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आसमान में इसरो के अरमान, चंद्रयान-2 और स्पेस स्टेशन बनाने की घोषणा

वर्ष 1975 में पहले भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के प्रक्षेपण से शुरू हुई इसरो की शानदार कहानी लगातार जारी है. अगले माह चांद पर दूसरी बार तिरंगा फहराने का सफर है और आगामी सालों में अंतरिक्ष में अपना केंद्र बनाने की योजना भी है. व्यापक दूरसंचार, तकनीकी विस्तार, आपदाओं की पूर्व-सूचना, मौसम का आकलन समेत अनेक […]

वर्ष 1975 में पहले भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के प्रक्षेपण से शुरू हुई इसरो की शानदार कहानी लगातार जारी है. अगले माह चांद पर दूसरी बार तिरंगा फहराने का सफर है और आगामी सालों में अंतरिक्ष में अपना केंद्र बनाने की योजना भी है. व्यापक दूरसंचार, तकनीकी विस्तार, आपदाओं की पूर्व-सूचना, मौसम का आकलन समेत अनेक वैज्ञानिक क्षेत्रों में इसरो ने शोध, अनुसंधान और सेवा में कई मील के पत्थर पार किये हैं.
बीते दशकों में और मौजूदा वक्त में कार्यरत वैज्ञानिकों, तकनीकी सहायकों एवं अन्य कर्मियों की मेहनत के बूते भारत आज दुनिया में पहली पंक्ति के कुछ देशों के साथ खड़ा है. इसरो की कामयाबियों पर नजर डालते हुए पेश है आज काइन दिनों.
भारत का दूसरा चंद्र अभियान
भा रतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा चंद्रयान-2 को भेजने की घोषणा कर दी गयी है. इसरो प्रमुख डॉक्टर के सिवन ने कहा है कि 15 जुलाई को सुबह करीब 2.51 बजे चंद्रयान-2 काे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंंतरिक्ष केंद्र से लांच किया जायेगा.
चंद्रयान-2 को भारत में निर्मित जीएसएलवी मार्क 3 (जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल मार्क-3) रॉकेट के जरिये लांच किया जायेगा. यह यान छह सितंबर को चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा और इस जगह से जानकारियां जुटायेगा. यान को उतरने में लगभग 15 मिनट लगेंगे और यह तकनीकी रूप से बहुत मुश्किल घड़ी होगी. इस अभियान के तीन मॉड्यूल्स हैं – लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर. लैंडर का नाम विक्रम, रोवर का प्रज्ञान रखा गया है.
ऑर्बिटर जहां चंद्रमा की परिक्रमा करेगा, वहीं लैंडर चंद्रमा के पूर्व निर्धारित स्थान पर उतरेगा और वहां रोवर तैनात करेगा. लैंडिंग के बाद रोवर को बाहर निकलने में चार घंटे का समय लगेगा. इसके 15 मिनट के भीतर ही लैंडिंग की तस्वीरें मिल सकेंगी. इस अभियान के माध्यम से चंद्रमा की चट्टानों का अध्ययन होगा और उसमें खनिज तत्वों को खोजने का प्रयास किया जायेगा. चंद्रयान-2 के हिस्से ऑर्बिटर और लैंडर पृथ्वी से सीधे संपर्क करेंगे, लेकिन रोवर सीधे संवाद नहीं कर पायेगा.
इस अंतरिक्षयान का वजन 3.8 टन है और इसकी लागत लगभग 603 करोड़ रुपये, जबकि जीएसएलवी मार्क 3 की लागत 375 करोड़ रुपये है. इसरो के मुताबिक, यह यान अपने साथ कुल 13 भारतीय वैज्ञानिक उपकरणों (पेलोड्स) को ले जायेगा, जो चंद्रमा के बारे में पहले से उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी के बारे में और विस्तृत सूचना उपलब्ध करायेगा. लेजर रेंजिंग के लिए नासा का उपकरण भी इस यान के साथ जायेगा.
चंद्रयान-2 का वैज्ञानिक औचित्य
चंद्रमा के अध्ययन से पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास के बारे में और आंतरिक सौरमंडल के पर्यावरण के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है, जो संपूर्ण रूप से भारत और मानवता को लाभान्वित करेगी. चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास का पता लगाने के लिए इसकी सतह की संरचना और विविधताओं का अध्ययन जरूरी है.
इन सूचनाओं को हासिल करने के लिए चंद्र सतह की व्यापक जांच-पड़ताल आवश्यक है. इतना ही नहीं, चंद्रमा पर जल की मौजूदगी के बारे में जानने के लिए चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गये पानी के अणुओं के साक्ष्य के बारे में और जानकारी जुटानी होगी. इसके लिए चंद्रमा की सतह पर, सतह के नीचे और दसवें चंद्र बहिर्मंडल में बिखरे जल कण के अध्ययन की आवश्यकता है. चंद्रयान-2 इन्हीं सब वैज्ञानिक जानकारियों को हासिल करने का भारतीय प्रयास है.
दक्षिणी छोर को ही क्यों चुना गया
इसरो के मुताबिक चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर उतरेगा. चंद्रमा के इस हिस्से के बारे में अभी तक ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी है. यान के उतरने के लिए दक्षिणी हिस्से के चुनाव को लेकर इसरो का कहना है कि अच्छी लैंडिंग के लिए जितने प्रकाश और समतल सतह की आवश्यकता होती है, वह इस हिस्से में मिल जायेगा. इस अभियान के लिए पर्याप्त सौर ऊर्जा भी उसी हिस्से से प्राप्त होगी. साथ ही, वहां पानी और खनिज मिलने की भी उम्मीद है.
