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चाइनीज झालर की चकाचौंध में टिमटिमा रहे मिट्टी के दीये

पालपाड़ा में मिट्टी का दीया बनाने वाले कुम्हारों की अनकही पीड़ा कुम्हारों ने कहा- समाप्ति के कगार पर है दीये का पुश्तैनी कारोबार, हजारों खर्च के बाद भी कोई मुनाफा नहीं सिलीगुड़ी : दीपावली पर जगमग बिजली की चकाचौंध के बीच मिट्टी के दीये की मांग जा रही है. इससे दीया निर्माण से जुड़े कुम्हारों […]

पालपाड़ा में मिट्टी का दीया बनाने वाले कुम्हारों की अनकही पीड़ा

कुम्हारों ने कहा- समाप्ति के कगार पर है दीये का पुश्तैनी कारोबार, हजारों खर्च के बाद भी कोई मुनाफा नहीं

सिलीगुड़ी : दीपावली पर जगमग बिजली की चकाचौंध के बीच मिट्टी के दीये की मांग जा रही है. इससे दीया निर्माण से जुड़े कुम्हारों के कारोबार पर खतरा मंडरा रहा है. दीपावली को रोशन करने वाले कुम्हारों के चेहरे पर अब खुशी की कोई रौनक नहीं दिख रही है. इनकी खुशी चाइनीज झालर व झूमरों ने छीन ली है.

ऐसे में कुम्हारों की अनकही पीड़ा देखने वाला कोई नहीं है. इनका पुश्तैनी कारोबार धीरे-धीरे समाप्ति के कगार पर है. दीया बनाने वाले कुम्हारों का कहना है कि वे सिर्फ अपने पुश्तैनी कारोबार को जिंदा रखने के लिए दीये बनाने का काम कर रहे हैं. मिट्टी के दीयों के साथ-साथ मूर्ति के घटते प्रचलन से इनका कारोबार काफी प्रभावित हुआ है.

पालपाड़ा के कुम्हार सुनील पाल ने बताया कि मिट्टी के बर्तन, दीये व फूल का गमला बनाने कर अपना पुश्तैनी कारोबार कर रहे हैं. उनका कहना है कि पहले मिट्टी कब दाम में उपलब्ध हो जाती थी, पर अभी मिट्टी के दाम आसमान छू रहे हैं. महंगी मिट्टी लेकर दीये बनाने के बाद उसका वाजिब दाम नहीं मिल पाता है. पहले लोग दीपावली में मिट्टी के दीये व मूर्तियों का प्रयोग करते थे. लेकिन बाजार में प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों की मांग बढ़ती जा रही है. जिससे कुम्हारों का कारोबार चौपट हो रहा है.

इन्हें सरकार से भी कोई सहायता नहीं मिलती है. यदि सरकार की ओर से दीये बनाने के लिए मिट्टी भी उपलब्ध करा दी जाती तो कुम्हारों को काफी मदद मिल जाती. वहीं कुम्हार भानु पाल ने बताया कि उनका पूरा परिवार मिट्टी के दीये बनाने में लगा रहता है. फिर भी दीये बेचकर मुनाफा नहीं होता, पर उनके पास दीये बनाने के अलावा कोई रोजगार नहीं है. उन्होंने कहा कि सैकड़ों दीये बेचने के बाद भी मुश्किल से चार-पांच सौ की कमाई हो पाती है.

वहीं कई अन्य कुम्हारों ने यह बताया कि इस बार दुर्गा पूजा के दौरान बारिश होने से हजारों दीये नष्ट हो गये. पालपाड़ा के कुम्हार दीया बनाने के लिए इस्लामपुर के चोपड़ा से मिट्टी खरीद कर लाते हैं. एक ट्रक मिट्टी की कीमत पांच से छह हजार रुपये के आसपास आता है. इसके अलावा दीये बनाने के बाद उसे पकाने के लिए लकड़ी भी खरीदनी पड़ती है. इतना खर्च करने के बाद भी मुनाफा नहीं होता है. पालपाड़ा में निर्मित दीये दिल्ली, मुम्बई, बिहार, नागपुर, उत्तर प्रदेश आदि शहरों में भेजी जाती है.

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