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कांटेदार टहनियों पर सोकर व दहकते अंगारों पर चलकर भक्तों ने दिखायी हठ भक्ति

गाल को सुई से आरपार करते व चालीस फीट फंटी बल्ली के सहारे झुलते भक्त सरायकेला : इसे चाहे अंधविश्वास की पराकाष्ठा कहें, या अपने आराध्य देव भोलेनाथ शिवशंकर के प्रति अटूट आस्था. इन दोनों ही तथ्यों में सरायकेला के भुरकुली में एक ऐसी परिपाटी है. जिसमें मन व आत्मा की शांति के लिए शरीर […]

गाल को सुई से आरपार करते व चालीस फीट फंटी बल्ली के सहारे झुलते भक्त

सरायकेला : इसे चाहे अंधविश्वास की पराकाष्ठा कहें, या अपने आराध्य देव भोलेनाथ शिवशंकर के प्रति अटूट आस्था. इन दोनों ही तथ्यों में सरायकेला के भुरकुली में एक ऐसी परिपाटी है. जिसमें मन व आत्मा की शांति के लिए शरीर को बेहद कष्ट देने में हठी भक्तों को सुकून मिलता है. मासंत के दिन शिव भक्त पूर्व में मांगे गये मन्नत पूरी होने की खुशी अपनी पीठ की चमड़ी में छेद कराकर बैल गाड़ी खींच लेते हैं.

भुरकुली में भी आज ऐसा ही कुछ अजीबोगरीब नजारा देखने को मिला. अपनी मन्नत पूरी होने की खुशी में लगभग दो दर्जन शिव भक्तों ने दहकते अंगारों पर नंगे पांव चलकर अपनी भक्ति का प्रदर्शन किया. कई भक्तों ने बबूल, बेर, बेल के कांटेदार टहनियों को फूलों की सेज समझ कर उसपर सोकर भक्ति दिखलायी. कई भक्त लकड़ी के पटरे पर गाड़े गये नुकीले कांटी पर सो कर अपने आराध्य देव से किया हुआ वायदा पूरा किया.

इसके अलावे भक्तों ने चालीस फीट फंची बल्ली के सहारे झुलकर भी अपनी भक्ती दिखायी. दहकते अंगारों पर नंगे पांव नृत्य करने के बावजूद पैरों में छाले तक नहीं आते हैं. वहीं नुकीले कांटी पर सोने के बावजूद कहीं घाव तक नहीं होते हैं. भुरकुली गांव में दस अप्रैल से चड़क पूजा का शुभारंभ हुआ था. गाजा डांग के साथ विगत पांच दिनों से चली आ रही चैत्र पर्व का समापन भी हो गया.

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