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सूरत योग की भक्ति पर बल देता है संतमत : हुजूर कंवर

राधास्वामी मत संतमत का आइना है अंतरात्मा की आवाज परमात्मा की आवाज सिलीगुड़ी : संतमत सूरत शब्द के योग की भक्ति पर बल देता है. इस योग की खूबी यह है कि इसे आठ साल का बच्चा भी कर सकता है और 60 साल का बुजुर्ग भी बड़ी आसानी से कर सकता है. लेकिन भक्ति […]

राधास्वामी मत संतमत का आइना है

अंतरात्मा की आवाज परमात्मा की आवाज

सिलीगुड़ी : संतमत सूरत शब्द के योग की भक्ति पर बल देता है. इस योग की खूबी यह है कि इसे आठ साल का बच्चा भी कर सकता है और 60 साल का बुजुर्ग भी बड़ी आसानी से कर सकता है. लेकिन भक्ति की उत्तम अवस्था जवानी की अवस्था है. यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने सिलीगुड़ी प्रवास के दूसरे दिन प्रधान नगर स्थित राधास्वामी आश्रम में साध संगत को फरमाए.

कंवर साहेब ने उच्च कोटि का अध्यात्म परोसते हुए कहा कि राधास्वामी मत संतमत का ही आईना है. इस मत के प्रतिपादक स्वामी जी महाराज ने जीव के कल्याण हेतु आम इंसान के लिए सत्संग जारी किया था. उनके द्वारा फरमाए गए गुप्त भेद को जान कर ही हम इस आवन जान से छुटकारा पा सकते हैं. सत्संग सीखाता भी है और बताता भी है, लेकिन सत्संग का लाभ उठाने के लिए हमें पुरानी आदतों को छोड़ना पड़ेगा. सत्संग करके भी यदि आपने अपनी आदत नहीं बदली तो सत्संग किसी काम का नहीं.

स्वामी जी महाराज ने भी हुजूर सालिग्राम जी के आग्रह पर सत्संग इसीलिए जारी किया था कि अपनी गलत आदतों को त्याग कर काल माया से परेशान लोग इसका फायदा उठा सकें. गुरु महाराज जी ने जीवन की परेशानियों को जीवन का गहना बताया. उन्होंने कहा कि इस लाख चौरासी में मात-पिता मिल जाएंगे, लेकिन गुरु सेवा और बंदगी बार-बार मिलने की नहीं है.इंसान काल और माया के जाल में उलझा हुआ है. काल के फेर में वो भटक जाता है. इस भटकन से उसे सत्संग ही छुटकारा दिला सकता है.

गुरु साहेब ने कहा कि पतिव्रता स्त्री और गुरुमुख शिष्य भक्ति के मोहताज नहीं होते. जिसके मन में सांच है उसके मन में वो आप है. मन के अंदर सच्चाई कोई दूसरा प्रकट नहीं करेगा, वो तो आपको स्वंय ही प्रकट करनी पड़ेगी. होता वहीं है जो राम ने रच रखा है. फिर किस बात का गुमान. बनावटी बात दो दिन तो चल सकती है, लेकिन एक दिन वो उजागर हो ही जाएगी.

वो जीत नहीं सकता. उन्होंने कहा कि वे लोग दया के पात्र हैं, जो रोजाना सत्संग सुनते हैं. लेकिन फिर भी उनमें बदलाव नहीं आता. इसका सबसे बड़ा कारण है कि उनमें टिकाव नहीं है. ये हर रोज गुरु बदलते हैं, देव बदलते हैं. उन्होंने कहा कि टीके रहने का ही मोल होता है. पोथी पढ़ लेने मात्र से आपको कुछ हासिल नहीं होगा. परमात्मा के नाम का रत्न तो तप-सब्र-संयम-विवेक से ही हासिल किया जा सकता है.

शक्ति का सारा भंडार आपके अंदर समाया है. यदि आप अपने आप को निष्काम कर लोगे तो आप परमात्मा को पा सकते हो. अभिमान होगा तो कुछ हासिल नहीं होगा. रावण के एक लाख पूत और सवा लाख नाती थे, लेकिन उसके अंत समय में दिया जलाने वाला भी कोई नहीं बचा क्योंकि उसके अंदर विद्यमान अभिमान ने उसके सारे गुणों को मटिया मेट कर दिया था.

गुरु महाराज ने फरमाया कि जीवन को एक छोटी सी घटना भी मोड़ देती है. राजा भृर्तहरि के वैराग्य का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि राजा ने अपनी सबसे प्रिय रानी पिंगला की बेवफाई से खिन्न होकर अपना राजपाट त्याग दिया. गुरु गोरखनाथ का शिष्य बन गये और संन्यास ले लिया. सत्संग आपको समभावी बनाता है.

सत्संग आपको मन, वचन और कर्म से पवित्र बनाता है. सत्संग आपको नाम का अभ्यास करना सीखाता है. उन्होंने कहा कि ये एक दिन में नहीं होगा. धीरे-धीरे होगा. जैसे बूंद-बूंद से घड़ा भरता है. एक-एक फूल से पराग लेकर मधुमक्खी शहद बनाती है, वैसे ही आप धीरे-धीरे अभ्यास करके अपनी बुराई मिटा सकते हैं.

हम खुद के फायदे के लिए दूसरे का गला काट रहे हैं. हम ये भूले बैठे हैं कि आज हमने किसी का गला काटा है कल कोई हमारा गला काटेगा. उन्होंने कहा कि हम तो कर्म से कसाई बने बैठे हैं. हमसे अच्छे तो जन्मजात कसाई हैं. सदन कसाई का प्रसंग सुनाते हुए गुरु महाराज जी ने कहा कि एक बार जब सदन कसाई बकरे को मारने चला तो बकरे से आवाज आयी कि सदन तेरा-मेरा हिसाब बराबर है. मुझे मत मार.

सदन कसाई ने उसी वक़्त जीव हत्या छोड़ दी।गुरु महाराज जी ने कहा कि आप सोच रहे हो कि कहि बकरा भी बोलता है।बकरा नही बोला सदन कसाई की अंतरात्मा बोली. आप भी अंतरात्मा की आवाज पहचानो क्योंकि अंतरात्मा की आवाज परमात्मा की ही आवाज होती है. गुरु हर पल आपके अंग संग रहता है. आपको हर बुरे काम से पहले आपको चेताता है. मन को ठोकर सहज रूप से लगेगी जब आप सतगुरु के सत्संगी वचनों को आत्मसात कर लोगे.

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