों के पति/ पत्नी को एच-4 वीजा नहीं देने का प्रस्ताव रखा है. पहले ही इस वीजा के लिए निर्धारित कोटे को घटाया जा चुका है. भारत की सूचना-तकनीक कंपनियों और पेशेवरों के लिए अवसरों की […]

संरक्षणवादी नीतियों के सिलसिले में अमेरिकी सरकार ने एच-1 बी वीजा नियमों को कड़ा करते हुए इस वीजा के धारकों के पति/ पत्नी को एच-4 वीजा नहीं देने का प्रस्ताव रखा है. पहले ही इस वीजा के लिए निर्धारित कोटे को घटाया जा चुका है.

भारत की सूचना-तकनीक कंपनियों और पेशेवरों के लिए अवसरों की कमी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चिंता की बात है. भारतीय पेशेवरों ने इस क्षेत्र में अमेरिकी विकास में अहम भूमिका निभायी है. वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा है कि इस मसले पर वे ट्रंप प्रशासन से बात करेंगे. इस मुद्दे के विभिन्न आयामों पर एक नजर आज के इन-डेप्थ में…

भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होने का जोखिम

II आशुतोष त्रिपाठी II

पत्रकार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक और ऐसा फैसला करने की योजना बना रहे हैं, जिससे उनकी संरक्षणवादी नीतियों का पता चलता है. दुनिया को वैश्विकरण का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका में एच1-बी वीजा में कटौती, चीन और भारत जैसे देशों से आने वाले सामानों पर आयात शुल्क थोपने जैसे कदमों के बाद ट्रंप प्रशासन की नजर अब एच1-बी वीजाधारकों के जीवनसाथियों को मिलने वाले रोजगार पर है. दरअसल एच1-बी वीजाधारकों के जीवनसाथियों को एच-4 वीजा के तहत काम करने की मंजूरी दी जाती है, जिस पर रोक लगाने की तैयारी चल रही है. वर्ष 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर उन्हें काम करने की अनुमति दी थी. लेकिन ट्रंप ने अपने चुनावी वादे के मद्देनजर एक के बाद एक ऐसे कई कदम उठाये हैं, जिनसे प्रवासियों का अमेरिका में बने रहना मुश्किल होता जा रहा है. यह भी ऐसा ही एक कदम मालूम होता है.

अमेरिकी राजनीति की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों की मानें तो उनका कहना है कि नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनावों को ध्यान में रखते हुए डोनाल्ड ट्रंप प्रवासियों से जुड़े मुद्दों को खबरों में बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं.

अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने और बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराने के वादे के साथ चुनाव जीतने वाले डोनाल्ड ट्रंप के लिए यह हमेशा से एक अहम मुद्दा रहा है. एक तरफ प्रवासियों की संख्या में कटौती करने की पैरवी करने वाले थिंक टैंक और फैक्ट टैंक अमेरिकी नागरिकों के लिए इस कदम को बड़ा प्रोत्साहन मान रहे हैं, वहीं माना जा रहा है कि ट्रंप अपने इस कदम से अमेरिकी मतदाताओं को लुभाने में भी कामयाब हो सकते हैं.

भारत आने वाली रकम पर असर

ट्रंप भले ही कुछ राजनीतिक कारणों को ध्यान में रखते हुए ऐसा कदम उठाने की सोच रहे हों, लेकिन इसके परिणाम काफी दूरगामी साबित होंगे. परिणामों का अनुमान लगाने के लिए कुछ आंकड़ों पर गौर करना बनता है.

माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा किये गये एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, अमेरिका ने जून, 2017 तक 71,287 एच-4 वीजाधारकों को रोजगार हासिल करने की अनुमति दी, जिनमें करीब 94 फीसदी महिलाएं थीं. ध्यान देने योग्य बात यह है कि इनमें से 93 फीसदी भारतीय हैं.

ऐसे में नौकरी करने की मंजूरी रद्द होने का पहला प्रभाव अमेरिका में बसे भारतीय परिवारों पर पड़ेगा, जिन्होंने इन मंजूरियों के दम पर अपने परिवार के लिए भविष्य की योजनाएं बना ली हैं.

नौकरी जाने के बाद उनके लिए अमेरिका जैसे किसी देश में गुजर-बसर भी मुश्किल हो सकती है. इसका एक और असर विदेशों में रह रहे लोगों द्वारा भारत में भेजी जाने वाली राशि पर भी पड़ सकता है. हाल ही में आयी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशों से देश में भेजी जाने वाली रकम के मामले में दुनिया के देशों की सूची में भारत सबसे आगे है.

