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मोदी सरकार के राज्य मंत्री प्रताप सारंगी से खास बातचीत: खुद को कभी नहीं माना गरीब

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ओडिशा के बालासोर से पहली बार सांसद और राज्य मंत्री बने प्रताप सारंगी की चर्चा सबसे अधिक है. सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद सबसे अधिक तालियां सारंगी के लिए ही बजी थी. इसका सबसे बड़ा कारण उनकी सादगी भरी जीवनशैली है. सारंगी […]

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ओडिशा के बालासोर से पहली बार सांसद और राज्य मंत्री बने प्रताप सारंगी की चर्चा सबसे अधिक है. सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद सबसे अधिक तालियां सारंगी के लिए ही बजी थी. इसका सबसे बड़ा कारण उनकी सादगी भरी जीवनशैली है. सारंगी ने ऑटो से प्रचार किया और करोड़पति प्रत्याशियों को पराजित कर दिया. चुनावी हलफनामे के अनुसार उनके पास कुल संपत्ति सिर्फ 10 लाख रूपये ही है. उन्हें ओडिशा का मोदी भी कहा जाता है. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम तथा पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय में राज्य मंत्री का दायित्व संभालने वाले सारंगी से सत्ता, समाजसेवा, चुनावी खर्च, आदिवासियों के मुद्दे,सरकार की प्राथमिकताएं आदि पर प्रभात खबर के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख अंजनी कुमार सिंह से हुई बातचीत के मुख्य अंश :

-समाज सेवा से राजनीति में आये हैं. अब लोगों की अपेक्षा भी आपसे काफी बढ़ गयी है. जनता की उन अपेक्षा को आप कैसे साकार करेंगे?आज मैँ जो भी हूं वह समाज के अनुदान के कारण ही हूं. समाज के बिना हमारी जिंदगी दूर हो जाती है. समाज की कृपा से ही जीवन को गति और प्रगति हासिल हुई है. समाज का कर्ज उतराना मेरा कर्तव्य है और यह सभी का नैतिक दायित्व भी है. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि समाज के ऋण को उतारा नहीं जा सकता है, लेकिन विनम्र और कृतज्ञ भाव से जो भी बन पड़े वह करने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए. जहां तक बात राजनीति और समाज सेवा में विरोधाभास की है तो मेरा मानना है कि राजनीति अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है. यह एक साधन है. समाज की सेवा के लिए राजनीति एक मार्ग है और इसका सदुपयोग करना सभी का धर्म होना चाहिए.

-अब सत्ता भी आपके हाथ में है. दोनों में तालमेल कैसे बिठा पायेंगे?

सत्ता और सादगी में कोई विरोधाभास नहीं है. कई राजाओं ने कई शासकों ने इसे अच्छी तरह से निभाया है. क्योंकि प्रजा का कल्याण ही शासक का धर्म होता है. शासक को अपनी जनता के हिसाब से भी चलना चाहिए. हां कुछ मूलभूत सुविधा के लिए सत्ता में बैठे लोगों को कुछ अधिक मिलता है, लेकिन मेरा मानना है कि भगवान की यही इच्छा है कि मुनुष्य सरल बने. शासक या नेता जो भी हो, वह पहले मनुष्य है, आदमी है. आदमी को तो आदमी की तरह ही व्यवहार करना चाहिए. सादगी से जीवन जीने में कोई कठिनाई नहीं है. यह सहज प्रवृति है.

-आज जब इतने करोड़पति सांसद और नेता संसद में आ रहे हैं, उनकी तुलना में आप सबसे गरीब मंत्री हैं, यह सुनकर आप कैसा अनुभव करते हैं?

सबसे पहले मैं इस शब्द को स्वीकार नहीं करता हूं कि मैँ गरीब मंत्री हूं. यह शब्द मुझे दुख देता है. क्योंकि मैं खुद को गरीब मानता ही नहीं हूं. लाखो कार्यकर्ताओं ने मुझे जीत दिलाकर सम्मान दिया है. मेरा मानना है कि केवल पेपर नोट संपत्ति नहीं हो सकता है. इसलिए मेरी जो संपत्ति है वह इस पेपर नोट वाले संपत्ति से बहुत ही मूल्यवान और अनमोल है. जिस तरह से चुनावी खर्च बढ़ गये है, उसमें चुनाव लड़ना हर किसी के वश की बात नहीं है.आप राजनीति में किस तरह के बदलाव को जरूरी समझते हैं, जिससे आप जैसे और अधिक लोग राजनीति में आ पायें. मैं अपने आप को किसी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहता हूं. मैं यह भी नहीं चाहता कि सभी लोग मेरा अनुसरण करें, लेकिन मेरा यह मानता हूं कि लोकतंत्र को अगर बचाना है तो चुनावी खर्चा को सीमित करना पड़ेगा. हमको सोच-विचार कर इस दिशा में आगे बढ़ना पड़ेगा.

