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थप्पड़ खाकर ”I Like It” बोलने वाले सानंद वर्मा का इंटरव्यू यहां पढ़ें

यदि किसी से यह पूछा जाये कि, क्या आप सानंद वर्मा को जानते हैं? तो शायद ही कोई हामी भरे, लेकिन जब आप यह पूछेंगे कि‘भाभी जी घर पर हैं’ के सक्सेना जी को जानते हैं? तो निश्चित ही लोगों के चेहरे पर हंसी आ जाती है. आपको बता दें कि सानंद यानि अनोखे लाल […]

यदि किसी से यह पूछा जाये कि, क्या आप सानंद वर्मा को जानते हैं? तो शायद ही कोई हामी भरे, लेकिन जब आप यह पूछेंगे कि‘भाभी जी घर पर हैं’ के सक्सेना जी को जानते हैं? तो निश्चित ही लोगों के चेहरे पर हंसी आ जाती है. आपको बता दें कि सानंद यानि अनोखे लाल सक्सेना पटना के निवासी हैं. पेश है सुजीत कुमार और उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

-बहुत कम लोगों को यह पता है कि आप बिहार से हैं. इस बारे में कुछ बतायें.

मेरे पिता राजनारायण वर्मा साहित्यकार थे. ऐसे साहित्यकार जिनके पास केवल लेखनी थी, पैसे नहीं थे. मुफलिसी का दौर था. तब हमलोग राजेंद्र नगर में ही रहते थे. मेरा जन्म भी राजेंद्र नगर में ही हुआ. वैसे मेरा मूल निवास मोतिहारी जिला के रामनगर में है. चूंकि पिताजी के पास पैसा नहीं थे तो वह भटकते रहते थे. गरीबी बहुत थी. इसी क्रम में वह पैसे कमाने के उद्देश्य से दिल्ली चले गये. पिताजी का स्वभाव शायद मेरे अंदर भी है. मैं भी दिल्ली से भटकते हुए मुंबई आ गया.

-सक्सेना जी का किरदार जीवन में क्या बदलाव लाया?

सक्सेना जी के किरदार ने यह अहसास दिलाया कि लोकप्रिय होना कैसा होता है. इसका स्वाद कैसा होता है. जिस चरित्र को अनोखे लाल को जिया. उसको जीते समय पॉजिटिव किरदार रहा. यह किरदार मुसीबत में हंसते रहता है. मार खा के हंसते रहता है. आई लाइक इट कहने वाला यह ऐसा किरदार है, जो पूरी दुनिया में खोजे नहीं मिलेगा. इस किरदार ने ही मुझे अलग पहचान दिया.

-आपने कुछ नाटक भी किये थे. उसके बारे में भी बतायें.

11 माह का था तो पिताजी दिल्ली चले गये, जब सात या आठ साल का था तो पिताजी वापस दिल्ली से पटना आ गये और वहां से मोतिहारी चले गये और वहां से सांसद का चुनाव भी लड़े. निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में. जीवन गुजारना था तो कुछ टेंडर भी हासिल किये. फिर खेती भी करने लगे. मैं छोटा था तो हाथ भी बंटाता था. वहां से पिताजी फिर पटना आ गये. हमारा छोटा सा पब्लिकेशन हाउस था. पिताजी ने उसे फिर शुरू किया. आदमी भी नहीं थे तो उनके साथ इस काम में भी मैंने हाथ बटाना शुरू किया. इसी क्रम में मेरा झुकाव नाटक की तरफ हुआ. कालिदास रंगालय में मैंने दो नाटक भी किया है. एक स्ट्रीट प्ले किया फिर औरत नाटक में काम किया. बारहवीं तक पटना ही रहा. फिर दिल्ली आ गया. वहां से पत्राचार में बीए पूरा किया. लिखने का शौक था तो शुरू में नंदन में लिखा करता था. कुछ पैसे मिल जाते थे. तीन उपन्यास लिखा, उसे फाड़ कर फेंक दिया. जीविका के लिए कुछ करना था तो पत्रकारिता में भी ट्राई किया. कई बड़े अखबारों में काम किया.

-मुंबई में कितना स्ट्रगल करना पड़ा?

1993 में मैं मुंबई आ गया था. वहां बहुत स्ट्रगल करना पड़ा. हालांकि मन में अच्छी भावनाएं भी थी. मेरी सोच है कि मन में जो भावनाएं हैं उसी को सामने लाना चाहिए. मैं हर वक्त पॉजिटिव सोच रखता था. जाे भगवान ने किया वह अच्छा किया. मुंबई में इलेक्ट्रॉनिक चैनल से जुड़ा फिर ब्रॉडकॉस्ट की दुनिया में चला गया. वहां पैसा कमाया तो घर ले लिया. फिर वक्त घूम गया तो घर का लोन चुकाने के लिए टेंसन हो गया. गाड़ी को बेचना पड़ा. लोकल ट्रेन में सफर करना पड़ता था तो पैसे भी लगते थे. तभी पैदल चलने का संकल्प लिया. एक दिन में दस से बारह घंटे तक पैदल चला करता था.

-पहला ब्रेक किस तरह से मिला? इस बारे में बतायें.

अभी एक फिल्म आने वाली है बधाई हो, उसके निर्देशक हैं अमित शर्मा. मैंने उनके साथ पहले कई एड फिल्मों में काम किया था. उन्होंने ही मुझे एड के लिए ब्रेक दिया. करीब 250 एड फिल्म किया. एफआईआर में कार्य किया. वेब सीरीज में काम किया लेकिन चेहरा नहीं दिखाता था वह इसलिए कि चेहरा देख के शायद कोई काम देने से मना न कर दे. एफआईआर के शशांक बाली ने ही मुझे सक्सेना जी के किरदार के लिए चुना. वह कुछ अलग लगा, मैंने हां किया. रोल सक्सेस हो गया. आई लाइक इट नेशनल क्रेज बन गया. एक इंसान के लिए बड़ी बात है कि वह करोड़ों लोगों तक पहुंच रहा है. अभी मेरी फिल्म पटाखा आयी है. फिर नितेश तिवारी की छिछोरे व नितिन कक्कड़ की रामसिंह चार्ली आने वाली है. अल्ट बालाजी पर वेब सीरीज भी आने वाली है.

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