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एक पखवाड़े में जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति व प्रशासनिक संरचना में बदलाव के छह माह पूरे हो जायेंगे. इस अवधि में कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए किये गये कई उपायों के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है. विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से कश्मीर घाटी, में दशकों से बरकरार तनाव को कम कर शांति और […]

एक पखवाड़े में जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति व प्रशासनिक संरचना में बदलाव के छह माह पूरे हो जायेंगे. इस अवधि में कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए किये गये कई उपायों के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है.

विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से कश्मीर घाटी, में दशकों से बरकरार तनाव को कम कर शांति और विकास के रास्ते पर राज्य को अग्रसर करना सरकार की प्राथमिकताओं में है. इस दिशा में बड़ी पहल के तौर पर आगामी कुछ हफ्तों में 36 केंद्रीय मंत्री राज्य का दौरा करेंगे. तीन मंत्रियों का पहला समूह जम्मू-कश्मीर पहुंच चुका है.

खबरों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों को निर्देश दिया है कि इन यात्राओं को किसी भी तरह से राजनीतिक रंग न दिया जाये और विभिन्न वर्गों से मुलाकात कर लोगों के दिलो-दिमाग को जीतने की कोशिश की जाये. उन्होंने यह भी कहा है कि हर रात जम्मू या श्रीनगर लौटने के बजाय मंत्री गांवों-कस्बों में ही रुकें और बातचीत करें. इन निर्देशों का उद्देश्य है कि लोगों को भरोसे में लेकर काम हो सके, ताकि जो समय अतीत में बरबाद हुआ है, उसकी भरपाई की जा सके. कश्मीर के कारोबारी व औद्योगिक समुदाय के संगठन ने बीते दिसंबर में कहा था कि अगस्त से चार महीनों में इलाके की अर्थव्यवस्था को करीब 18 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. लाखों रोजगारों पर भी नकारात्मक असर पड़ा है और बेरोजगारी बढ़ गयी है. यह आकलन घाटी के 10 जिलों के सर्वे पर आधारित है. राज्य की सालाना अर्थव्यवस्था में यह नुकसान 20 फीसदी के आसपास है. इस इलाके में राज्य की 55 फीसदी आबादी रहती है.

राज्य की आर्थिकी का मुख्य आधार पर्यटन, दस्तकारी और खेती है. यातायात बाधित होने और सुरक्षा की चिंताओं के साथ इस नुकसान की एक बड़ी वजह इंटरनेट और मोबाइल फोन सेवाओं पर पाबंदी भी रही है. इस पाबंदी से छात्रों व युवाओं को भी बड़ी परेशानी हुई है. स्कूलों, कार्यालयों और दुकानों के बंद रहने से आम जन-जीवन अस्त-व्यस्त है. इस चिंताजनक माहौल में सुधार सिर्फ सुरक्षा के इंतजामों से नहीं हो सकता है. अलगाववादी और आतंकवादी समूह ऐसे वातावरण को भुनाकर अपनी स्वार्थों को पूरा करने तथा सरकार के खिलाफ लोगों को भड़का सकते हैं.

सरकार और लोगों के बीच संवादहीनता से गलतफहमियों और अफवाहों के लिए भी जमीन तैयार हो जाती है. ऐसा पहले कई बार जम्मू-कश्मीर में हो चुका है. भरोसे की कमी के वातावरण से भारत को अस्थिर करने और हिंसक तत्वों को उकसाने के पाकिस्तान के इरादों को भी खाद-पानी मिलता है.

इन चुनौतियों से निपटने के लिए इससे बेहतर कोई और उपाय नहीं हो सकता है कि सरकार मंत्रियों के माध्यम से जनता से सीधे संपर्क करे और उनकी चिंताओं व समस्याओं को सुने तथा अपना पक्ष भी रखे. शीर्ष स्तर से सीधे संवाद के इस सराहनीय व आवश्यक प्रयास का निश्चित ही समुचित परिणाम निकलेगा और जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य होगी.

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