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टिक टॉक वीडियो बनाने के चक्कर में जा रही है जान

आजकल मोबाइल एप टिक टॉक के दीवाने युवा लगातार तेजी से हो रहे हैं. वे अपनी जान की परवाह किये बिना वीडियो बना रहे हैं और टिक टॉक पर पोस्ट कर रहे हैं. ऐसी ही घटनाओं पर केंद्रीत यह खास रिपोर्ट पढ़ें… केस 1: ट्रेन की चपेट में आने से गयी जान तेज रफ्तार से […]

आजकल मोबाइल एप टिक टॉक के दीवाने युवा लगातार तेजी से हो रहे हैं. वे अपनी जान की परवाह किये बिना वीडियो बना रहे हैं और टिक टॉक पर पोस्ट कर रहे हैं. ऐसी ही घटनाओं पर केंद्रीत यह खास रिपोर्ट पढ़ें…

केस 1: ट्रेन की चपेट में आने से गयी जान

तेज रफ्तार से आ रही ट्रेन का टिक टॉक वीडियो बनाने में पिछले दिनों हाजीपुर में 18 वर्षीय छात्र विवेक कुमार की जान चली गयी. इंटर में पढ़ने वाला विवेक रेल की पटरी पर वीडियो बनाने में मशगूल था. उसे यह पता ही नहीं चला कि ट्रेन उसके एकदम करीब आ गयी है और जब तक वह संभलता तब तक वह ट्रेन की चपेट में आ गया. मौके पर ही उसकी मौत हो गयी. विवेक रोजाना सुबह सोनपुर पुराना गंडक पुल रोड में दौड़ने जाता था. घटना के दिन भी वह अपने कुछ मित्रों के साथ दौड़ने गया था. इसी दौरान वह हाजीपुर से पटना जा रही पैसेंजर ट्रेन का टिक – टॉक वीडियो बनाने लगा और इसी दौरान ट्रेन से उसके सिर में चोट लगी और उसकी जान चली गयी.
केस 2: वीडियो बनाने के दौरान बाढ़ के पानी में डूबा
दरभंगा जिले में पिछले दिनों टिक टॉक के लिए वीडियो बनाना 22 साल के युवक अफजल की मौत का कारण बना. उसकी बाढ़ के पानी में डूबने से मौत हो गयी. यहां कुछ लड़के केवटी प्रखंड के लैला चौर में घूमने गये थे. वहां सभी पानी के बहाव के संग सेल्फी लेने और टिक – टॉक वीडियो बनाने लगे. इसी क्रम में 22 साल का कासिफ इफ्तखार पानी में गिर गया और बहने लगा, उसे बचाने के लिए उसका दोस्त अफजल रेहान भी पानी में कूदा. अफजल ने अपने दोस्त को तो बचा लिया, लेकिन खुद पानी की तेज धार में बहकर डूब गया.
केस 3 : मुजफ्फरपुर जिले में सात अगस्त को टिक टॉक के लिए वीडियो बनाना तीन दोस्तों की मौत का कारण बन गया. घटना जिले के अहियापुर थाना के संगमघाट की है. जहां 10वीं क्लास में पढ़ने वाले चार छात्र घर से स्कूल के लिए निकले लेकिन स्कूल नहीं गये. सभी बूढ़ी गंडक नदी में नहाने चले गये. यहां वह वीडियो बनाने लगेे, इस दौरान प्रिंस, पीयूष और आयुष्मान की मौत हो गयी. जिंदा बचने वाले चौथे छात्र आकाश ने बताया कि नहाने के क्रम में पीयूष नदी की तेज धारा में बहने लगा. उसे बचाने गया प्रिंस भी तेज धार की चपेट में आ गया. दोनों को बचाने के लिए मैं और आयुष्मान कूद गये. हमलोग भी तेज धार में बहने लगे. मैं किसी तरह पानी से बाहर निकल गया.
अपनी जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं युवा
ये तीनों केस बताते हैं कि 16 से 22 वर्ष की उम्र के युवा टिक टाॅक की खातिर किस तरह से अपनी जान को खतरे में डाल रहे हैं. जिस हिसाब से देश भर में युवा टिक टॉक पर वीडियो बनाने के चक्कर में मौत के मुंह में जा रहे हैं, ये हैरानी की बात है. जबकि इस तरह के खतरे उठाने वाले ये जान भी रहे होते हैं कि कहीं कुछ भी गड़बड़ हुई तो सीधा मौत के मुंह में चले जायेंगे, लेकिन फिर भी नहीं मान रहे. अपनी जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं. यहां दिये गये तीनों केस में अगर ये खुद को गैर जरूरी खतरे में नहीं डालते तो आज जिंदा होते.

