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बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक कचरा

बड़ी आबादी, तेज शहरीकरण, ऊर्जा की जरूरत आदि के कारण पैदा होते कचरे को निबटाने की समस्या से जूझते देश के सामने इलेक्ट्रॉनिक कचरे (इ-वेस्ट) के प्रबंधन की चुनौती भी गंभीर होती जा रही है. इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल साजो-सामान के बिना आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जाती है तथा ऐसे उपकरणों और संबंधित […]

बड़ी आबादी, तेज शहरीकरण, ऊर्जा की जरूरत आदि के कारण पैदा होते कचरे को निबटाने की समस्या से जूझते देश के सामने इलेक्ट्रॉनिक कचरे (इ-वेस्ट) के प्रबंधन की चुनौती भी गंभीर होती जा रही है.
इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल साजो-सामान के बिना आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जाती है तथा ऐसे उपकरणों और संबंधित चीजों का इस्तेमाल बेतहाशा बढ़ता जा रहा है. हमारे देश में सालाना 20 लाख टन इ-वेस्ट निकलता है. इस मामले में अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी जैसे देश ही हमसे आगे हैं.
इसके अलावा विकसित देशों के ऐसे कचरे को भारत भेजा जाता है, जिसकी मात्रा के बारे निश्चित रूप से कहना मुश्किल है. संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में हर साल पांच करोड़ टन इ-वेस्ट निकलता है, जिसका सिर्फ 20 फीसदी हिस्सा ही फिर से उपयोग के लिए रिसाइकल हो पाता है. बाकी हिस्सा या तो फेंक दिया जाता है या फिर भारत जैसे विकासशील और अविकसित देशों में भेज दिया जाता है.
अन्य प्रकार के कचरे या नाले के पानी को साफ करने और उसे दुबारा काम में लाने लायक बनाने का इंतजाम हमारे यहां बहुत लचर है. सो, इस आधार पर कहा जा सकता है कि इ-वेस्ट के निबटारे की कोई भी व्यवस्थित प्रणाली नहीं है. अक्तूबर, 2016 में इ-वेस्ट प्रबंधन के लिए नियम निर्दिष्ट किये गये थे, किंतु मार्च, 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय में यह जानकारी सामने आयी थी कि इन नियमों पर अमल नहीं हो रहा है. इन नियमों में इलेक्ट्रॉनिक चीजों के निर्माताओं को कहा गया है कि वे इन्हें जामा करने और रिसाइकल करने की व्यवस्था करेंगे.
इसमें राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भविष्य में पैदा होनेवाले कचरे का आकलन करने को भी कहा गया, लेकिन अन्य जिम्मेदारियों की तरह इस मामले में भी यह बोर्ड बेहद लापरवाह है. इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2005 के बाद से कचरे के आकलन का कोई आंकड़ा देश के पास नहीं है. लिहाजा, कचरों का रिसाइकल करने पर भी कोई ध्यान नहीं है.
इलेक्ट्रॉनिक सामानों के बेचने-खरीदने में भी घोर अराजकता है. निर्माता, दुकानदार और उपभोक्ता ऐसे कचरे के नुकसान को लेकर जरा भी चिंतित नहीं हैं. इसका नतीजा यह है कि अनधिकृत रूप से बेहद खराब हालत में मजदूर इनकी रिसाइकलिंग करते हैं तथा धातु निकाल कर बाकी कचरा कूड़े में डाल देते हैं या जला देते हैं. धातु निकालने के लिए तेजाब का भी बेजा इस्तेमाल होता है.
केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के मुताबिक, 2018 में अधिकृत तौर पर रिसाइकल करनेवाले उद्यमों की संख्या 214 थी, पर इन्होंने 2016-17 में महज 0.36 लाख टन इ-वेस्ट को ही रिसाइकल किया था. यदि इ-वेस्ट के समुचित प्रबंधन पर ध्यान दिया जाये, तो इससे रोजगार के हजारों अवसर पैदा हो सकते हैं तथा घातक प्रदूषण से भी बचा जा सकता है. यह उद्योग जगत और सरकारी तंत्र की सहभागिता से ही किया जा सकता है.

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