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बाजार में दूषित दूध

बचपन से लेकर बुढ़ापे तक दूध और दूध से बनी चीजें हमारे खान-पान का जरूरी हिस्सा होती हैं, लेकिन अगर नुकसानदेह तत्वों से दूषित और मिलावटी दूध बाजार में बेचा जाने लगे, तो अमृत कही जानेवाली यह वस्तु जहर भी हो सकती है. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के सर्वेक्षण में लगभग 41 फीसदी […]

बचपन से लेकर बुढ़ापे तक दूध और दूध से बनी चीजें हमारे खान-पान का जरूरी हिस्सा होती हैं, लेकिन अगर नुकसानदेह तत्वों से दूषित और मिलावटी दूध बाजार में बेचा जाने लगे, तो अमृत कही जानेवाली यह वस्तु जहर भी हो सकती है. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के सर्वेक्षण में लगभग 41 फीसदी नमूने मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं.
सात फीसदी दूध के नमूनों में तो ऐसे तत्व मिले हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं. दूध संरक्षा के मानकों पर यह देश का पहला सर्वेक्षण है. मई, 2018 से 2019 के बीच हुई इस कवायद में देश के तमाम राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से करीब साढ़े छह हजार नमूने जांच के लिए जुटाये गये थे. हमारे देश में पशुओं को दिये जानेवाले चारे पर नियमन नहीं है.
आहार में अक्सर ऐसी चीजें खिलायी जाती हैं, जिनमें रसायन होते हैं. करीब छह फीसदी नमूनों में एक किस्म का फंगस पाया गया है. इसी तरह से कई नमूनों में एंटीबायोटिक की मौजूदगी भी दर्ज की गयी है. इस साल के शुरू में केंद्र सरकार ने संसद को जानकारी दी थी कि राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड को देश में दूध की मांग का सही आकलन करने के लिए कहा गया है.
इस संबंध में बनी सरकार की योजना में दूध क्षेत्र में औसतन 4.2 फीसदी सालाना बढ़त का लक्ष्य रखा गया है. यह संतोषजनक है कि बीते दो सालों में उत्पादन इस लक्ष्य से बहुत अधिक हुआ है, लेकिन इसके बावजूद 2025 तक दूध उत्पादन को 24 करोड़ मीट्रिक टन करने के उद्देश्य को पूरा करना आसान नहीं होगा.
फिर भी, 2017-18 में करीब 17.7 करोड़ मीट्रिक टन उत्पादन के साथ भारत दुनिया में पहले पायदान पर रहा था. यह स्थिति आगे भी बरकरार रहने की उम्मीद है. गुणवत्ता के सर्वेक्षण की तरह दूध की मांग का हिसाब लगाने का काम भी पहली बार ही हो रहा है. इस संबंध में यह भी उल्लेखनीय है कि पशुपालन पर 7.30 करोड़ ग्रामीण परिवारों की निर्भरता भी है. अभी तो मूल्य के हिसाब से दूध अनाज के नीचे है, पर 2014-15 में इसका कुल मूल्य खाद्यान्न के दाम को पार कर गया था.
अभी लगभग साढ़े छह लाख करोड़ रुपये मूल्य के दूध उत्पादन के लगातार बढ़ते जाने की आशा है, क्योंकि आकलन के मुताबिक भारत में 2050 तक दूध का प्रति व्यक्ति उपभोग अमेरिका और यूरोप के बराबर हो जायेगा. ऐसे में इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने पर समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए. मानक प्राधिकरण के सर्वेक्षण के परिणामों के आधार पर सुधार की पहल तुरंत प्रारंभ करनी चाहिए.
उत्सवों के समय और शादी-विवाह के अवसरों पर दूध की मांग बहुत बढ़ जाती है. दूध के अलावा अक्सर खोया, मावा और घी में भी मिलावट के मामले सामने आते हैं. अधिक दूध के लिए पशुओं को दवाई देने का चलन भी बेतहाशा बढ़ा है. इन पर रोक लगाने के उपायों के साथ जागरूकता बढ़ाने पर भी जोर दिया जाना चाहिए.

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