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निर्यातक खुश हैं कि निर्यात का दहाई अंकों में बढ़ना फरवरी और मार्च के बाद अप्रैल महीने में भी जारी है. फरवरी में निर्यात में 17.48 फीसद की बढ़त हुई, तो मार्च में 27 और अप्रैल में 19.77 प्रतिशत की. वर्ष 2016-17 में निर्यात में महज 4.71 प्रतिशत का इजाफा हुआ था. लिहाजा, अप्रैल माह […]

निर्यातक खुश हैं कि निर्यात का दहाई अंकों में बढ़ना फरवरी और मार्च के बाद अप्रैल महीने में भी जारी है. फरवरी में निर्यात में 17.48 फीसद की बढ़त हुई, तो मार्च में 27 और अप्रैल में 19.77 प्रतिशत की. वर्ष 2016-17 में निर्यात में महज 4.71 प्रतिशत का इजाफा हुआ था. लिहाजा, अप्रैल माह मे निर्यात में दहाई अंकों की वृद्धि बड़ी आशा जगाती है. अहम यह भी है कि इस अवधि में चीन का निर्यात आठ प्रतिशत और आयात 11 फीसद कम हुआ है यानी विश्व-बाजार में भारत के लिए स्थितियां अभी चीन की तुलना में अनुकूल हैं.

निर्यातकों की खुशी की एक वजह और भी है. संशोधित विदेश व्यापार नीति जारी हुई है और जीएसटी को जल्दी ही लागू होना है, साथ ही अमेरिका और यूरोप के देशों में भी नये सिरे से कुछ नीतिगत उपाय किये गये हैं. इनसे विश्व-व्यापार में तेजी की उम्मीद है. भारत में निर्यात ही नहीं, आयात में ही तेज बढ़वार जारी है, यानी नोटबंदी के असर से जूझते हुए अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है. घरेलू मांग में इजाफे के कारण कच्चे तेल के आयात में पिछले साल के अप्रैल के मुकाबले इस साल (अप्रैल) 30 फीसद ( 5655 मिलियन डॉलर से बढ़ कर 7359 मिलियन डॉलर) का इजाफा हुआ है. सोना के आयात में 211 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.

वर्ष 2016 के अप्रैल में 1237 मिलियन डॉलर का सोना आयात हुआ, जबकि 2017 के अप्रैल में 3853 मिलियन डॉलर का. मतलब, नोटबंदी के बाद के दौर में सोने में निवेश एक आकर्षक विकल्प बन कर उभरा है. आयात और निर्यात के मोर्चे पर आशा भरे इन संकेतों के बीच चिंता की एक बात यह है कि आयात में हुई 49 फीसद वृद्धि के कारण एक माह के अंदर व्यापार घाटा तीन गुना बढ़ गया है. लेकिन, वर्षवार देखें, तो इस मोर्चे पर भी देश ने बेहतर किया है. वर्ष 2015 के मार्च में व्यापार घाटा 137 बिलियन डॉलर का था. बीते दो सालों में यह कम होकर 2017 के मार्च में 105 बिलियन डॉलर रह गया है. व्यापार घाटे में 32 बिलियन डॉलर की कमी तो मानीखेज है ही, यह भी अहम है कि व्यापार घाटा लगातार दो सालों से कम हो रहा है.

फिर भी, व्यापार घाटे की रकम बहुत बड़ी है और यह एक संकेत है कि देश विश्व-बाजार में औद्योगिक रूप से पर्याप्त प्रतिस्पर्धी नहीं बन पाया है. सो, रोजगार सृजन के साथ-साथ उत्पादन की अत्याधुनिक तकनीक अपनाने की विरोधाभासी जरूरत बदस्तूर बनी रहेगी.

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