इस वर्ष इस स्कूल का एक सौ वर्ष पूरा हो चुका है. पिछले कुछ महीनों से स्कूल अपना शतवार्षिकी वर्ष मना रहा है. मैराथन से लेकर अब तक कई कार्यक्रम आयोजित कराये गए हैं. सोमवार को रिद्धिमान साहा भी अपने पुराने स्कूल के कार्यक्रम में शामिल हुए. आज स्कूल पहुंच कर उन्होंने पूरे स्कूल का परिदर्शन किया. प्रधानाध्यापक के साथ कुछ पल बिताया.
स्कूल के कॉमन रूम में शिक्षकों से साथ बातचीत की. फिर स्कूल के मैदान में आये. कुछ पल तक वे मैदान को देखते रहे. फिर कहा कि इस मैदान की याद उन्हें आज भी आती है. भले ही यह मैदान आज उन्हें छोटा लग रहा है, लेकिन इसी मैदान पर उन्होंने पहली बार क्रिकेट का बैट पकड़ा था. बचपन मे प्लास्टिक और कागज का बॉल व काठ का बैट बनाकर खेलते थे. अपने जीवन की उपलब्धियों के लिए उन्होंने इस विद्यालय और शिक्षकों को श्रेय दिया है. उन्होंने कहा कि खेल की वजह से वे अधिकांश समय क्लास में अनुपस्थित रहते थे. शिक्षकों की सहायता से वे केवल परीक्षा दिया करते थे. वे पढ़ाई-लिखाई में काफी अच्छे नहीं थे.