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जब कवि को पाने के लिए पाटलिपुत्र में हुई थी जंग

रविशंकर उपाध्यायपटना : बिहार की शानदार और अद्भुत परंपराओं के बारे में आप जितना जानते जाएंगे उतनी ही आपकी उत्कंठा बढ़ती जायेगी. कभी यहां की संगीत परंपरा इतनी समृद्ध थी कि यहां के गीतकार, संगीतकार और नाटककारों की प्रसिद्धि विश्व स्तर पर थी और उनको पाने के लिए इसी पाटलिपुत्र में युद्ध तक लड़ा गया […]

रविशंकर उपाध्याय
पटना :
बिहार की शानदार और अद्भुत परंपराओं के बारे में आप जितना जानते जाएंगे उतनी ही आपकी उत्कंठा बढ़ती जायेगी. कभी यहां की संगीत परंपरा इतनी समृद्ध थी कि यहां के गीतकार, संगीतकार और नाटककारों की प्रसिद्धि विश्व स्तर पर थी और उनको पाने के लिए इसी पाटलिपुत्र में युद्ध तक लड़ा गया था. मगध में ऐसी विभूतियां थी जिनके लिए यह प्रयास भी किया गया था. बिहार के प्रसिद्ध संगीत मर्मज्ञ स्व. गजेंद्र नारायण सिंह के मुताबिक विश्व के इतिहास में ऐसा दूसरा उदाहरण विरले ही मिलता है, जिसमें किसी शासक ने किसी कवि को पाने के लिए युद्ध लड़ा हो.

उन्होंने अपनी पुस्तक बिहार की संगीत परंपरा में लिखा है कि लगातार कई साम्राज्य की राजधानी रहने के कारण पाटलिपुत्र सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना गया था. इस काल में संगीत नृत्य की गतिविधियों का केंद्र बन चुके इस शहर में इसे राजाश्रय भी प्राप्त था. कुषाण सम्राट कनिष्क(120 ई.) काव्य एवं संगीत में रस लेता था. कनिष्क के समकालीन प्रसिद्ध कवि एवं नाटककार अश्वघोष यहीं मगध में निवास करते थे, जिन्हें संगीतकला में भी कुशलता प्राप्त थी. संगीत, संस्कृत नाटकों का अभिन्न अंग हुआ करता था. सुजुकी ने अपनी पुस्तक द अवेकनिंग ऑफ फेथ इन बुद्धिज्म में अश्वघोष को एक संगीतज्ञ भिक्षु माना है. उसने लिखा है कि संगीत के स्वर को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए अश्वघोष ने रास्तवर नामक वाद्ययंत्र का आविष्कार किया था. वह बौद्ध धर्म का प्रसार अपने संगीत कला से करते थे.

अयोध्या के थे अश्वघोष पाटलिपुत्र में करते थे निवास
अश्वघोष का जन्म तो अयोध्या में हुआ था, लेकिन वह पाटलिपुत्र में निवास करते थे. मगध आने की उनकी कहानी भी दिलचस्प है. पटना के इतिहास पर गहन अध्ययन करने वाले अध्येता अरुण सिंह कहते हैं कि पहली शताब्दी में मगध में पार्श्व नामक बौद्ध विद्वान रहते थे. उनसे शास्त्रार्थ करने के लिए जब शैव संप्रदाय के अश्वघोष पहुंचे तो पार्श्व ने उन्हें अपने सवालों से मुरीद बना लिया. उन्होंने संगीत के बारे में नहीं पूछा बल्कि यह सवाल किया कि बताइए कैसे राज्य में शांति आयेगी? इसके बाद अश्वघोष उनके शिष्य बन गये और बाद में बाैद्ध विद्वान बन गये. उन्होंने ही बाद में बुद्ध चरित्र की भी रचना की थी. हालांकि अरुण सिंह का अध्ययन यह कहता है कि कनिष्क ने अश्वघोष को पाने के लिए युद्ध नहीं किया बल्कि यहां के शासक शुंग वंश के देवभूति ने स्वयं ही समर्पण कर दिया. कनिष्क को प्रस्ताव दिया गया कि आप करुणा का प्रतीक एक पक्षी, बुद्ध का भिक्षा पात्र, एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा या अश्वघोष में से क्या लेंगे? तब कनिष्क अपने साथ अश्वघोष को कुषाण वंश की राजधानी पुरुषपुर यानी वर्तमान पेशावर लेता गया था. वहां वे कनिष्क के राजगुरु एवं राजकवि बने.

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