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गुलाल उद्योग ने तोड़ा दम, बेरंग हुई कारिगरों की जिंदगी

जीएसटी की मार से और बढ़ी परेशानी सिर्फ टीका लगाकर ही लोग चला लेते हैं काम सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी सहित पूरे देश के लोग अगले सप्ताह एक अलग ही रंग में रंगने वाले हैं. हर किसी के मन में एक उमंग, खुशी और उल्लास देखने को मिलेगी. क्योंकि होली का त्योहार आने वाले है. सिर्फ […]

जीएसटी की मार से और बढ़ी परेशानी

सिर्फ टीका लगाकर ही लोग चला लेते हैं काम
सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी सहित पूरे देश के लोग अगले सप्ताह एक अलग ही रंग में रंगने वाले हैं. हर किसी के मन में एक उमंग, खुशी और उल्लास देखने को मिलेगी. क्योंकि होली का त्योहार आने वाले है. सिर्फ देश क्यों विदेशों में भी जहां-जहां भारतीय रहते हैं,होली की धूम मचती है. यह त्योहार प्यार और सौहार्द की भावना को बढ़ाता है. होली का त्योहार जीवन की उदासी छोड़कर नई उमंग के साथ जीवन जीने का संदेश देता है. होली मुख्य रूप से रंग,अबीर या गुलाल से ही खेली जाती है.
हांलाकि आजकल आजकल होली खेलने का तरीका कहीं-कहीं गलत भी होते जा रहा है. कोई ग्रीस से होली खेलता है, तो कोई कालिख से. यह ठीक नहीं है. कोई आहत न हो, किसी को दुःख न हो, इस बात का होली में खास ख्याल रखा जाना चाहिए. होली सिर्फ रंगों और गुलाल से खेलें.
अधिकांश लोग ऐसा ही करते हैं. लेकिन हम यहां एक अलग मुद्दे पर बात कर रहे हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि आप जिस रंग और गुलाल से होली खेल रंगीन होते हैं,इसे बनाने वालों की जिंदगी कितनी बेरंग है. सिलीगुड़ी में तो रंग और अबीर का काम एक तरह से कहें तो दम तोड़ने के कगार पर है. मांग में कमी, कच्चे माल की कीमत में बढ़ोत्तरी एवं जीएसटी की मार ने सिलीगुड़ी में इस उद्योग की कमर तोड़ दी है. आलम यह है कि सिलीगुड़ी के एक गुलाल फैक्ट्री में होली के ठीक 2 महीने तक ही काम होता है. बाकी समय यहां काम करने वाले कर्मचारी यहां तक कि मालिक भी दूसरे काम में लग जाते हैं.
अभी होली पर सिलीगुड़ी नगर निगम के 41 नंबर वार्ड स्थित शांति नगर के एक गुलाल फैक्ट्री में मालिक और मजदूर दिन रात काम करने में जुटे हुए हैं. उन्हें उम्मीद है कि होली पर कुछ कमाई हो जाएगी. इस फैक्ट्री में करीब 5 टन अबीर -गुलाल का निर्माण हो चुका है. अगर सिलीगुड़ी बाजार में इसकी खपत हो जाती है तो कुछ हद तक यह सभी लोग कमाई करने में सफल रहेंगे. लेकिन मांग में जरा भी कमी हुई तो सारी मेहनत बेकार चली जाएगी.
इस अत्याधुनिक जमाने में भी इस फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर हाथ से ही गुलाल बनाने का काम करते हैं. इस फैक्ट्री में अधिकांश महिलाएं ही काम करती हैं. यह महिलाएं गरीब घरों से आई हुई हैं. होली के मौसम में 2 महीने तक इस फैक्ट्री में गुलाल बनाने का काम करती .है उसके बाद किसी अन्य काम में लग जाती हैं .यह महिलाएं या तो किसी कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करती हैं या कहीं चाय-बिस्किट आदि की दुकान लगाती है. स्थाई रोजगार की कोई व्यवस्था इनके पास नहीं है.
हर्बल गुलाल की मांग ने पकड़ा जोर : जीएसटी के कारण परेशानी काफी बढ़ गई है. उन्होंने आगे बताया कि अब केमिकल अबीर का जमाना खत्म हो गया है. हर्बल गुलाल ने जोर पकड़ा है. जिसका निर्माण आरारोट से होता है. वह मुख्य रूप से दिल्ली एवं कोलकाता से कच्चा माल मंगाते हैं. जिसमें 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी चुकानी पड़ती है. उन्होंने आगे कहा कि सिर्फ आरारोट पाउडर पर ही 5 प्रतिशत की जीएसटी लगती है.
जबकि गुलाल बनाने के लिए आवश्यक अन्य कच्चे माल पर 18 प्रतिशत की जीएसटी देनी होती है. अबीर की पैकिंग के लिए आवश्यक बॉक्स पर 13 प्रतिशत की जीएसटी लगती है. इतना सब कुछ करने के बाद भी पूरे माल की खपत सिलीगुड़ी के बाजार में हो ही जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि जमाना तेजी से बदल रहा है. पहले जिस पैमाने पर लोग होली खेलते थे अब उस पैमाने पर नहीं खेलते हैं.

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