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गिद्धों को वापस जंगल में छोड़ने पर कार्यशाला

मालबाजार : मरे हुये जीव-जंतुओं को खाकर गिद्ध हमारे पर्यावरण को साफ रखते हैं. लेकिन यह गिद्ध पक्षी पिछले कई सालों से संकट में है. इस पक्षी की कई प्रजातियां तो हमेशा के लिये खत्म हो चुकी हैं. इसे देखते हुये देश के विभिन्न क्षेत्रों में गिद्ध संरक्षण का काम शुरू हुआ है. उत्तर बंगाल […]

मालबाजार : मरे हुये जीव-जंतुओं को खाकर गिद्ध हमारे पर्यावरण को साफ रखते हैं. लेकिन यह गिद्ध पक्षी पिछले कई सालों से संकट में है. इस पक्षी की कई प्रजातियां तो हमेशा के लिये खत्म हो चुकी हैं. इसे देखते हुये देश के विभिन्न क्षेत्रों में गिद्ध संरक्षण का काम शुरू हुआ है. उत्तर बंगाल के बक्सा बाघ परिजना इलाके में एक गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र बनाया गया है.

2005 में बने इस केंद्र में 2009 से गिद्धों ने बच्चों को जन्म देना शुरू किया. अभी इस केंद्र में तीन प्रजातियों के 80 गिद्ध हैं. गिद्धों के संरक्षण और जंगल में उन्हें पुनर्वासित करने के विषय पर शुक्रवार को चालसा के एक रिसॉर्ट में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला शुरू हुई.

इसमें मुंबई की नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के सदस्य, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के प्रतिनिधि और गिद्ध प्रजनन केंद्र के वन अधिकारी शामिल हुये. कार्यशाला में शामिल बक्सा बाघ परियोजना के फिल्ड निदेशक शुभांकर सेन गुप्त ने बताया कि पूरे देश में आठ गिद्ध प्रजनन केंद्र हैं. इसमें राजाभातखावा प्रजनन केंद्र में अभी 129 गिद्ध हैं. जिनमें से 57 जंगल में छोड़ने लायक अवस्था में हैं.

इन्हें जंगल में पुनर्वासित करने से पहले विभिन्न विशेषज्ञों के साथ चर्चा के लिये इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है. उन्होंने बताया कि गिद्ध 100 किलोमीटर के दायरे में भ्रमण करते हैं. उनके लिये पुनर्वास क्षेत्र में पेयजल की उपलब्ध सुनिश्चित करनी होगी. साथ ही डिक्लोफिनेक नामक दवा पर रोक को सख्ती से सुनिश्चित करना होगा.

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