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Friday, March 29, 2024

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17 साल की उम्र में दिख रही है सात साल की बच्ची

नागराकाटा : डुवार्स-नागराकाटा ब्लॉक स्थित लुकसान चाय बागान पिटवा लाइन के श्रमिक सुजीत मुंडा और सुमन मुंडा की बेटी मंदिरा मुंडा अपुष्टि के कारण बीमार अवस्था में दिन गुजारा कर रही है. मंदिरा मुंडा की उर्म 17 वर्ष है, लेकिन दिखने में लगता है की वह 7 वर्ष की छोटी बच्ची है. उम्र के हिसाब […]

नागराकाटा : डुवार्स-नागराकाटा ब्लॉक स्थित लुकसान चाय बागान पिटवा लाइन के श्रमिक सुजीत मुंडा और सुमन मुंडा की बेटी मंदिरा मुंडा अपुष्टि के कारण बीमार अवस्था में दिन गुजारा कर रही है. मंदिरा मुंडा की उर्म 17 वर्ष है, लेकिन दिखने में लगता है की वह 7 वर्ष की छोटी बच्ची है. उम्र के हिसाब से उसका हावभाव एवं बोलचाल एक बड़ी लड़की के समान है. लेकिन आज तक उसकी इस बीमार का कोई इलाज नहीं हो पाया है.
सरकारी अधिकारी को इस विषय की जानकारी देने पर भी कोई व्यवस्था नहीं करने का अभियोग परिवार के लोगों ने लगाया है. पर इस बार आश्वासन मिला है कि वोट के बाद मंदिरा के लिए कुछ व्यवस्था की जाएगी. मंदिरा के पिता लुकसान चाय बागान में अस्थायी श्रमिक के रुप में काम करते थे, जहां उनको 130 रुपये दैनिक मजदूरी मिलता था. घर के नाम पर बांस की चहारदिवारी है. वह भी कभी हवा से गिर सकता है, इसलिए घर को चारों ओर बांस का टेक लगाकर किसी तरह खड़ा रखा गया है. घर का बेहाल अवस्था को देखकर मंदिरा मुंडा के पिता सुजीत मुंडा सिक्किम में काम की तलाश में गए हुए है.
मंदिरा की मां सुमन मुंडा ने बताया कि घर में हमलोग केवल दिन में एक समय भोजन कर दिन गुजार रहे हैं. बच्चे स्कूल में दिन का भोजन करते हैं. हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम अपनी बच्ची का इलाज करा सके. बच्ची के इलाज के लिए पति काम की तलाश में सिक्किम गए हुए हैं. सभी को सरकारी राशन मिलता है लेकिन मुझे नहीं मिलता है और न ही एक सौ दिन का काम मिलता है. इस अवस्था में मैं अपनी तीन लड़कियों को लेकर दयनीय अवस्था में दिन गुजारने को मजबूर हैं. उन्होंने आगे बताया गया कि मंदिरा कक्षा सात तक पढ़ाई लिखाई करने के बाद पिछले दो वर्षों से विद्यालय नहीं जा रही है.
सुमन अस्थाई रुप में बागान में काम करने के लिए जाती है. इसलिए मंदिरा को घर का सारा काम काज करना पड़ता है. पेंसिल की जगह हाथों से बर्तन, साफ-सफाई, झाड़ू करना पड़ता है. पीने के लिए पानी पैदल दो किलोमीटर की दूरी तय कर नदी से लाना पड़ता है वह काम भी मंदिरा ही करती है. मंदिरा कहती है कि बीच-बीच में काफी जोड़ से पेट दर्द होता है. कुछ दिन पहले एक मैडम घर में आकर मुझे सुलकापाड़ा अस्पताल ले गई थी. वहां से माल बाजार बड़ा अस्पताल में जाने के लिए बोला गया.
एक बार गयी थी लेकिन दूसरी बार फिर बुलाया था लेकिन पैसे के अभाव के कारण जा नहीं सकी. वह बताती है कि जब एक बार गयी थी तो 100 रुपये खर्च हुआ था. पिता जी घर में नहीं हैं और मुझे कौन अस्पताल जाने के लिए पैसा देगा. मंदिरा की दूसरी बहन अंजिला घर से कुछ दूरी में अवस्थित शिशु शिक्षा केन्द्र में कक्षा 2 में पढ़ती है. छोटी बहन अनिला कक्षा एक में पढ़ती है.
मदद के लिए आगे आयी निजी संस्था
मंदिरा का यह अवस्था को देखकर एक गैर सरकारी संस्था सिनी मदद के लिए आगे आया है. मंदिरा को प्रथम में सुलकापाड़ा और बाद में मालबाजार अस्पताल रेफर कर दिया गया था, लेकिन अभी उसका इलाज नहीं हो पाया है.सुलकापाड़ा ब्लॉक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सक सुपर्णा हालदार ने बताया कि उस लड़की को हमारे पास लाया गया था. उसका वंशानुगत समस्या होने की हमलोगों ने अनुमान किया है.
उम्र के हिसाब से जिस तरह उसका वजन में वृद्धि होना चाहिए वह नहीं हुआ है, इसलिए हमलोगों ने जांच के लिए माल अस्पताल रेफर कर दिया था. उसके बाद से फिर कोई खबर नहीं मिली है. ब्लॉक शिशु विकास प्रकल्प अधिकारी मगदलीना लेप्चा ने कहा कि हमारी ओर से मिलने वाले सभी परिसेवा दिया जाता है. इलाज के लिए उन्हें सुलकापाड़ा अस्पताल भी भेजा गया था. सिनी से सहयोग लेकर संयुक्त रुप से जल्द ही कुछ करने की बात उन्होंने बतायी.
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