श्रम कानूनों में बड़े सुधारों की कड़ी में केंद्र सरकार ने संसद के सामने सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक पेश कर दिया है, जो कानून बनने के बाद आठ मौजूदा श्रम कानूनों की जगह लेगा. सुधार प्रक्रिया का यह चौथा और आखिरी चरण है.
इस प्रक्रिया में 44 कानूनों में बदलाव कर उन्हें सिर्फ चार कानूनों में समाहित किया जा रहा है, ताकि मौजूदा जटिलताओं व विसंगतियों को दूर किया जा सके. कानूनों की बड़ी तादाद से कंपनियों और कामगारों को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
सामाजिक सुरक्षा से संबंधित विधेयक से पहले वेतन-भत्तों व पेंशन में सुधार का कानून बन चुका है, औद्योगिक संबंधों तथा कामकाजी स्थितियों, सुरक्षा व स्वास्थ्य से जुड़े दो संहिता विधेयक संसद में विचाराधीन हैं. वर्तमान औद्योगिक परिस्थितियों में ऐसे कानूनों की जरूरत बहुत पहले से महसूस की जा रही है, जो अर्थव्यवस्था व उत्पादक गतिविधियों के बदलते स्वरूप के अनुरूप हों तथा कामगारों के हितों की सुरक्षा में अधिक सक्षम हों.
दशकों पहले बनाये गये कई कानूनों की उपयोगिता अब बहुत कम रह गयी है. श्रम बल के हालिया सर्वेक्षण के आधार पर अजीम प्रेमजी विवि के एक अध्ययन में पाया गया है कि सरकारी व निजी कंपनियों में बिना किसी संविदा के कामगारों से काम कराने की प्रवृत्ति बढ़ रही है.
निजी क्षेत्र में स्थायी कर्मचारियों की संख्या भी घट रही है और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने से कतराने लगे हैं. सामाजिक सुरक्षा संहिता से ऐसी स्थिति में सुधार की अपेक्षा है. इसके तहत कामगार अब कर्मचारी भविष्य निधि में अपने हिस्से के योगदान में कटौती कर हर माह अधिक वेतन पा सकेंगे, जिनसे उनकी तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी.
इस निधि की पूर्णता की अवधि को भी पांच से घटा कर एक साल करने का प्रावधान है. इस संहिता विधेयक की भी एक विशेषता यह है कि सरकार असंगठित क्षेत्र के कामगारों के जीवन व विकलांगता सुरक्षा, स्वास्थ्य व मातृत्व, वृद्धावस्था सुरक्षा समेत अन्य लाभों को सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर निर्देश जारी कर सकेगी.
विडंबना है कि हमारे देश के सकल घरेलू उत्पादन में असंगठित क्षेत्र का व्यापक योगदान होने तथा रोजगार की उपलब्धता भी इस क्षेत्र में अधिक होने के बावजूद कामगारों की सामाजिक सुरक्षा की सबसे लचर स्थिति यहीं है. कमाई में कामगारों का हिस्सा कम रखने के लिए कंपनियों में भी खुद को असंगठित श्रेणी में रखने की प्रवृत्ति देखी जाती है. इस संहिता से हालात बदलने की उम्मीद की जा सकती है. अर्थव्यवस्था की वृद्धि व स्थायित्व के लिए भी श्रम सुधार अनिवार्य हैं.
वैधानिक स्पष्टता से पारदर्शिता आती है, जो निवेश व कारोबार में बढ़ोतरी के लिए आवश्यक है. सरकारी पहलों की सराहना के साथ यह अपेक्षा भी की जानी चाहिए कि संसद की बहस और श्रमिक संगठनों के सकारात्मक सुझावों का संज्ञान भी लिया जायेगा, ताकि कामगारों व कारोबारियों को कोई नुकसान न हो.