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Friday, March 29, 2024

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श्रद्धांजलि : आंखों से दुनिया देखते रहेंगे दूधनाथ सिंह

!!प्रवीण तिवारी!! मैं मरने के बाद भी याद करूंगातुम्हें तो लो, अभी मरता हूंझरता हूं जीवन की डाल से……. -दूधनाथ सिंह …और अब हमारे बीच प्रसिद्ध साहित्यकार दूधनाथ सिंह नहीं रहे. अपने लिखे प्रचुर साहित्य के साथ-साथ अपनी आंखें भी दान दे गये. जिन आंखों से वे दुनिया देखते रहेंगे. गुरुवार की देर रात उन्होंने […]

!!प्रवीण तिवारी!!

मैं मरने के बाद भी
याद करूंगा
तुम्हें
तो लो, अभी मरता हूं
झरता हूं
जीवन की
डाल से…….

-दूधनाथ सिंह

…और अब हमारे बीच प्रसिद्ध साहित्यकार दूधनाथ सिंह नहीं रहे. अपने लिखे प्रचुर साहित्य के साथ-साथ अपनी आंखें भी दान दे गये. जिन आंखों से वे दुनिया देखते रहेंगे. गुरुवार की देर रात उन्होंने अंतिम सांस ली. वे प्रोस्टेट कैंसर के शिकार थे. दो साल पहले उनकी पत्नी निर्मला ठाकुर का भी निधन हो चुका था. अपने पीछे वे भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं. उनकी कहानियों ने साठोत्तरी भारत के पारिवारिक, आर्थिक, नैतिक व मानसिक सभी क्षेत्रें में उत्पन्न विसंगतियों को चुनौती दी थी. उनके चेहरे पर सदैव मुस्कुराहट कायम रही. वे सबसे खुलकर मुस्कराकर ही मिलते थे.

विलक्षण प्रतिभा के धनी थे दूधनाथ सिंह

एक और बात कि हिंदी में एक साथ इतना अलग-अलग विधाओं में लिखने वाला लेखक कम ही मिलता है. वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. दूधनाथ सिंह ने एक साथ कहानी से लेकर कविता, संस्मरण, आलोचना, संपादन, आलेख आदि लिखा और उन्होंने इन सभी विधाओं के लेखन के साथ न्याय भी किया, जब उनके संस्मरण ‘लौट आओ धार’ को पढ़ेगें, जो एक जबरदस्त गद्य लेखन है. तो उस दोबारा से पढ़ने की इच्छा होगी.

इसे भी पढ़ें : मशहूर साहित्यकार दूधनाथ सिंह का निधन, प्रोस्टेट कैंसर से थे पीड़ित

फिर उनकी कहानियां ‘रक्तपात’, ‘धर्मक्षेत्रे-कुरूक्षेत्रे’, ‘तूफू’ और ‘जनमुर्गियों का शिकार’ पठनीयता के दृष्टिकोण से बेहद लोक प्रिय हुई. उनकी लिखी एक कहानी ‘का करूं साबजी’ को पढ़ते हुए महसूस होगा कि हम इस युग को जी रहे है. इसमें बेरोजगारी के समय के हालातों को बेहद खूबसूरती से लिखा गया है, जो हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है.

नयी कहानी आंदोलन को दी चुनौती

दरअसल, दूधनाथ सिंह ने नयी कहानी आंदोलन को चुनौती दी और साठोत्तरी कहानी आंदोलन का सूत्रपात किया. अपनी कहानी रक्तपात में लिखते है-‘‘बहुत खराब लगता है. और नहीं तो क्या? वहां तप करते रहे. मर्द तो कुत्ते होते ही है. इधर पतल चाटी, उधर चीभ चटखारी, उधर हांड़िया में मुंह में डाला……….सभी लाज-लिहाज तो बस, हमारे लिए ही है.’ अपने लेखन के साथ-साथ उन्होंने लेखकों की एक समृद्ध पीढ़ी भी तैयार की और संस्थागत रूप से साहित्य रचना को प्रश्रय दिया.

महादेवी और निराला के प्रिय थे दूधनाथ

दूधनाथ सिंह की गिनती हिंदी के चोटी के लेखकों-चिंतकों में होती है. वे महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के प्रिय थे. उन्होंने संपादन कार्य भी किया, जिसमें सुमित्रानंद पंत की कविताओं के साथ शमशेर और निराला की भक्ति कविताओं का संकलन शामिल है. ‘पक्षधर’ पत्रिका का एक अंक निकाला, जो आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा जप्त कर ली गयी. उनके बारे में वरिष्ठ कवि-कथाकार, कला समीक्षक वो पत्रकार प्रयाग शुक्ल ने दूरभाष पर कहा कि ‘मुझे अफसोस है दूधनाथ सिंह के जाने का. जब मैं कलकता में था, वह भी कलकता में थे. 1961–62 की बात है. तब से हम एक–दूसरे को जानते है. हम बराबर संपर्क में थे. सबसे बड़ी कि पिछले 10-15 वर्षों में उन्होनें अद्भूत काम किया है.

बड‍़े साहित्यकारों की कृति का किया संपादन

महादेवी वर्मा, शमशेर, निराला और केदारनाथ अग्रवाल पर संपादन किया. उन्हें याद करते हुए लिखा जो हमारे मूर्धन्य रहे हैं. एक लेखक का अपने लिखने के साथ अपने से बड़ों पर लिखना–उन्हें याद करना महत्वपूर्ण हो जाता है फिर ‘सन साठ के बाद कहानियों’ का संपादन उनके सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है. भिन्न–भिन्न विधाओं में काम किया. दूधनाथ सिंह अपने लेखन से हमारे साथ बने रहेंगे-बचे रहेंगे.

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