ऐसी घटनाएं सभी माता – पिता के लिए भी एक वार्निंग है कि वह सचेत हो जाये और अपने बच्चों पर ध्यान रखे. विशेषज्ञों का मानना है कि माता – पिता या घर के बड़े ध्यान रखे कि बच्चा कहीं टिक टॉक, लाइकी, विगो जैसे एप पर वीडियो बनाने के लिए जान को तो खतरे में नहीं डाल रहा. जरूरत है अपने बच्चों को तकनीक का सही इस्तेमाल सिखाने की. अभिभावक ध्यान दें कि कहीं आपका बच्चा भी स्टंट करते हुए वीडियो बनाने का शौक तो नहीं पाल रहा. ऐसे स्टंट पर खुश होने के बजाय उन्हें समझाना चाहिए कि तुम्हारी जान बेशकीमती है ऐसे वीडियो के चक्कर में उसे खतरे में मत डालो.

इन बातों पर दें ध्यान
अभिभावक ध्यान दें कि बच्चा कहीं स्टंट वाले वीडियो तो नहीं बना रहा.
बच्चे को बताये कि स्टंट वाले वीडियो जानलेवा साबित हो सकते हैं
टिक टॉक हो या कोई भी दूसरा एप उसकी लत नहीं पाले
ऐसे एप समय की बर्बादी करते हैं जिससे आपकी पढ़ाई और करियर प्रभावित हो सकता है
इस तरह के एप में दिखने वाले ज्यादातर वीडियो असलियत से दूर होते हैं इसलिए इनकी नकल करने की कोशिश नहीं करें
सोशल मीडिया या स्मार्टफोन पर घंटों समय बिताने वाले कई तरह की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं इसलिए इनका सीमित इस्तेमाल ही करें.
16 से 22 की उम्र के लड़कों में स्टंट करते हुए वीडियो डालने का है क्रेज
टिक टॉक और इस जैसे दूसरे एप पर वीडियो बनाना इन दिनों बेहद कॉमन हो गया है. ये एप सबसे ज्यादा टीन एजर्स और यूथ में पॉपुलर हैं. स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुलभता ने इस तरह के एप को खूब लोकप्रिय किया है. लेकिन अब ऐसे एप्स टीन एजर्स के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं. हाल के दिनों में बिहार में कई ऐसे केस सामने आ चुके हैं जिसमें कम उम्र के लड़कों ने टिक टॉक पर वीडियो बनाने के चक्कर में अपनी जान गंवा दी है. पिछले सात अगस्त को ही मुजफ्फरपुर में तीन छात्रों की जान इसके कारण चली गयी है. 16 से 22 की उम्र के लड़कों में टिक टॉक जैसे एप पर स्टंट करते हुए वीडियो डालने का क्रेज इन दिनों दिख रहा है. इसके लिए वह कई बार अपनी जान को खतरे में डाल देते हैं. ये फेसबुक पर भी इसे शेयर करते हैं जिससे इन्हें लाइक मिलती है. सोशल मीडिया एप्स पर लोगों को प्रभावित करने के लिए इस उम्र के स्टूडेंट्स तरह – तरह की हरकतें करते हैं.
कई के तो ऐसे एप पर हजारों फॉलोअर्स हैं. फॉलोअर्स बढ़ाने के चक्कर में ये हमेशा कुछ अलग तरह का वीडियो बनाकर डालते रहते हैं ताकि इसे ज्यादा से ज्यादा पसंद किया जाये. ज्यादा व्यू और लाइक्स मिलने पर कुछ रुपये भी इन्हें मिलते हैं. इन सब से इनके अंदर स्टार वाली फिलिंग्स भी आने लगती है. इसके कारण ये खतरे उठाने से भी पीछे नहीं रहते. लेकिन सोशल मीडिया की ये लाइक और लोकप्रियता इन्हें गलत दिशा में भी भटका देती है.
बच्चे जब युवा अवस्था में प्रवेश करते हैं तो उनमें चीजों को लेकर काफी एक्साइटमेंट और एडवेंचर की चाह होती है. ऐसे में जरूरी है कि पैरेंट्स अपने बच्चों की निगरानी करें मनुष्य शुरू से प्लेजर सीकर रहा है और ऐसे में इसमें अगर एडवेंचर शामिल हो जाता है तो युवा ज्यादा समय बीताते हैं. पहले की ट्रेडिशनल सोसाइटी ऐसी चीजों पर रोक-टोक करती थी, लेकिन आज की मॉडर्न सोसाइटी बच्चों को लिबर्टी देना पसंद करती है. जरूरत है एप्स को लेकर स्ट्रांग साइबर पॉलिसी बनाने की. कम उम्र में सिंपल फोन देने की और बीच-बीच में उन्हें चेक करते रहने की.
आरएन शर्मा, समाजशास्त्री
टिक टॉक एप के लिए हर उम्र के लोग वीडियो बनाते हैं. ऐसे लोगों में सेल्फ आइडेंटीटी को लेकर एक ललक होती है. इसके लिए वे हर तरह के खतरे को मोल लेना चाहते हैं. किशोरावस्था के दौरान व्यक्तित्व का सही से विकास न होना अहम कारण है. अपनी खुद की अलग पहचान को बनाने के लिए बच्चे एप्स का सहारा लेते हैं. जरूरत है अभिभावकों को अपने बच्चों को समय देने की. अगर उनमें कोई भी बदलाव दिखता है तो उनसे बात करें साथ ही काउंसेलर से काउंसेलिंग कराये.
डॉ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक

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