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चित्रकूट में रोमांचक मंदाकिनी की धार

चित्रकूट के बारे में मैंने काफी कुछ सुन रखा था. लोगों का कहना है कि यहां की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है. यहां की पहाड़ी शृंखला आध्यात्मिक आनंद का पर्याय कही जाती है. जो राम-भरत मिलाप की गवाह है, तो तुलसी के रामचरित मानस की अनुगूंज भी है. चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे […]

चित्रकूट के बारे में मैंने काफी कुछ सुन रखा था. लोगों का कहना है कि यहां की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है. यहां की पहाड़ी शृंखला आध्यात्मिक आनंद का पर्याय कही जाती है. जो राम-भरत मिलाप की गवाह है, तो तुलसी के रामचरित मानस की अनुगूंज भी है. चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है. सदियों से हिंदुओं की आस्था का केंद्र चित्रकूट वही स्थान है जहां कभी भगवान श्रीराम ने मां सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताये थे.

कुंदन कुमार सिंह , इतिहासकार

आखिरकार मैंने भी अपने परिवार के साथ चित्रकूट जाने का फैसला कर लिया. प्रयागराज से हमारी चित्रकूट की यात्रा बस से शुरू हुई. वैसे, चित्रकूट तक पहुंचने के लिए रेल मार्ग भी उपलब्ध है. यहां चित्रकूट नाम से रेलवे स्टेशन भी है. अगर आपके पास भी 4-5 दिन हैं तो आपके लिए चित्रकूट एक अच्छी लोकेशन हो सकती है, जहां आप स्वयं को स्फूर्ति और ताजगी से भर सकते हैं. मध्यप्रदेश के सतना जिले में आने वाली यह पहाड़ी श्रृंखला आध्यात्मिक आनंद का पर्याय कही जा सकती है. हमलोगों की चित्रकूट की आनंद यात्रा एक रूप में रोमांचक रही.

घाट की खूबसूरती का उठाया लुत्फ
हमलोग अपने पूरे परिवार के साथ यात्री बस से ऊबड़-खाबड़ रोड से होकर चित्रकूट के पहाड़ों की तरफ चल पड़े. चित्रकूट में हमने सबसे पहले रामघाट से अपनी यात्रा शुरू की. यहां मंदाकिनी में हमने स्नान किया. यहां सजे हुए नाव बहुत ही सुंदर नजर आ रहे थे. हमने नाव में बैठकर घाट की खूबसूरती का भी लुत्फ उठाया. रामघाट पर ही गोस्वामी तुलसीदास की एक बड़ी सी प्रतिमा भी बनी हुई है. कहा जाता है कि यहीं तुलसीदास ने भगवान श्रीराम को तिलक लगाया था. यहीं लिखा भी है, ‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़. तुलसीदास प्रभु चंदन करै, तिलक करै रघुवीर’. यहां हमने फैमिली के साथ फोटो भी खिंचवाई. यहां बंदरों की भरमार थी. पर ये किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते.

माता सीता के पैरों के निशान
कहा जाता है कि भगवान राम का भरत से वन में इसी जगह मिले थे, जब श्रीराम ने अयोध्या लौटने से इनकार कर दिया था. यहां से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर जानकी कुंड भी स्थित है. जानकी माता सीता का ही नाम है. रामायण में इसके बारे में उल्लेख है कि इसी कुंड में माता सीता स्नान करती थीं. इसके बाद हमने स्फटिक शिला का भी दर्शन किया, जो जानकी कुंड के पास ही है. इस शीला पर माता सीता के पैरों के निशान भी मौजूद हैं. ऐसा माना जाता है कि जयंत ने कौवे का रूप धारण करके माता सीता के पैरों पर यहीं चोंच मारी थी. यहां से चित्रकूट की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है. यहां से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एकांत आश्रम में भी हम पहुंचे. जहां अत्रि मुनी, अनुसुइया, दत्तात्रेयय और दुर्वासा मुनि की मूर्तियां देखने को मिली.

गुप्त गोदावरी के भी दर्शन
यदि आप चित्रकूट जा रहे हैं तो आपको गुप्त गोदावरी जरूर जाना चाहिए. शहर से इसकी दूरी करीब 18 किलोमीटर है. हम जब यहां पहुंचे तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था, क्योंकि यहां पहाड़ों के अंदर पानी में चलते हुए बेहद संकीर्ण रास्तों से अंदर पहुंचने का रोमांच अलग ही था. गुफा के अंत में एक छोटा सा तालाब है. इसे गुप्त गोदावरी कहते हैं. यहां की सुंदरता मन मोह लेती है. मेरे परिवार के कुछ लोग यहां पानी में चलने से डर रहे थे, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हो गया कि इसमें कोई खतरा नहीं है.

बंदरों की है भरमार
यहां विध्यं की पहाड़ी के शिखर पर हनुमान धारा स्थित है. हम सीढ़ियां चढ़कर यहां तक पहुंचे. यहां हनुमान की विशाल मूर्ति है. सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त बंदरों से हमारा सामना हुआ. एक बंदर ने तो मेरे पॉकेट में हाथ डाल कर मेरे पॉकेट में रखी छोटी सी दूरबीन निकाल ली. जब उसे कुछ समझ न आया तो उसने उसे जमीन पर पटक दिया. हालांकि दूरबीन में कोई खराबी नहीं आयी. हनुमान धारा पर्वत पर ही सीता रसोई है. जिसकी ऊंचाई से चित्रकूट का मनमोहक दृश्य देख कर मन खुश हो जाता है. हनुमान धारा पर्वत पर बह रही धारा के बारे में यह धारणा है कि हनुमान जी जब लंका दहन से लौटे थे तो भगवान श्रीराम ने उन्हें आराम पहुंचाने के लिए यह धारा बहा दी थी.

पर्वत का है धार्मिक महत्व
चित्रकूट में हमें पता चला कि यहां आने पर कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने से मन की मुराद पूरी होती है. इसका बड़ा ही धार्मिक महत्व है. हमने भी इसकी परक्रिमा पूरी की. घने जंगलों में स्थित इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है. चत्रिकूट में भरतकूप स्थित है. इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए भरत ने देश की सभी नदियों का जल इकट्ठा कर लिया था. जिस कुएं में उन्होंने जल को इकट्ठा किया था, उसे ही भरतकूप के नाम से जाना जाता है. यह एक छोटी सी जगह है, लेकिन यहां भी श्रद्धालु जरूर पहुंचते हैं.

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