इतना ही नहीं, इसरो की मानें तो चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस हिस्से में छाया है और चंद्रमा का जो सतह क्षेत्र छाया में रहता है, वह उत्तरी ध्रुव की तुलना में बहुत ज्यादा बड़ा है. इसी छाया वाले क्षेत्र में पानी की उपस्थिति की संभावना है. इसके अलावा, दक्षिण ध्रुव क्षेत्र में क्रेटर हैं. ये क्रेटर कोल्ड ट्रैप हैं, जिनके पास प्रारंभिक सौरमंडल का जीवाश्म अभिलेख यानी फॉसिल रिकॉर्ड उपलब्ध है.
इन प्रमुख पेलोड्स को लेकर रवाना होगा चंद्रयान
चंद्रयान-2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास).
ऑर्बिटर हाइ रिजोल्यूशन कैमरा (ओएचआरसी).
इमेजिंग आइआर स्पेक्ट्रोमीटर (आइआइआरएस).
ड्यूअल फ्रिक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर राडार एल एंड एस बैंड (एसएआर).
चंद्राज सर्फेस थर्मो-फिजिकल एक्सपेरिमेंट (चास्टे).
अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस).
लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआइबीएस).
भारत बनायेगा अपना स्पेस स्टेशन
चंद्रयान-2 की घोषणा के बाद भारत का अगला लक्ष्य अंतरिक्ष में स्टेशन स्थापित करना है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख के सिवन के अनुसार मानव अंतरिक्ष मिशन के बाद गगनयान मिशन के तहत भारत स्वयं का स्पेस स्टेशन लांच करेगा. यह पूर्ण रूप से भारत द्वारा विकसित किया जायेगा. दिसंबर 2021 में प्रस्तावित मानव मिशन के बाद अगले पांच से सात वर्षों के भीतर इसरो स्पेस स्टेशन को लांच करने की योजना बना रहा है.
कैसा होगा स्पेस स्टेशन
भारत द्वारा निर्मित स्पेस स्टेशन का कुल वजन 20 टन होगा. इसे पृथ्वी की कक्षा में 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जायेगा, जहां ज्यादातर मानव निर्मित वस्तुओं को स्थापित किया जाता है.
स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए 15 से 20 दिनों तक ठहरने की व्यवस्था होगी. भारतीय स्पेस स्टेशन एक मानवयुक्त उपग्रह की तरह काम करेगा. इससे पृथ्वी की निगरानी पहले से काफी आसान हो जायेगी.
अंतरिक्ष में पहले से स्थापित हैं
आइएसएस और तिआनगोंग-2
भारत अपना अंतरिक्ष स्टेशन वर्ष 2029 तक स्थापित करेगा, हालांकि इससे पहले अंतरिक्ष में दो स्टेशन सक्रिय हैं. इनमें से एक अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और जापान के सहयोग संचालित अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आइएसएस) और दूसरा चीन का तिआनगोंग-2. अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पृथ्वी से 400 किमी की ऊंचाई पर 28 हजार किमी प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी का चक्कर लगा लेता है, यानी पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में आइएसएस को मात्र 90 मिनट लगते हैं.
स्पेस स्टेशन प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल में लाया जाता है, जिसमें छह अंतरिक्ष यात्री 180 दिनों तक रह सकते हैं. कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स समेत कई अंतरिक्ष यात्री स्पेस स्टेशन में रह चुके हैं. चीन का तिआनगोंग-2 स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष मौजूद है, हालांकि चीन 2022 तक एक 60 टन वजन वाले स्पेस स्टेशन को लांच करने की योजना बना रहा है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस)
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन एक विशालकाय स्पेसक्राफ्ट है, जिसके पहले हिस्से को 1998 में लांच किया गया था. अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ठहराव केंद्र के रूप में काम करनेवाला यह स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की कक्षा में 250 मील ऊंचाई पर घूमता है. नासा के अनुसार, विभिन्न देशों के सहयोग से बने इस स्पेस स्टेशन में साइंस लैब, छह अंतरिक्ष यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था, दो बाथरूम, एक जिम जैसी सुविधाएं हैं.
चंद्रमा पर संसाधनों के लिए दुनिया की होड़
भारत का चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की स्थलाकृति, खनिज, तात्विक स्थिति की जानकारी, चंद्रमा की बाह्य संरचना व हाइड्रोजेल और जल-बर्फ की स्थिति का आकलन करना है. चंद्रमा पर स्थित संसाधनों पर चीन, रूस और अमेरिका के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों की भी नजर है. रूसी स्पेस एजेंसी साल 2040 तक चंद्रमा पर कॉलोनी बनाने, तो अमेरिकी एजेंसियां टूरिज्म मिशन की भी तैयारी कर चुकी हैं. हाल ही में अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने ‘स्पेस रेस’ की बात की है.
चीन चंद्रमा के टाइटेनियम, यूरेनियम, लोहे और खनिजों पर नजर गड़ाये हुए है. दुनिया को दिखायी देनेवाले चंद्रमा के हिस्से पर चीन अपना अंतरिक्ष यान चांग ई-5 को इस वर्ष आखिर तक भेेजेगा. इसके अलावा चीन भू-समकालिक कक्षा में सोलर पावर स्टेशन के निर्माण और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर शोध केंद्र स्थापित करने जैसी तैयारियां कर चुका है.

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