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दुनिया के प्राचीन स्थलों में से एक है कंबोडिया का अंकोरवाट

मनीषा त्रिपाठी , टीचर सह ट्रैवलर आ ये ठहरे और रवाना हो गये, जिंदगी क्या है, सफर की ही तो बात है…सफर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बिखरी जिंदगी को समझने का जरिया है. जब लोग यात्रा करते हैं तो उनके दिमाग में आराम की प्राथमिकता सबसे कम होती है. मूल रूप से अपनी सीमाओं […]

मनीषा त्रिपाठी , टीचर सह ट्रैवलर

आ ये ठहरे और रवाना हो गये, जिंदगी क्या है, सफर की ही तो बात है…सफर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बिखरी जिंदगी को समझने का जरिया है. जब लोग यात्रा करते हैं तो उनके दिमाग में आराम की प्राथमिकता सबसे कम होती है. मूल रूप से अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए वे तत्पर होते हैं क्योंकि दुनिया को अपनी आंखों से देखना अप्रतिम अनुभव है. जीवन के अनुभवों का आदान-प्रदान हो तो हमें विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ने का मौका मिलता है. यात्रा वास्तव में हमारे जीवन के दृष्टिकोण को बदल देती है. वह हमें जीवन की वास्तविकताओं से भी रूबरू कराती है. इसलिए ज्यादातर व्यक्तियों को यात्रा करना अच्छा लगता है. यात्राओं के स्मरण से हम उत्साहित हो आते हैं. यात्रा का स्मरण लिखना तो और भी अधिक राेमांचित करने वाला होता है.

‘कंपूचिया’ के नाम से जाना जाता था कंबोडिया
सैर कर दुनिया की गालिब, जिंदगानी फिर कहां, जिंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहां… इसी उत्साह से हम सभी चल पड़े ‘कंबोडिया’. कंबोडिया जिसे पहले ‘कंपूचिया’ के नाम से जाना जाता था. दक्षिण पूर्व एशिया का एक प्रमुख देश, जिसकी राजधानी ‘नोमपेन्ह’ है. कंबोडिया एक ऐसा नाम है जहां शैलानियों का हुजूम आता जाता है. इस देश में पर्यटन का चहुंओर बोलबाला रहता है. सरकार भी मुख्य रूप से पर्यटन को बढ़ावा देती है. रेलवे स्टेशन से एयरपोर्ट तक अंकोर वाट मंदिर का चित्रण खूबसूरती से किया गया है. वियतनाम से निकोन नदी के सहारे मेकांग नदी से वोट के माध्यम से कंबोडिया की राजधानी नामपेंह पहुंचे. वहां पहुंच कर भारतीय रेस्तरां ढूंढ़ने में काफी समय गंवाना पड़ा. यहां के लोग समुद्री भोजन (सी-फूड) पर ज्यादा निर्भर रहते हैं. खैर काफी ढूंढने के बाद हमें भारतीय रेस्त्रां मिल ही गया.

प्रसिद्ध है अंकोरवाट मंदिर
फिर यहां से करीब 300 किलोमीटर दूर विश्व की सबसे बड़ी धरोहर विष्णु भगवान की प्रतिमा जो आज विश्व में अंकोरवाट नाम से विख्यात है, वहां जाने का मन बना. इसी क्रम में मैंने देखा कि शहर के मध्य में जवाहर लाल नेहरू मार्ग है. यह देखबर बड़ी प्रसन्नता हुई कि सात समुंदर पार भी हमारे देश के प्रतिष्ठित नेताओं के नाम पर भी मुख्य सड़कें हैं. भोजन करने के बाद कालीन रोड के माध्यम से अंकुर वाट की यात्रा शुरू की वहां पर मेरे परिचित दवा के कारोबारी हैं. जहां उन्होंने रुकने का प्रबंध करा दिया था. रात में करीब 3:00 बजे हमलोग वहां पहुंचे जहां होटल में जाकर आराम किया.

यहां भी हैं हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़ी मूर्तियां
अगले दिन सुबह हमलोगों ने अगली यात्रा शुरू की. टुकटुक भाड़े पर लेकर टिकट के लिए निर्धारित जगह पर पहुंचे. यहां सरकारी टिकट का मूल्य है $37 यानी 2,600 रुपये के आसपास. इतिहास पर नजर डाली जाये तो करीब 27 शासको ने कंबोज देश पर राज किया. जिनमें से कुछ हिन्दू थे तो कुछ बौद्ध थे. शायद यही वजह है कि कंबोडिया में हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़ी मूर्तियां मिलती हैं. 15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक थेरवाद के बौद्ध साधुओं ने अंगकोर वाट मंदिर की देखभाल की, जिसके परिणामस्वरूप कई आक्रमण होने के बावजूद इस मंदिर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा. बौद्ध रूप ग्रहण करने के बाद काफी वर्षों के बाद तक इस मंदिर की पहचान लगभग खोयी सी रही फिर 19वीं शताब्दी के मध्य में एक फ्रांसिसी अवशेष और प्राकृतिक वैज्ञानिक हेनरी मोहन की नजर उस पर पड़ी और फिर से उसने एक बार इस बेशकीमती और आलिशान मंदिर को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया. बौद्ध लोग इस मंदिर को दिनिया के साथ अजूबो में से एक करार देते हैं. नगर के बीचों बीच एक विशाल मंदिर है जिसके तीन भाग हैं प्रत्येक भाग में एक ऊंचा शिखर है. मध्य शिखर की ऊंचाई लगभग 150 फुट है. इन ऊंचे शिखरों के चारो और अनेक शिखर बने हुए हैं जो संख्या में लगभग 50 हैं. इन शिखरों के चारों ओर शिव प्रतिमा स्थापित हैं. इसकी दीवारें रामायण और महाभारत जैसे विस्तृत और पवित्र धर्मग्रंथों से जुड़ी कहानियां कहती हैं.

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