वर्ष 2017 में भारत में विदेशों से आने वाली रकम में 9.9 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली और यह राशि 69 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच गयी. इस राशि का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत के जीडीपी में इसकी करीब दो फीसदी हिस्सेदारी है. ऐसे में एक ओर तो अमेरिकी प्रशासन द्वारा एच-4 वीजाधारकों को मिलने वाले रोजगार पर रोक लगाने से अमेरिका में बसे परिवारों के लिए जीवनयापन मुश्किल हो जायेगा, दूसरी तरफ उन प्रवासी भारतीयों द्वारा देश में भेजी जाने वाली रकम में आने वाली गिरावट से भारत को नुकसान भी उठाना पड़ेगा.

उम्मीद है कि भारत और भारतीयों पर पड़ने वाले प्रभावों और देश के विकास में प्रवासी भारतीयों के योगदान के मद्देनजर सरकार इस मुद्दे को अमेरिकी प्रशासन के समक्ष जरूर जोर-शोर से उठायेगी.

वर्क परमिट रद्द करने से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

70,000 से अधिक एच-4 वीजा धारक होंगे प्रभावित

एच-1बी वीजा धारकों के पति/ पत्नी अमेरिका में अब नौकरी नहीं कर पायेंगे. यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (यूएससीआईएस) के निदेशक के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन अोबामा कार्यकाल में एच1-बी वीजा धारकों के पति/ पत्नी यानी डिपेंडेंट को दिये गये वर्क परमिट को रद्द करने की योजना पर काम कर रहा है. ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से 70,000 से अधिक एच-4 वीजा धारक प्रभावित होंगे.

जून से लागू हो सकता है नया नियम

यह नियम कब से प्रभावी होगा इस संबंध में अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इस वर्ष जून या उसके बाद यह नियम लागू हो जायेगा. इस वर्ष मार्च में जब ट्रंप प्रशासन ने एच 1-बी वीजा धारकों के डिपेंडेंट के वर्क परमिट रद्द करने के मुद्दे को आगे के लिए खिसका दिया था, तब इस निर्णय से भारतीय कामगारों व उनके परिवारों को बड़ी राहत मिली थी. उस समय होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने अदालत में कहा था कि वह जून तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं लेगा, क्योंकि इस मामले की समीक्षा के लिए समय चाहिए.

भारतीय कामगारों पर होगा असर

ओबामा काल में किये गये प्रावधान के तहत अमेरिका ने 71,000 से अधिक एच-1बी वीजा धारकों के डिपेंडेंट को वर्क परमिट दिया था, जिनमें 90 प्रतिशत से अधिक भारतीय शामिल थे. यही वजह है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा एच-4 वीजा रद्द करने के फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित भारतीय कामगार होंगे.

2015 से अस्तित्व में आयाथा एच-4 वीजा नियम

ओबामा प्रशासन ने वर्ष 2015 में एच-1बी वीजा धारकों के पति/ पत्नी के लिए वर्क परमिट जारी करने का नियम बनाया था, जिसके तहत एच-1बी वीजा धारकों के डिपेंडेंट, जो उच्च कुशल पेशेवर थे, को एच-4 वीजा जारी किया गया था. इस वीजा के तहत डिपेंडेंट अमेरिका आकर काम कर सकते थे. ओबामा प्रशासन के इस नियम से 1,00,000 से अधिक एच-4 वीजा धारकों को फायदा हुआ था. इस फैसले से लाभान्वित होनेवालों में भारतीय व अमेरिकी नागरिकों की संख्या सबसे ज्यादा थी.

94 प्रतिशत महिलाओं को जारी हुआ वीजा

माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अनुसार, जून 2017 तक यूएससीआईएस द्वारा 71,287 प्रारंभिक (बनाम नवीनीकरण) वीजा जारी किया गया था, जिनमें 94 प्रतिशत महिलाएं थीं, इसमें भी 93 प्रतिशत भारतीय और चार प्रतिशत चीन के नागरिक शामिल थे.

पुराना नियम जारी रखने का आग्रह

सिलिकॉन वैली, अमेरिका के सांसदों ने (ओबामा के कार्यकाल में) एच-4 वीजा यानी डिपेंडेंट वर्क परमिट से संबंधित बनाये गये नियमों को जारी रखने का अाग्रह किया है.

भारतीय कंपनियों की कम हुई निर्भरता

ट्रंप प्रशासन द्वारा वीजा नियमों को कड़ा करने का प्रावधान ऐसे समय में किया जा गया है, जब भारतीय आईटी कंपनियों ने अाप्रवासी भारतीयों पर अपनी निर्भरता कम की है. विदित हो कि आप्रवासन वीजा प्रोग्राम का सबसे ज्यादा इन्हीं कंपनियों ने फायदा उठाया है.