-आप आदिवासी लोगों के कल्याण के काम से जुड़े रहे हैं. उनलोगों की मूलभूत समस्या क्या है तथा उसका निदान कैसे किया जा सकता है?
आदिवासी लोगों की मूलभूत समस्या अशिक्षा है. शिक्षा को प्राथमिकता देकर दो हजार बनवासी बालको को शिक्षा देने का काम किया. देश के विभिन्न स्थानों पर यह काम किया. इसके कारण उनके समाज में कुछ परिवर्तन आया है, लेकिन यह परिवर्ततन बहुत ही कम है. शिक्षा से आर्थिक संपन्नता भी उनमें आयेगी. दूसरी समस्या आदिवासियों के बीच अज्ञानता है. आदिवासी लोग मदिरा का उपयोग करते हैं, जिससे उनका बहुत ही नुकसान होता है. अकाल मृत्यु और दरिद्रता तक आती है. इस दिशा हमने काम किया है. लेकिन अबतक बहुत अच्छा परिणाम नहीं मिला है. कुछ पॉकेट में अच्छा परिणाम देखने को मिला है. मेरा मानना है कि शिक्षा विस्तार के साथ ही दो कलंक- मदिरा और कुसंस्कार हट जाये, तो इससे आदिवासियों को बहुत लाभ मिलेगा. कुसंस्कार इस रूप में कि यदि किसी की मृत्यु हो जाती है या कोई बीमार पड़ जाता है, तो कई बार लोग जादू-टोना-तंत्र के आधार पर दूसरों की हत्या तक कर देते हैं. इसलिए इनके बीच जितना शिक्षा का विस्तार होगा उतनी ही अशिक्षा और कुसंस्कार दूर होंगे. यह भी सच्चाई है कि यह समाज बहुत ही प्रभावी है और इस समाज में कोई भिखारी नहीं है. राजा की भांति यह अपने बाहुबल पर अपना जीवन चलाते हैं. सिर्फ शिक्षा का विस्तार और कुसंस्कार दूर हो जाये, तो यह समाज काफी आगे बढ जायेगा.

-झारखंड में भी आदिवासियों के हित के लिए कुछ करने की योजना है?

झारखंड ही नहीं पूरे हिंदुस्तान में अशिक्षा को दूर करने की कोशिश होनी चाहिए. बिहार और झारखंड के कुछ सामाजिक संगठन आकर मिले हैं. लोगों का भी सपना है. उन सारे सपनों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विराट सपने को मिलाकर पूरे देश के लिए सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास यही मेरा ध्येय है.

-आपको ओडिशा का मोदी कहा जाता है, आप इसे किस रूप में लेते हैं?

इसमें मेरा कोई योगदान नहीं है. यह सब मीडिया की उपज है. यह सुनकर मैं आनंदित नहीं होता हूं. मैं खुद को ओडिशा का मोदी नहीं मानता हूं. यह तुलना भी सर्वथा अनुचित है. क्योंकि कहां मादी और कहां प्रताप सारंगी? देश को मोदी जी बहुत ऊंचाई पर ले गये हैं, उन्होंने हिंदुस्तान में एक चमत्कार कर दिखाया है और मैं एक सामान्य सा आदमी हूं. इसलिए उनसे हमारी तुलना नहीं होनी चाहिए. यह तुलना मेरे लिए दुखदायी होता है.

-आपके मंत्रालय की क्या प्राथमिकता होगी?
एमएसएमई का अध्ययन कर रहा हूं. मेरा मानना है कि इससे भारत की बेरोजगारी को बहुत हद तक दूर किया जा सकता है. आंत्रप्रन्योरशिप को प्रमोट करना है. बैंक को सुलभ बनाना है. छोटे-छोटे इंडस्ट्री को प्रमोट करना है. यानि चीजों को वैल्यू एडीशन कर बेचने से उसका लाभ् उनलोगों को मिल पायेगा जिसके वह हकदार है. चीजों को प्रोसेसिंग करने के बाद उसका दाम दर्जनोँ गुणा बढ जाता है. इसी तरह से मछली पालन, पशुपालन आदि से भी लोगों को रोजगार दिया जात सकता है. इंटीग्रेटेड प्लान बनाकर लोगों की आमदनी को बढाने का प्रयास किया जायेगा.

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