सितंबर तक जारी रहेगी एच 1-बी आवेदन निलंबन की वार्षिक सीमा

इससे पहले यूएससीआईएस ने सभी एच-1बी वीजा आवेदन से संबंधित प्रीमियम प्रोसेसिंग की वार्षिक सीमा (एनुअल कैप) को निलंबित करने की घोषणा की थी. फेडरल एजेंसी का कहना है कि इस निलंबन के 10 सितंबर, 2018 तक जारी रहने की उम्मीद है.

डिजिटल व्यवस्था में पेशेवर की घटती मांग

द नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के विश्लेषकों का कहना है कि भारत-आधारित कंपनियों में एच-1 बी वीजा की कमी का कारण यह है कि अब ज्यादातर कंपनियों में क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी डिजिटल सेवाओं की ओर इंडस्ट्री का ट्रेंड बढ़ रहा है, जिसमें कम वर्क फोर्स की जरूरत होती है. दूसरी ओर, ये कंपनियां इन कार्यों के लिए अमेरिका के घरेलू वर्क फोर्स को ज्यादा तवज्जो दे रही हैं.

अधिकतर मामलों में यह देखा जा रहा है कि अपने प्रत्येक प्रोजेक्ट के लिए कंपनियों को कर्मचारियों की जरूरत कम हुई है. अमेरिकी कंपनियों समेत अन्य सभी कंपनियों के लिए वीजा नियमों में इन सीमाओं को लागू करने से अमेरिका से बाहर के कामकाज पर व्यापक असर पड़ सकता है, नतीजन वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसका ज्यादा प्रभाव दिख सकता है.

ऐसा होने से भारत आधारित कंपनियों को निश्चित रूप से अमेरिका में तकनीकी प्रतिभा हासिल करने के लिए अन्य कंपनियों से स्पर्धा करनी होगी. इस फाउंडेशन का कहना है कि अमेरिका और भारत स्थित आईटी कंपनियों के कॉरपोरेट क्लाइंट डिजिटल इंजीनियरिंग और अधिक परिष्कृत सेवाओं का अनुरोध कर रहे हैं, जिसमें बेहतर डेटा विश्लेषण शामिल है, जिसके लिए कम कर्मचारियों और अधिक एडवांस टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है. और एच-1 बी वीजा की संख्या के मामले में यह स्पष्ट रूप से दिखता है.

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आशंकाएं

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कुछ हालिया नीतियां भारत के वाणिज्यिक हितों के लिए नकारात्मक हो सकती हैं. अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के नतीजों को लेकर चिंता तो बनी ही हुई है, पर भारत को सीधे प्रभावित करनेवाली नीतियां भी परेशानी पैदा कर सकती हैं. एच1बी वीजा को पहले के प्रावधानों के कारण भारतीय आवेदनकर्ताओं की संख्या में करीब 50 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. इससे भारत की सूचना-तकनीक कंपनियों के खर्च बढ़ सकते हैं.

अब इस वीजा के धारकों के पति/ पत्नी को कामकाजी वीजा न देने के फैसले से आवेदनों की संख्या में और कमी आयेगी. अमेरिकी वाणिज्य प्रतिनिधि ने कृषि अनुदान से लेकर बौद्धिक संपदा अधिकार और तकनीकी मानकों पर लगातार बयान दिया है. इस विभाग का मानना है कि इन मामलों में भारत की नीतियों और रवैये से दोनों देशों के परस्पर व्यापार में अमेरिकी हितों को नुकसान हो रहा है. स्वयं ट्रंप अमेरिकी मोटरसाइकिलों पर भारत के आयात शुल्क की दर पर सवाल उठा चुके हैं. एक चिंता यह भी है कि यदि अमेरिका अपने शुल्क दरों को बहुत बढ़ाता है, तो अनेक उत्पाद भारतीय बाजार का रुख कर सकते हैं, जिनसे देशी उत्पादों के निर्माण और खपत पर नकारात्मक असर हो सकता है.

इस माहौल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की बढ़ती कीमतें भारत के चालू खाता घाटे को बढ़ा सकती हैं. यह कारक आयात खर्च में इजाफा करने के साथ मुद्रास्फीति को भी जोर दे सकता है. यह कहा जा सकता है कि तात्कालिक तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने बड़ा संकट नहीं है तथा आर्थिक संकेतक सकारात्मक हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय हलचलें निकट भविष्य में समस्याएं खड़ी कर सकती हैं.

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